विश्व’ विद्यालय से बड़ी होती है जनता ने दी वो ‘डिग्री’

भोपाल।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वविद्यालय से प्राप्त डिग्री पर आम आदमी पार्टी कुछ ज्यादा ही चिल्ल-पों कर रही है। अन्य विपक्षी दल भी गाहे-बगाहे मोदी की डिग्री का मामला उठाते हैं। जवाब में अन्य नेताओं की डिग्रियों पर भी सवाल उठता है। हम आमतौर पर यह कहते हैं कि जनता की अदालत में जो प्रमाण पत्र मिल जाता है उसके ऊपर ना तो न्यायालय का निर्णय होता है और ना ही विश्वविद्यालय की डिग्री। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जिन्हें स्पष्ट बहुमत की सरकार दो बार चलाने का जनता ने अवसर दिया है। उनका यह करिश्मा राजनीति के छात्रों के लिए सीखने के लिए अपने आप में एक दस्तावेज है। इसलिए जिन डिग्री धारियों की जनता में कोई घुसपैठ नहीं है वे जनमानस पर एक छत्र राज कर रहे नरेंद्र मोदी पर नाहक सवाल उठा रहे हैं। हम सब मानते हैं कि डिग्रियों का अपना एक महत्व होता है। लेकिन डिग्रियां अनुभव से बड़ी नहीं होती। देश में ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे जिन्हें भारत का सर्वोच्च अलंकरण मिला हुआ हो लेकिन उनके पास डिग्रियों का संग्रह नहीं है। तब क्या उनकी योग्यता पर हम सवाल उठा सकते हैं? इसलिए नरेंद्र मोदी की डिग्री की बात करना राजनीतिक रूप से दिवालियापन का ही संदेश है।

आप के सांसद संजय सिंह बार-बार इसी मुद्दे को उठाकर जनता के बीच जाने का प्रयास करते हैं। नरेंद्र मोदी देश के ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता है। उनकी वैश्विक लोकप्रियता का रिजल्ट पिछले दिनों ही जारी हुआ है। जिसका रिजल्ट विश्व की जनता के द्वारा जारी किया गया हो उस व्यक्ति से विश्वविद्यालय की डिग्री की बात करना कोई मायने नहीं रखता। इस प्रकार के उठाए गए सवालों पर जनता की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आती। आज भी जब 2024 में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं मोदी के मुकाबले में कोई नेता खड़ा दिखाई नहीं दे रहा। यदि यूं कहें डिग्रियों का अथाह भंडार रखने वाले अरविंद केजरीवाल भी उनके सामने सर्वाधिक बौने नेताओं में से एक है। उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव उनके सामने लड़ा था परिणाम सबको पता है। ऐसे में आप के नेताओं द्वारा जनता की मूल समस्याओं की बात करने की बजाय डिग्रियों पर चर्चा करना राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने का अवसर देती है। डिग्री तो वह भी होती है जो ईवीएम के माध्यम से जनता का प्रमाण पत्र लिए हुए हो।

भारत के विपक्ष की सबसे बड़ी विडंबना ही यही है कि वह नरेंद्र मोदी की मूर्ति भंजन का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन भूल यही है कि वे न तो विकल्प बनने की स्थिति में है ना ही विजन बताने की स्थिति में है। 2014 के राजनीतिक परिवर्तन को याद कर लीजिए। मोदी का गुजरात मॉडल और देश के बारे में उनका विजन बौद्धिक रूप से संपन्न प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का विकल्प बन गया था। इसलिए विपक्ष मीनमेख निकालने की बजाए सरकार की खामियां निकालें और अपनी विचारधारा के साथ देश के सामने विकसित भारत का अपना मॉडल पेश करें। इसी कमी के कारण देश के राजनीतिक अखाड़े में मोदी के मुकाबले का कोई पहलवान नजर नहीं आता। विपक्ष आत्ममंथन करें तथा मोदी का मूर्ति भंजन प्रयास बंद करते हुए देश के सामने अपना मॉडल पेश करें।

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