सत्ता जाने के बाद भाजपा में गुटबाजी चरम पर प्रभावित हो सकता है विस सत्र प्रबंधन
भोपाल। [विशेष प्रतिनिधि] मध्यप्रदेश में शिवराज की सत्ता से बेदखली के बाद बनी कमलनाथ सरकार को अस्थिर और कमजोर सरकार माना गया था। लेकिन भाजपा के कुछ नेताओं के अन्दरखाने में समर्थन के कारण यह सरकार ताकतवर होती जा रही है। इसके कारण भाजपा में गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है और चरम पर पहुंच गई है। यह भी कहा जा रहा है कि अपने मामलों की जांच न हो इसके लिए कमलनाथ को समर्थन दिया जाता है। अभी तक हुये विधानसभा सत्रों में नेता प्रतिपक्ष की अनदेखी करने को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। विधानसभा सत्र के चंद दिन पहले तक रणनीति बनाने के लिए कोई बैठक न होने के पीछे भी गुटाबजी को ही देखा जा रहा है। संगठन के चुनाव भी इसी के आधार पर प्रभावित हो रहे हैं। इसको लेकर केन्द्रीय नेतृत्व चिन्ता भरी नजरों से देख रहा है।
शिवराज का सत्ता से हटना एक संयोग था। क्योंकि भाजपा को प्रदेश में नकारा नहीं गया था। कुछ नेताओं की हरकतें और टिकिट वितरण में गलतियों के कारण शिवराज की सरकार चली गई। इसका सीधा नुकशान भाजपा को हुआ है। संगठन सत्ता के कारण कमजोर हो गया था और सत्ता जाने के बाद भी संगठन से शिवराज अपना कब्जा छोडऩे को तैयार नहीं हुए। अब भी कई बार समानान्तर संगठन चलता हुआ दिखाई देता है। नेता प्रतिपक्ष का चुनाव हो जाने के बाद उसे अधिकार नहीं मिले और अपेक्षा की जाती रही कि वे सदन में बेहतर प्रबंधन करें और सरकार को घेरे। दो विधायकों का कांग्रेस के पाले में जाना और फिर वापसी करना भी कुछ नेताओं के इशारे पर जाना बताया जा रहा है।
सदन में पूर्व संसदीय कार्यमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा का प्रफारमेंस अच्छा रहा तो टेंडर घोटाले की आंग से उन्हें भगाने का प्रयास किया गया। उनके सहायकों को निशाने पर लिया गया। जबकि सरकार ने टेंडर घोटाले में शामिल कंपनी को हजारों करोड़ का काम देकर उपकृत कर दिया। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव जुझारू नेता और क्षेत्र में खासी पकड़ रखने वाले नेता है लेकिन वे विधायक दल में अपनी बात नहीं मनवा सकते हैं। यही कारण है कि वे सदन में सरकार को नहीं घेर पा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि डा. मिश्रा का साथ मिलने के बाद भी नेताप्रतिपक्ष अपना बेहतर नहीं दे पा रहे हैं। यह गुटाबजी का परिणाम है। सरकार बनने की संभावनाओं के कारण चाबी नहीं देने की मानसिकता ने मध्यप्रदेश मे कमलनाथ सरकार की आयु को एक साल करवा दिया है। कर्नाटक में ताकतवर वापसी और महाराष्ट्र में संभावनाओं पर पानी फिरने के बाद केन्द्रीय नेतृत्व भी मध्यप्रदेश की ओर देख रहा है। जब उसने देखना शुरू किया तो उसे मध्यप्रदेश भाजपा और विधायक दल का दृश्य चिन्ताजनक दिखाई दे रहा है।
भाजपा संगठन के चुनाव के बारे में भी नेताओं में भ्रम की स्थिति है। इसमें यह चिन्ता जताई जा रही है कि दिल्ली में मंत्री और पदाधिकारी मध्यप्रदेश को लेकर अधिक आशावान नहीं हैं। यहां गुटाबाजी कमलनाथ की मददगार हो रही है यह संदेश चला गया है। इसलिए संगठन चुनाव के परिणाम ही तय करेंगे कि यहां भाजपा की शैली क्या होगी? लेकिन जानकारों का मत है कि जब तक शिवराज को कहीं स्थापित नहीं किया जायेगा प्रदेश में भाजपा की जड़ें ऐसे ही हिलती रहेगी। पन्द्री साल का मुख्यमंत्री छोटी बात नहीं होता। यह आने वाले सत्र में भी देखने को मिलेगा।