शिवराज की लाड़ली बहना योजना बनी राजनीतिक वरदान… जीत की गारंटी हैं महिला मतदाता
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में लाडली बहना योजना के रूप में भारत की राजनीति में एक ऐसा हथियार हाथ में लग गया जो किसी वरदान से कम नहीं है। इसके बाद महिला मतदाताओं ने सभी बाधाओं और धाराओं को तोड़कर एक साथ मतदान किया है। जिससे सरकार बचे रहने की स्थिति बनी है।
सुरेश शर्मा भोपाल।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में लाडली बहना योजना के रूप में भारत की राजनीति में एक ऐसा हथियार हाथ में लग गया जो किसी वरदान से कम नहीं है। इसके बाद महिला मतदाताओं ने सभी बाधाओं और धाराओं को तोड़कर एक साथ मतदान किया है। जिससे सरकार बचे रहने की स्थिति बनी है। इससे पहले भी तीन तलाक बिल ने बिहार विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के पक्ष में सफलता दिलाई थी। जिसका लाभ नीतीश कुमार को भी हुआ था। शिवराज सिंह चौहान ने इसे संस्थागत रूप दिया और इसके बाद उसे अन्य राज्यों ने भी आजमाया। मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ ने भी महतारी योजना के रूप में इसे शुरू करने का वादा किया था जिससे वहां भी भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली थी। अभी हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भी इसी योजना के कमाल की चर्चा है। तब झारखंड विधानसभा के चुनाव में भी सरकार ने इसे पहले ही चालू किये जाने का लाभ दिया है। यह योजना महाराष्ट्र सरकार ने भी शुरू कर दी थी और महिलाओं के खाते में पन्द्रह सौ रुपये महीना के हिसाब से जमा होना शुरू हो गया था। राजनीतिक रूप से वरदान बनी यह योजना चुनाव सफलता का आधार बन गई है। राजनेताओं ने इससे पहले आदिवासी, दलित और इन दिनों ओबीसी वोट बैंक को चुनाव जीतने का आधार बनाया हुआ था। उसका अपने विचार और समय के हिसाब से उपयोग किया जाता था। मुसलमान वोट बैंक की लम्बी पारी की काट के लिए इस समय हिन्दू वोट बैंक की रचना पर भी काम चल रहा है। महाराष्ट्र की बड़ी जीत के साथ दो फैक्टर एक साथ जुड़ गये। हिन्दूत्ववादी विचार और महिला वर्ग।
भारत की चुनावी राजनीति में महिलाओं के रूप में एक नया वोट बैंक खड़ा हुआ है। जब तीन तलाक का बिल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में पारित कराकर कानून बनाया था उस समय मुस्लिम महिलाओं ने खुलकर मोदी को वोट किया था। महिला आरक्षण बिल के बाद भी महिलाओं ने भाजपा का समर्थन तेजी से किया। इसे संस्थागत रूप दिया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने। उन्होंने सरकार में रहते हुए ही महिलाओं को 3 हजार रुपये दिये जाने की योजना शुरू की। पहले क्रम में एक हजार रुपया और बाद में उसे बढ़ाकर 1250 रुपये का दिये गये। विधानसभा चुनाव तक महिला मतदाताओं को यह विश्वास हो गया था कि शिवराज इस योजना को जारी रखेंगे? यह विश्वास उनकी इससे पहले की ट्रेक के आधार लिया गया। हालांकि कमलनाथ ने 1500 रुपये देने का वादा किया लेकिन किसान कर्जमाफी करने की उनकी योजना के कारण उन पर विश्वास नहीं करते हुए शिवराज को सरकार बनाने का एक और मौका देते भाजपा के पक्ष में मतदान किया। जब शिवराज को सीएम नहीं बनाया गया तब लाडली बहनों के रोने संबंधित अनेकों समाचार उन दिन आये भी। इसका लाभ भाजपा को मिला। मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ के भी आम चुनाव थे। यहां भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में महतारी योजना के रूप में लाडली बहना योजना को शामिल किया गया था। उसका भरपूर लाभ मिला और कांग्रेस की सरकार वापसी की संभावना को महिला मतदाताओं ने ध्वस्त कर दिया था।
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव से पहले मध्यप्रदेश की तर्ज पर माझी लडकी बहना योजना शुरू की थी। चुनाव से पहले इसकी पांच किस्तें बहनों के खाते में जमा हो चुकी थी। पन्द्रह सौ रुपये महीना की इस योजना ने प्रदेश की महिलाओं में वोट क्रान्ति पैदा कर दी थी। जिसका असर चुनाव में साफ दिखाई दिया है। देश की राजनीति में वरदान बन सामने आई इस योजना ने अभी तक प्रचलन में आये वोट बैंक को प्रभावित किया है। जाति, धर्म और एक दूसरे के खिलाफ खड़े करने की अन्य योजनाओं से बेहतर यह महिला सशक्तिकरण की योजना है और सभी इसमें सभी धर्म, जाति वर्ग की महिलाएं साथ दिखाई देती हैं। महिलाओं को सशक्त करने की बात आदिकाल से आ रही है। महिलाएं जितनी सशक्त होंगी बच्चों कर बुनियाद उतनी ही गंभीर और भविष्य के लिए कल्याणकारी होगी। इसलिए भी इस योजना को जारी करने को रेवड़ी कहने में डर लगेगा। महाराष्ट्र चुनाव में हिन्दूत्व ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। योगी आदित्यनाथ के नारे कटेंगे तो बटेंगे ने मतदाताओं में उत्तेजना भर दी थी। जिस प्रधानमंत्री ने एक हैं तो सेफ हैं कह कर वोट बनाया और ईवीएम मशीनों की ओर मोड़ दिया। जिसका असर परिणाम के दिन में भी दिखाई दिया।
