‘विपक्ष’ की नकारात्मकता में मोदी मौन का ‘रहस्य’
आज के संदर्भ में इन सभी सवालों का उत्तर खोजने की जरूरत है? इतने सवालों के बीच में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मौन निश्चित ही कोई न कोई रहस्य लिये हुये होगा। क्योंकि वे इसी प्रकार की राजनीति करने के अभयस्थ हैं। उनके सामने नकारात्मका का बादल खड़ा ही रहा है लेकिन उन्होंने उसे देखे बिना ही अपना काम जारी रखा है। कई बार सवाल अच्छे लगते हैं? उनमें सच्चाई भी दिखाई देती है लेकिन उसका दूसरा पक्ष देखने के बाद लगता है कि ये सही दिखने वाले सवाल भी षडयंत्र का हिस्सा हैं? वैक्सीन विदेश भेजने का ऐसा ही सवाल है। लेकिन तब वैक्सीन के प्रति देश में नकारात्मकता फैला रहा विपक्ष आज वैक्सीन की मांग कर रहा है तब लगता है तब भी राजनीति की जा रही थी और आज भी वही कर रहा है। वैक्सीन तब लगवाने में सहयोग होता तो उसे सुरक्षित रखने की रणनीति में विदेश भेजना संभवतया शामिल न भी होता? आज अमेरिका भारत की मदद इस दबाव में भी कर रहा है क्योंकि भारत ने बुरे दिनों में उसकी मदद की थी। जिस देश में विपक्षी उद्योगपतियों की आलोचना करके राजनीतिक लाभ लेने की मानसिकता रखते हो वहां अधिक उत्पादन का दबाव सरकार कितना बना सकती है?
फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मौन से कोई न कोई नया सामने आने वाला है। कोरोना की दवा बनाने में भारत की सफलता आने वाले दिनों में एक मिशाल बनने वाली है। क्या मोदी इसका इंतजार कर रहे हैं? वैक्सीन मामले में भारत विश्व में अपना स्थान बनाने वाला देश हो गया। इस सफलता के लिए क्या वैज्ञानिक और सरकार की आलोचना की जा सकती है? लेकिन शंकाओं की आड़ में यह आलोचना की गई। देश का प्रबुद्ध नागरिक नकारात्मकता को अपनी सफलता का मंत्र मानने वालों को रिजेक्ट करेगा ऐसी सभी ओर से अपेक्षा की ही जा रही है।