‘शिवराज’ को क्यों दिखा तीन जीत में ‘चमत्कार’
यह कोई भी नहीं समझ पा रहा है कि मनमोहन सरकार के वक्त की महंगाई की आलोचना करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके कार्यकाल की महंगाई क्यों नहीं दिख रही है? इस महंगाई का लॉजिक क्या है कि सभी भाजपाई चुप हैं? यदि कोरोना में सरकार बजट बिगडऩा इसका कारण है तब आम व्यक्ति का बजट कौन सा सुधर गया? इस छाया में उपचुनाव हुए हैं। चारों उपचुनाव कोरोना की भेंट चढ़े नेताओं के कारण हुए हैं इसलिए कोरोना की याद इस चुनाव में आना स्वभाविक है और उन दिनों के भयावह दौर की याद आकर सरकार के पक्ष में खुलकर आने की संभावना तो कम से कम नहीं बनती है। जिन दो विधानसभा सीटों को भाजपा ने जीता है वे परम्परागत रूप से कांग्रेस की हैं। पृथ्वीपुर के लोकप्रिय विधायक रहे बृजेन्द्र सिंह राठौर की मृत्यु और उनके पुत्र का चेहरा भी जीत का आधार नहीं बन पाया। मतलब शिवराज की बात पर भरोसा किया गया। संगठन के मुखिया वीडी शर्मा की रणनीति को स्वीकार कर कार्यकर्ता ने आतंक की सीट को मुक्त कराने की अपील की जिसे स्वीकार कर लिया गया लगता है। जो चमत्कार से कम कहां हो सकता है?
जोबट आदिवासी बाहुल सीट है। यहां पर भाजपा की जीत का इतिहास ढ़ूढऩे से भी मिलना कठिन है। इसलिए भाजपा की रणनीति काम आ गई। कांग्रेस की पूर्व विधायक को लाकर भाजपा ने उन पर दांव लगाया और जीत का चमत्कार हो गया। यह शिवराज की रणनीति की जीत है। ठीक इसी प्रकार का चमत्कार कांग्रेस को भी लगा होगा जब वह रैगांव में 31 साल बाद जीती। लेकिन एक सीट गंवाने का गम उसे चमत्कार के रूप में व्याख्या करने का अवसर नहीं दे रही है। एक बात इस चमत्कार के रूप में यह भी लगी होगी? मोदी की महंगाई को शिवराज के जादू ने परास्त कराकर जीत दिलवा दी यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है।