‘सीएए’ पर छात्र आन्दोलन इससे आगे ‘बढ़’ पायेगा?
भोपाल। एक पुराने पत्रकार ने आज सुबह बात करते हुये बताया कि अभी तक तीन बड़े छात्र आन्दोलन हुये हैं। आजादी के समय छात्रों ने देश को आजाद कराने के लिए आन्दोलन में भाग लिया। लेकिन उसे राजनीति के दिग्गज नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू खा गये। मतलब उसका प्रतिफल चखा। दूसरा जेपी आन्दोलन हुआ उसमें भी छात्रों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। लेकिन उसे मोरार जी देसाई खा गये। मतलब वही, प्रतिफल चखा। तीसरा आन्दोलन असम में छात्रों का हुआ। लेकिन यहां प्रतिफल कोई नेता नहीं खा पाये। हॉस्टल से मुख्यमंत्री निवास तक एक छात्र नेता ही पहुंचा, प्रफुल्ल कुमार मोहंती। लेकिन बाद में राजनीति के दिग्गज उन्हें ही खा गये। इसके बाद छात्र आन्दोलन तो करते रहे लेकिन वे अपने निजी स्वार्थों के लिए। अपनी सुविधाओं के लिए या फीस कम कराने के लिए। अब सीएए के खिलाफ आन्दोलन करने के लिए छात्र खुद आगे नहीं आये हैं अपितु छात्रों को मोहरा बनाया जा रहा है। विचार व धर्म के नाम पर उन्हें खड़ा करने का प्रयास किया तो जा रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आन्दोलन छात्र आन्दोलन का रूप ले पायेगा और सफल होगा? जिस प्रकार से नेताओं ने आन्दोलन शुरू होते ही साथ आना शुरू कर दिया उससे यह भटकाव में आ गया है। अभी तय ही नहीं हो पाया रहा है कि आन्दोलन छात्रों का है या छात्र पीछे से साथ दे रहे हैं?
अभी तक दोनों ही प्रकार के छात्र आन्दोलन हुये हैं। पहले दो बार के आन्दोलन जिनका हमने उल्लेख किया है वे नेताओं के पीछे छात्रों का खड़े होना था जिसे नेता खा गये थे। लेकिन असम वाला छात्रों का, छात्रों द्वारा किया गया आन्दोलन था जिसका प्रतिफल सीधे छात्रों को ही मिला। सीएए के खिलाफ आन्दोलन नेताओं का है या छात्रों का यह तय ही नहीं हो पा रहा है इसलिए इसकी सफलता की संभावना कम ही है? नेता चाहते हैं कि आन्दोलन उनके लिए लाभकारी हो। छींका टूटने की ललक में कई दल लोंमड़ी की भांति जीभ निकाले बैठे हैं। लेकिन उन्हें आशा कम ही दिखाई दे रही है। अभी धर्म की आड़ में दो मुस्लिम प्रभाव के विवि और वाम विचार को हवा देने के लिए दो इसी विचार के विवि के छात्र विरोध के लिए नारेबाजी कर रहे हैं। लेकिन देश में अन्य विवि इस बारे में अभी मौन हैं? छात्रों का एक दूसरा वर्ग एबीवीपी का आन्दोलन का विरोध कर रहा है जबकि एनएसयूआई तय नहीं कर पा रहा है कि वह क्या करे?
सीएए के विरोध का स्वर नेताओं का भी उतनी प्रखरता से नहीं है क्योंकि उन्हें समस्या सीएए से नहीं है। वे तो एनआरसी का हव्वा दिखा रहे हैं और वह कहीं भी अभी अस्तित्व में नहीं है। जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने लागू कराया था उसका विरोध सरकार का विरोध कैसे बन सकता है? इसलिए सरकार आश्वस्त है। हालांकि यह आश्वस्ती कुछ ज्यादा ही की जा रही है। सीएए के समर्थन में जितनी और जिस प्रकार की भीड़ सामने आ रही है चाहे उसे मीडिया का एक तबका न दिखाता हो लेकिन जनमानस पर उसका प्रभाव विरोध से अधिक पड़ रहा है। इसलिए यह छात्र आन्दोलन समय के साथ दम तोड़ देगा। इसका एक कारण यह भी है कि छात्र लाल सलाम कर रहे हैं और जनता उन्हें सलाम कर रही है।