‘सिंधिया’ ने लिखा झांसी के साथ नया ‘इतिहास’
पिछले दिनों की ही बात है जब झासी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधी पर सिंधिया खानदान का कोई भी प्रमुख या सदस्य नमन करने गया हो। एक बार राहुल गांधी के साथ वहां तक जाना तो हुआ था लेकिन नमन का सवाल ही नहीं उठता। इस प्रकार की घटनाओं से सिंधिया और झांसी के बीच तनातनी की घटनाओं को कहने वालों को ताकत मिलती रही थी। अबकी बार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक ऐसी मिशाल पेश कर दी कि इतिहास को करवट लेने की स्थिति पैदा हो गई। सिंधिया न केवल लक्ष्मीबाई की समाधि पर गये उन्होंने वहां पुष्पांजलि भी अर्पित की। नमन भी किया और परिक्रमा भी लगाई। यह अपने आप में अगला इतिहास है। सिंधिया का यह बदलाव देश के राजनीतिक इतिहास को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकता है। इसी के बाद राजनीति में एक नई और स्वच्छ हवा ने बहना शुरू कर दिया है। भाजपा की आन्तरिक राजनीति के साथ केन्द्रीय राजनीति में सिंधिया का यह स्वभाव खासा प्रभाव डालेगा। सिंधिया भाजपा के हो गये हैं अब यह सवाल कोई मायने नहीं रखेगा। उनके समर्थकों को भी यह बड़ा संदेश है कि देश नई राजनीतिक गाथा लिख रहा है उसी धारा में सबको चलना है।
झांसी और सिंधिया परिवार का यह नया रिश्ता मध्यप्रदेश के नये राजनीतिक समीकरण खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके बाद मध्यप्रदेश में सिंधिया की ताकत को सर्व स्वीकार्य नेता के रूप में सामने रखने में मदद मिलेगी। ग्वालियर चंबल की राजनीति में भी नये बदलाव और समीकरणों के साथ बांधने के प्रयास शुरू हो जायेंगे। आने वाली राजनीति के बदलाव के साथ हमको यह भी याद रखना होगा कि सिंधिया के एक राजनीतिक चातुर्य ने देश के इतिहास को नये समीकरण देने का प्रयास किया है। झांसी और ग्वालियर का यह नया समझौता सिंधिया को नया कद तो देगा ही भाजपा के राजनीतिक समीकरणों को नूतन राह भी दिखायेगा।