सरकार ब्यूरोक्रेसी के कब्जे में तब सक्रिय हुई भाजपा

भोपाल ( विशेष प्रतिनिधि )।  मध्य प्रदेश भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं की आपसी मुलाकात राजनीतिक गलियारों में खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। अब यह चर्चा राजनीति के गलियारों से वल्लभ भवन के गलियारों तक पहुंच गई है। शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य तथा केंद्र के कुछ नेताओं के बीच मुलाकात का यह सिलसिला मूलतः भाजपा में किसी बड़े बदलाव की आहट का संदेश है। जिस प्रकार सूत्रों का संदेश मिल रहा है उससे यह साफ हो रहा है कि प्रदेश की शिवराज सरकार ब्यूरोक्रेसी के शिकंजे में फंसती जा रही है। कुछ नेता जो आज भाजपाई है लेकिन पहले कांग्रेसी थे उनकी अत्यधिक सक्रियता भी भाजपा नेताओं के लिए चिंता का कारण है।  केंद्र की राजनीति में प्रभाव रखने वाले कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल प्रदेश में कुछ दिनों से सक्रिय हैं। सूत्र बताते हैं कि इस सक्रियता का परिणाम समन्वय समिति का गठन हो सकता है।

पिछले दो-चार दिन से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय की राजधानी में सक्रियता चर्चा का विषय है। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे सुरेश सोनी के साथ उनकी मुलाकात कई राजनीतिक मायने लिए रही है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के यहां भोजन और कद्दावर मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के यहां मुलाकात भी किसी राजनीतिक संकेत की आहट है। इसके बाद डॉ मिश्रा का भूपेंद्र सिंह से मिलना। इन्हीं नेताओं की प्रभात झा के साथ मुलाकात तथा आपस में मुलाकात के कई दौर किसी विशेष राजनीतिक घटना का संकेत हो सकते हैं। राजनीतिक समीकरणों में यह भी उल्लेखनीय पक्ष है कि सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश का भोपाल केंद्र ही है। शिव प्रकाश बंगाल चुनाव में वहां के संगठन प्रभारी के रूप में कार्य कर रहे थे जबकि कैलाश विजयवर्गीय प्रभारी महासचिव के रूप में पश्चिमी बंगाल चुनाव को देख रहे थे। शिव प्रकाश का भोपाल में होना और कैलाश विजयवर्गीय का सक्रिय होना भी एक राजनीतिक संदेश है।

हालांकि सूत्रों का कहना है कि नेताओं की आपसी मुलाकात कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल की सक्रियता के बाद महत्वपूर्ण हो जाती है। यह दो ही नेता ऐसे हैं जिनकी प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ कभी भी सीधी चर्चा हो जाती है। पार्टी प्रमुख जगत प्रकाश नड्डा इनसे मिलने में ज्यादा वक्त इंतजार नहीं कराते। इसलिए भी मध्य प्रदेश की राजनीति में इन मुलाकातों की चर्चा हो रही है।

यह चर्चा भी राजनीतिक गलियारों से वल्लभ भवन के गलियारों के बीच घूमने लग गई है कि शिवराज सरकार में कोरोना काल के वक्त राजनीतिक नेतृत्व की बजाए अधिकारियों का अधिक दबदबा और बोलबाला रहा है। जिसका प्रभाव सीधे तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ा है। पिछले दिनों इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय के कहे अनुसार काम न होने के समाचार प्रकाशित हुए थे। वहां कांग्रेस से आए तुलसी सिलावट और कलेक्टर मनीष सिंह की अधिक चलने जैसी स्थिति रही है। प्रदेश की राजनीति में ऊंचा कद रखने वाले कैलाश विजयवर्गीय कि इंदौर में ही अनदेखी हो यह राजनीति प्रदेश के अन्य किसी नेता को स्वीकार नहीं हो सकती। यहीं से मेल मुलाकात और दबाव की राजनीति का सिलसिला शुरू हुआ है।

भाजपा के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि शिवराज सरकार के कामकाज से कोई निराशा नहीं है। बल्कि कोरोना प्रबंधन, प्रधानमंत्री के निर्णयों के क्रियान्वयन तथा जन सामान्य के लिए बनाई गई योजनाएं शिवराज के ग्राफ को बढ़ाने में ही सहायक हो रही है। इसके उपरांत अधिकारियों की अत्यधिक सक्रियता और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी घटने से यह असंतोष उभरता दिख रहा है। भाजपा के सूत्र कहते हैं कि इसका पटाक्षेप समन्वय समिति के गठन से ही हो सकता है। यहां उल्लेख करने की बात यह है कि सरकार और संगठन के बीच में बनी कोऑर्डिनेशन कमेटी में सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी जैसे दिग्गज स्वर्ग सिधार गए हैं तो जयंत मलैया और राजेंद्र शुक्ला जैसे नेता मंत्रिमंडल के सदस्य नहीं है। इसलिए समन्वय समिति के गठन और इसमें कुछ प्रमुख नेताओं के शामिल हो जाने की चर्चाएं शुरू हो चुकी है। यह निर्णय शिव प्रकाश जी को लेना है जो केंद्रीय संगठन महामंत्री से सहमति उपरांत लिया जा सकता है।

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