‘सिद्धु’ पंजाब में खुद को कर पायेंगे ‘सिद्ध’
नवजोत सिंह सिद्धु भाजपा के माध्यम से राजनीति में आये थे। अमृतसर सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। सांसद के रूप में उनका कार्यकाल अच्छा माना गया। एक हत्या के आरोप में इस्तीफा देकर फिर चुनाव लड़ा और अच्छे मतों से जीते भी। सिद्धु ने ही राहुल गांधी को पप्पु नाम दिया और अब कांग्रेस में राजनीति कर रहे हैं। सिद्धु को कांग्रेस की अमरिन्द्र सरकार में मंत्री बनाया गया था लेकिन उनकी गतिविधियों के कारण उन्हें मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा, तभी से पंजाब कांग्रेस में दो धड़े बन गये। इनमें तकरार हमेशा चलती रही। लेकिन विधानसभा के चुनाव आसन्न देख कर अब समझौते की स्थिति पैदा की जा रही है। सिद्धु प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हो गये और अमरिन्द्र सिंह मुख्यमंत्री और आने वाले चुनाव में नेतृत्व करेंगे। सिद्धु ने अध्यक्ष बनने के बाद यह बता दिया कि 60 विधायक उसके साथ हैं। मतलब राजनीति में अब मुख्यमंत्री की कुर्सी भी विवादों में रहेगी। सिद्धु के पद ग्रहण में अमरिन्द्र सिंह का आना और न आना चर्चा में रहा लेकिन वे उस कार्यक्रम में पहुंचे। इसके बाद शीत युद्ध तो चलता रहा है लेकिन चुनाव परिणाम प्रभावित न हों इसके लिए समझौते की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस हायकमान अब देशव्यापी पकड़ रख भी पा रहा है या नहीं? क्योंकि जहां सरकार बनने की संभावना है वहां विवाद को इतनी हवा देने का क्या मतलब है? राजघराने के अमरिन्द्र सिंह की अपनी गरिमा है और सिद्धु लाफ्टर हैं। कांग्रेस की पंसद समझी जा सकती है। किसान आन्दोलन के कारण कांग्रेस की संभावना अधिक दिखाई दे रही है। अकाली दल अब भाजपा के साथ नहीं है इसलिए पंजाब के हिन्दू वोटों का लाभ अकाली दल को नहीं मिल पायेगा ऐसे में सिद्ध-अमरिन्द्र विवाद से कांग्रेस को मिलने वाली सफलता कितनी प्रभावित होगी यह समझने की बात है?