सदस्यता अभियान प्रभारी का मतलब यह नहीं कि प्रदेश से दूर हो गये
भोपाल। [विशेष प्रतिनिधि] मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता, सक्रियता और संपर्क इतने अधिक हैं कि पार्टी नेतृत्व जितने भी प्रयास करता है उन्हें रास्ते से भटका नहीं पा रहा है। उनकी अनदेखी करने का तो सवाल ही नहीं उठता है। मध्यप्रदेश में जब चुनाव में हार के बाद शिवराज के विस्थापन की बात सामने आई तो बिना देरी किये उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया गया। अब उन्हें सदस्यता अभियान जैसे महत्वाकांक्षी अभियान का प्रभारी बनाया गया है। इस नियुक्ति से कुछ लोग उनको प्रदेश से दूर करने की मंशा से जोड़कर देख रहे हैं। वैसे शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की सरकार न गिराने की बात कह कर यह संदेश दे चुके हैं कि प्रदेश में वेकेंसी नहीं है। फिर अब उनके दिल्ली में काम देने की भावना को उनके प्रदेश से परे राजनीति करने से जोडकर देखा जा रहा है जिसे अभी सही नहीं कहा जा सकता है।
शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक विशेषता यह है कि उन्हें जो भी कार्य पार्टी ने दिया वे उसे पूरा करने के लिए परिश्रम करते हैं। जब उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया तब वे बिना काम के पदाधिकारी थे। विभिन्न खास अवसरों में शिवराज को प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी प्रमुख अमित शाह के साथ ही देखा जाता रहा है। प्रचंड जीत के बाद कार्यकर्ताओं का अभिवादन के वक्त भी शिवराज का उनके साथ होना यह दर्शाता है कि संगठन और सरकार शिवराज की लोकप्रियता को समझती है।
एक प्रसंग यह भी है। उनके पिताश्री के निधन के समय शेक व्यक्त करने वालों में प्रमुख नेता तो थे ही आम कार्यकर्ता भी सुदूर इलाकों से पहुंचा था जो उनकी लोकप्रियता का उदाहरण है। प्रदेश में कमलनाथ सरकार के गिरने की संभावना को शतप्रतिशत मानने वालों की संख्या हालांकि कम नहीं है लेकिन यह भी मानने वालों की कमी भी नहीं है कि यह सरकार यूं ही नहीं गिराई जा सकती है। नेताओं के बयान महौल बनाने के लिए होते हैं। फिर भी एक राजनीतिक पक्ष यह भी है कि प्रदेश की सरकार यदि गिरती है तब मुख्यमंत्री कौन होगा। भाजपा के कई नेता यह मंशा पाले हुये हैं कि वे अगली सरकार का संचालन कर सकते हैं। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव खुद को स्वभाविक दावेदार मान रहे हैं। कैलाश विजयवर्गीय के बारे में यह धारणा है कि वे बंगाल के बाद प्रदेश के मुखिया हो सकते हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर दिल्ली के चहेते हैं इसलिए उनकी संभावना की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इन सभी नेताओं के समर्थक यह माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान तो सदस्यता अभियान का प्रभारी बनाया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि संगठन शिवराज को केन्द्रीय नेतृत्व का हिस्सा बनाना चाहता है और प्रदेश का नेतृत्व किसी दूसरे नेता को दिया जा सकता है। लेकिन शिवराज को जानने वाले यह मान सकते हैं कि जब तक उन्हें कोई प्रभावी जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी तब तक उनकी प्रदेश से रवाना कराना कठिन मिशन है।
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा का अध्यक्ष बनने की शिवराज में कितनी संभावना है। यहां यह याद रखना होगा कि मिशन मोदी आखिर क्या है। भाजपा को नीचे तक पहुंचाने का लच्य है। अमित शाह ने परिश्रम की पराकाष्ठा करके इसे आगे बढ़ाया है। शिवराज में यह क्षमता है। लेकिन अभी उनका नाम अध्यक्ष के लिए सामने नहीं आया है। इसलिए वे प्रदेश से अभी दूर नहीं हुये हैं।