शास्त्री, संजय, सिंधिया और पायलट की फेहरिस्त में जुड़ना था नया नाम?

नई दिल्ली ( विषेश प्रतिनिधि )। लगातार यह बहस चल रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में पंजाब सरकार द्वारा गंभीर चौकी गई है। इस पर राजनीति दोनों पक्षों की ओर से की जाकर चुनावी लाभ और नुकसान को कम करने की रणनीति पर काम हो रहा है  अभी तक इस बात की घोषणा नहीं हुई है कि आखिरकार इस लैब्स का मूल मकसद क्या था? क्या लाल बहादुर शास्त्री, संजय गांधी, माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट की फेहरिस्त में उन्हीं लोगों द्वारा नरेंद्र मोदी का नाम जोड़ने की योजना थी? या फिर किसान आंदोलन की आड़ में राष्ट्र विरोधी तत्वों का समूह पंजाब में फिर खूनी खेल खेलने की तैयारी कर रहा है? या महज राजनीति के लिए यह सब था? इन सब बातों की जांच होना बेहद लाजमी है।

किसी भी शासन अध्यक्ष का सुरक्षा तंत्र बहुत गहरा होता है। उसमें इस प्रकार की चूक जो पंजाब में हुई है जिसे अक्षम में मानी जाता है जिसकी गंभीर जांच की आवश्यकता प्रतिपादित हो रही है। गृह मंत्रालय रिपोर्ट तलब कर रहा है यह एक बात है अन्यथा एनआईए के माध्यम से उन कथित आंदोलनकारी किसानों से पूछताछ की जाना चाहिए। जिन्होंने प्रधानमंत्री का रास्ता रोकने का प्रयास किया था। वह किसके इशारे पर वहां तक पहुंचे थे और सुरक्षा व्यवस्था पर सेंध लगाते हुए प्रधानमंत्री के रास्ते में आ गए थे। इससे यह पता चल जाएगा कि उन्हें खालिस्तान समर्थकों ने भेजा था? कांग्रेस के इशारे पर वह सड़क पर आए थे या फिर किसान समस्या के समाधान का उन्हें यह रास्ता विनय ने सुझाया था? इस जांच की घोषणा में इतना समय लगने के पीछे के रहस्य की जानकारी फिलहाल सामने नहीं आ रही है।