महाराष्ट्र चुनाव में उद्धव ठाकरे भी एक फैक्टर के रूप में पूरे चुनाव में रहे हैं। वे खुद अपने फैक्टर होने का लाभ ले नहीं पाये। वे ले भी नहीं सकते थे। क्योंकि बाल ठाकरे के पुत्र के रूप में उनकी भूमिका का महायुति और अघाडी दोनों पर असर होने वाला था। अघाडी उनके पिता की छवि को अपने पक्ष में मोड़ लेती तो उसे इसका लाभ हो जाता। युति ने इसका पूरा प्रयोग किया और बाल ठाकरे की छवि को अपने साथ जोड़ लिया। प्रधानमंत्री ने उनकी छवि की तारीफ कर महाराष्ट्र के लिए उनके योगदान की सराहना की। यह ठीक उसी प्रकार की सराहना रही जिस प्रकार की भाजपा वाले वीर सावरकर की करते हैं। कांग्रेस उनका विरोध करती है। अघाड़ी का कोई भी नेता जिसमें कांग्रेस या शरद पवार भी शामिल हैं बाल ठाकरे की तारीफ नहीं कर पाये। खुद उद्धव ठाकरे ने भी अपने पिता की राजनीति और उनकी विशेषता का उल्लेख नहीं किया। प्रधानमंत्री के बयान के बाद एकनाथ शिंदे ने बाल ठाकरे को अपना आदर्श बताया और उनकी राजनीति का असल उत्तराधिकारी बताया। इससे यह संदेश गया कि उद्धव ठाकरे बाला साहब की संपत्ति का उत्तराधिकारी तो हो सकता है लेकिन राजनीति का नहीं। इसका लाभ महायुति के खाते में चला गया। यहां भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा प्लस हो गई जिससे बहुसंख्यक समाज के वोट एकतरफा मिल गये। इसी ने महाराष्ट्र में धूम मचा दी।
झारखंड की राजनीति को भी लाडली बहना योजना ने ही यथास्थिति में बनाये रखा। यहां भी हेमंत सरकार की वापसी का बड़ा आधार लाडली बहना योजना ही है। जिसको स्थानीय नाम से लागू किया गया था। इसमें प्लस हो गया कल्पना के वे आंसू जो हेमंत के गिरफ्तार करते समय आदिवासी मतदाताओं ने देखे थे। इन दो घटनाओं ने झारखंड की राजनीति का समीकरण ही बदल दिया। भाजपा ने यहां पर मुस्लिम मतदाताओं को उत्तेजित कर दिया। बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोरशोर उठाया। भाजपा का सोचना था कि इसकी प्रतिक्रिया में हिन्दू मतदाता एक साथ आ जायेगा। लेकिन आदिवासी बाहुल इस क्षेत्र के लोग तो पहले से ही आदिवासी अस्मिता के नाम पर वादा कर चुके थे। ऐसे में मुसलमान और विरोध में एकत्र हो गया। यही कारण है कि भाजपा को पहले से भी कम सीटें मिली हैं। झारखंड की चुनावी लड़ाई में भी महिलाओं का बड़ा योगदान देखा जा रहा है। कुछ राज्यों में उपचुनाव थे जिनका पक्ष सरकार के साथ ही रहा है। मध्यप्रदेश में भाजपा ने अपनी सीट तो अपने पास ही सुरक्षित कर ली लेकिन दलबदल कर आये रामनिवास की सीट पर चुनाव हार गये। जबकि पूरी सरकार और संगठन यहां लग गये थे। बंगाल में ममता का जादू या दबाव जो भी बरकरार है। वहां कोई अन्य दल जोर लगा ही नहीं पाया।
उत्तरप्रदेश की नो सीटों की चर्चा राजनीतिक रूप से जरूरी है। लम्बे समय बाद मुस्लिम बाहुल सीट कुन्दरकी पर भाजपा कीी जीत हुई है। यहां एक हिन्दू प्रत्याशी रामबीर सिंह खड़े हुए थे उन्हें एक लाख 70 हजार से अधिक वोट मिले जबकि सपा के प्रत्याशी को साढ़े पच्चीस हजार ही वोट मिल पाये। वोट बंट गये। यह जीत दो मायने में खास रही पहली मुस्लिम बाहुल सीट थी और दूसरे डेढ़ लाख के करीब आकंड़ा जा रहा था। इससे प्रदेश में भाजपा ने सपा का कचरा कर दिया। लोकसभा चुनाव के समय जो वातावरण बनाया था उसका तिलिस्म तोड़ दिया गया। जिस प्रकार से अयोध्या जीत को पेश किया गया था उससे भाजपा को चिड़ाया गया यह तो था ही हिन्दू मतदाताओं को भी शर्मिंदा किया गया था। इसलिए योगी की विशेष रणनीति ने काम किया। आसपास के मतदाताओं का बुलाकर बुर्का योजना में मतदान कराने की सपाई योजना धरी रह गई जिसने यूपी के राजनीतिक समीकरणों को नई दिशा दे दी। सपा ने केवल दो सीटें ही जीती जबकि भाजपा और एनडीए ने सात स्थान पा लिये। कांग्रेस चुनाव में ही नहीं थी।
संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)