‘विपक्ष’ की नकारात्मकता में मोदी मौन का  ‘रहस्य’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। यह सच है कि मोदी सरकार की विज्ञापन नीति निराशाजनक है तब क्या आर्थिक पक्ष प्रभावित देख मीडिया के एक वर्ग द्वारा निराशा और केवल कमियों को ही परोसना उचति है? यह भी माना कि मोदी की लोकप्रियता अधिक होने के कारण विपक्ष का कोई भी नेता उनके सामने नहीं ठहर पा रहा है तब क्या यह उचित है कि मोदी मूरत को जनमानस में खंडित करने के लिए नकारात्मकता का ही सहारा लेना चाहिए? माना कि सोशल मीडिया का सबसे पहले राजनीतिक उपयोग 2014 के लोकसभा चुनाव में किया गया था लेकिन क्या यह उचति है कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए नित नये जुमले तैयार करके देश की जनता के मन में डर पैदा करने के लिए इसका उपयोग किया जाना चाहिए? जब देश विषम परिस्थितियों में फंसा है और व्यवस्थाएं छोटी पड़ रही हों तब व्यवस्था जुटाने में सहयोग व सलाह देना चाहिए या फिर मानिटरिंग के अधिकार का उपयोग करके उसमें बाधा डाली चाहिए? जब कार्यपालिका का काम न्यापालिका उस समय अपने हाथ में लेने का प्रयास करेगी जब कार्यपालिका को अधिक एकाग्र होने की जरूरत है तब व्यवस्थाएं सुधरेंगी या बिगड़ेंगी? यह आकंलन आज जरूरी है। क्या यह उचित है कि सभी ओर से निराशा और कमियां देखने का ही रास्ता अपनाया जाये?

आज के संदर्भ में इन सभी सवालों का उत्तर खोजने की जरूरत है? इतने सवालों के बीच में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मौन निश्चित ही कोई न कोई रहस्य लिये हुये होगा। क्योंकि वे इसी प्रकार की राजनीति करने के अभयस्थ हैं। उनके सामने नकारात्मका का बादल खड़ा ही रहा है लेकिन उन्होंने उसे देखे बिना ही अपना काम जारी रखा है। कई बार सवाल अच्छे लगते हैं? उनमें सच्चाई भी दिखाई देती है लेकिन उसका दूसरा पक्ष देखने के बाद लगता है कि ये सही दिखने वाले सवाल भी षडयंत्र का हिस्सा हैं? वैक्सीन विदेश भेजने का ऐसा ही सवाल है। लेकिन तब वैक्सीन के प्रति देश में नकारात्मकता फैला रहा विपक्ष आज वैक्सीन की मांग कर रहा है तब लगता है तब भी राजनीति की जा रही थी और आज भी वही कर रहा है। वैक्सीन तब लगवाने में सहयोग होता तो उसे सुरक्षित रखने की रणनीति में विदेश भेजना संभवतया शामिल न भी होता? आज अमेरिका भारत की मदद इस दबाव में भी कर रहा है क्योंकि भारत ने बुरे दिनों में उसकी मदद की थी। जिस देश में विपक्षी उद्योगपतियों की आलोचना करके राजनीतिक लाभ लेने की मानसिकता रखते हो वहां अधिक उत्पादन का दबाव सरकार कितना बना सकती है?

फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मौन से कोई न कोई नया सामने आने वाला है। कोरोना की दवा बनाने में भारत की सफलता आने वाले दिनों में एक मिशाल बनने वाली है। क्या मोदी इसका इंतजार कर रहे हैं? वैक्सीन मामले में भारत विश्व में अपना स्थान बनाने वाला देश हो गया। इस सफलता के लिए क्या वैज्ञानिक और सरकार की आलोचना की जा सकती है? लेकिन शंकाओं की आड़ में यह आलोचना की गई। देश का प्रबुद्ध नागरिक नकारात्मकता को अपनी सफलता का मंत्र मानने वालों को रिजेक्ट करेगा ऐसी सभी ओर से अपेक्षा की ही जा रही है।

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