राजनीतिक विवाद होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बठिंडा हवाई अड्डे पर तैनात अधिकारियों से कहा कि अपने "मुख्यमंत्री से धन्यवाद कह देना मैं भटिंडा हवाई अड्डे पर जिंदा लौट आया हूं" इस कथन के न केवल राजनीतिक मायने हैं अपितु प्रशासकीय मामले भी निहित है। किसी भी शासन अध्यक्ष के बारे में इस प्रकार की सुरक्षा चूक सहज प्रतिक्रिया का हिस्सा नहीं होती। लेकिन पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी की ओर से इस बारे में सहज और निम्न स्तरीय प्रतिक्रिया देकर अपनी कालीख को धोने का प्रयास किया जा रहा है। रैली में भीड़ न जुटने का बहाना सुरक्षा के साथ चूक का जवाब नहीं हो सकता। तभी यह आशंका उत्पन्न होती है कि क्या उन्हीं षड्यंत्रकारी तत्वों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम उसी फेहरिस्त में जोड़ने का खेल खेला गया था जिनकी न तो जांच सामने आई और न ही मौत के कारणों का पर्दा उठ पाया? उन नामों के बारे में प्राय चर्चा होती है  संदेह उत्पन्न होता है और संदेह के साए में ही बात समाप्त हो जाती है। ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री जिनकी हत्या या मौत क्या थी पर्दा नहीं उठ पाया? रोजाना की तरह हवाई प्रशिक्षण संजय गांधी की मौत का कारण बन गया इसके राजनीतिक निहितार्थ सामने नहीं आ पाए? माधवराव सिंधिया को नए हेलीकॉप्टर के बाद भी दुर्घटना का शिकार होना पड़ा यह सवाल आज भी बिना उत्तर के हैं? यहां उल्लेख करने वाली बात यह है कि जिस कंपनी से यह हेलीकॉप्टर लिया गया था वहां हेलीकॉप्टर दुर्घटना के एक नहीं कई मामले दर्ज है। राजेश पायलट जैसे प्रखर नेता और कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती देने वाले इस शख्स की जिस प्रकार मौत हुई वह भी रहस्य के  गर्त में धंसी हुई है? क्या इसी फेहरिस्त में एक नाम और जोड़ने की योजना पंजाब में बनाई गई थी? इसकी जांच होना अनिवार्य है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा व्यवस्था निश्चित रूप से एसपीजी के अधीन रहती है। लेकिन एसपीजी सड़क या विभिन्न अंचलों में जनता को रोकने का काम नहीं करती। उसे स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी में दिया जाता है। जब भी प्रधानमंत्री या समकक्ष व्यक्तियों को सड़क मार्ग से जाना होता है तो उसकी सुरक्षा का किलेरेन्स स्थानीय पुलिस प्रमुख द्वारा दिया जाता है। इसलिए सुरक्षा की चूक के बारे में जिस प्रकार के हलके जवाब दिए जा रहे हैं, इन जवाबों से यह संदेह उत्पन्न होता है कि पंजाब में प्रधानमंत्री के विरुद्ध किसी न किसी प्रकार का षड्यंत्र रचा गया था। यह षड्यंत्र उनकी सभा को विफल करने के लिए हो सकता है? किसानों के द्वारा उन्हें नीचा दिखाए जाने का हो सकता है या फिर उनकी हत्या करवाने की योजना भी हो सकती है? इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखकर जांच करने की जरूरत महसूस की जा रही है। कांग्रेस के नेताओं द्वारा जो जवाब दिया जा रहा है वह जवाब इन्हीं षडयंत्र में सहभागी होने को इंगित करता है।

इस विषय पर कोई दो मत नहीं है कि किसान आंदोलन लंबे समय तक चला। इसमें किसानों की मौत हुई। साथ यह भी उतना ही सच है कि जिस प्रकार किसानों ने मांगे रखी थी केंद्र सरकार ने किसानों का सम्मान करते हुए उन मांगों को मांगने का काम किया, जिसके प्रति केंद्र सरकार की मंशा नहीं थी। किसानों ने केंद्र सरकार के साथ समझौता किया और अपना आंदोलन समाप्त किया। अब पंजाब में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के रूप में किसानों की आड़ लिए जाने की कितनी जरूरत है और कितनी नहीं है यह विषय निश्चित रूप से चर्चा का है? आंदोलनकारियों को विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र में है लेकिन इस प्रकार के अधिकार से जीवन सुरक्षा प्रभावित हो जाए ऐसा अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता। इसलिए यह गंभीर हो जाता है कि जिन तथाकथित किसानों ने प्रधानमंत्री का मार्ग रोकने के लिए जिस स्थान को चुना और जिस प्रकार का वातावरण बनाया इसके पीछे के कारणों की जांच अनिवार्य है। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी लग रहा है कि देश का एक बड़ा तबका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा आम लोगों के हित की रक्षा करते हुए बिचौलियों को समाप्त करने की कार्यशैली का विरोध कर रहा है। वे लोग आए दिन मोमबत्ती, असहिष्णुता, टुकड़े टुकड़े, आंदोलनजीवी या अर्बन नक्सली के रूप में सामने आते रहते हैं। वे तत्व किसी भी गंभीर विषय को हास्य विनोद या हल्का करके दिखाने में एक क्षण भी नहीं लगाते। ऐसे तत्व पंजाब सरकार की गंभीर चूक और कांग्रेस के राजनीतिक इरादों को भी इसी रूप में पेश करने का प्रयास कर रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button