संबित पात्रा का मध्यप्रदेश में पहला मैनेजमेंट फ्लॉप
भोपाल। [विशेष प्रतिनिधि] मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मीडिया प्रबंधन और मीडिया के सामने भाजपा की बात रखने के लिए दिल्ली से आये अखिल भारतीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने पहली बार मीडिया के एक विशेष समूह को काकटेल डिनर पर बुलाया। ऐसा चुनावी प्रबंधन में होता रहता है। लेकिन इसके बाद मीडिया के इस समूह ने मुख्यमंत्री पर हमला बोलना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भी शिवराज के खिलाफ सीधी पोस्ट डालकर उन्हें कमजोर दिखाने का प्रयास हुआ है। कहा जा रहा है कि पहला प्रबंधन ही फेल हो गया। पहले कुछ समझ कर ऐसा प्रयास किया जाता तो कम से कम यह संदेश नहीं जाता कि पात्रा शिवराज पर हमले का कारण बन गये।
पता चला है कि भोपाल के एक बड़े होटल में दर्जन भर पत्रकारों को बुलाकर काकटेल पार्टी के साथ भोजन दिया गया। जिनको बुलाया गया वे अधिकांश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में परदे के पीछे और कुछ परदे पर भी विरोधात्मक बातें करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनको विवादास्पद प्रश्र पूछने की आदत ही है। एक तो ऐसे हैं जो कांग्रेस के लिए घोषित रूप से काम करते हैं। विशेषकर तब जब अरूण यादव कांग्रेस के मुखिया हुआ करते थे। वे टिप्स भी देते थे और रणनीति बनाने में सहयोग भी देते रहे हैं। कई मंत्रियों के नाम से सवाल पूछने के बाद उनसे मिलने की महिमा वाले नाम भी संबित से मिले।
हालांकि सभी प्रवक्ताओं का काम ही सरकार की महिमा को रखना और विरोधियों को सन्तुष्ट करना ही हिस्सा रहता है। इसलिए प्रदेश भाजपा ने भी अपने प्रवक्ता की बात को माना और बड़े होटल का खर्चा उठाया।
दूसरी तरफ यह जानकारी भी मिली है कि संबित पात्रा को पता ही नहीं था कि कौन उनके साथ हैं और पुराने परिचय के आधार पर इनको बुला लिया गया। जो भी हो यह माना जा सकता है कि कोई भी प्रयास चुनाव प्रबंधन का हिस्सा ही होंगे। पूरे आयोजन में छक कर पी गई और उतरते ही शिवराज के खिलाफ लिखने का सिलसिला जारी रहा। सोशल मीडिया पर पोस्ट आते ही सैंकड़ों लोगों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। कांग्रेस के नेताओं को इसके बाद सत्ता दिखाई देने लग गई। वे गरियाने लगे। सवाल यह उठाया जाने लगा कि आखिर संबित पात्रा को इतनी जल्दी क्या थी शिवराज विरोधियों को बुलाने की? यह सवाल भी उठाया जाने लगा कि कहीं दिल्ली ने ऐसा समझा कर तो नहीं भेजा गया है। मध्यप्रदेशर में कनार्टक जैसी राजनीति तो नहीं होने जा रही है। जहां येदुरप्पा का उपयोग भी कर लिया गया और सात विधायकों का जुगाड़ भी नहीं किया गया। लेकिन चाहे अनचाहे संबित पात्रा मुख्यमंत्री की आलोचना का आधार बन गये।
यह जानने की बात है कि प्रदेश में लाभ पाने वालों के नाम बहुत हैं। हमेशा यह चर्चा रहती है कि सरकार अनेक ऐसे लोगों को उपकृत करती रही है जिन्होंने भी थोड़ी सी आंख दिखाने का प्रयास किया। जब कंप्युटर बाबा को विरोध में खड़े होने से रोकने के लिए राज्यमंत्री का ओहदा दे दिया जाता है तो चैनलों और कालमों वालों को रोकने के लिए थैलियां क्यों नहीं खोली जा सकती हैं? लेकिन एक वामपंथी पत्रकार की कही बात याद आती है। जिन्होंने कहा था कि हमें तो सब जानते हैं कि हम किस विचारधारा के हैं। इसके बाद भी एकता परिषद में बैठाकर राज्यमंत्री बनाया जा रहा है तब हम तो अपना ही काम करेंगे। यही हाल यहां हुआ है। जिनको लाभ देना हैं दें लेकिन वे तो अपना ही काम करेंगे? संबित पात्रा ने इस काम को अंजाम राष्ट्रवादी पत्रकारों से मिलने से पहले ही दे दिया और यह स्थिति बन गई। मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस बात को लेकर चर्चा कर रहा है कि आखिर पहले विरोधियों को बुलाने की क्या तुक थी? कम से कम पहले भोपाल को जान तो लिया होता। तभी यह खबर निकल रही है कि दिल्ली शिवराज को ताकतवर देख पाने की स्थिति में नहीं है और संबित पात्रा ने पहली दोस्ती विरोधियों के साथ ही की है।