विन्ध में नई पार्टी नारायण नारायण
राजनीति में घाट घाट का पानी पी चुके वरिष्ठ विधायक नारायण त्रिपाठी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उनके इस ऐलान के बाद विंध्य क्षेत्र के चुनाव परिणामों का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका विश्लेषण
भोपाल, (विशेष प्रतिनिधि)। राजनीति में घाट घाट का पानी पी चुके वरिष्ठ विधायक नारायण त्रिपाठी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उनके इस ऐलान के बाद विंध्य क्षेत्र के चुनाव परिणामों का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका विश्लेषण करने में दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां लग गई है। हालांकि बाहर इस राजनीतिक पार्टी के गठन को कोई भाव दिया नहीं जा रहा है। इसके बाद भी अपने-अपने तर्क हैं। राजनीति में नारायण त्रिपाठी को कितना गंभीरता से लिया जाएगा इतना अभी अनुमान लगाना संभव नहीं है। वे विन्ध प्रदेश बनाने की मांग को लेकर राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं इसलिए लोगों के भावनात्मक जुड़ाव की बात कही जा रही है। लेकिन सवाल यही है कि क्या नारायण त्रिपाठी जनता के बीच यह सिद्ध कर पाएंगे कि वे एक राजनीतिक नेतृत्व देने की स्थिति वाले नेता है या फिर जैसा कि वह करते आ रहे हैं वैसे ही नारायण नारायण करके एक और विषय समाप्त हो जाएगा? मध्य प्रदेश की राजनीति में दो दलीय व्यवस्था है। कुल जमा चार नेताओं ने अलग से राजनीतिक पार्टी गठित करने का प्रयास किया है। तीन राजनीतिक पार्टियां परिस्थिति जन्य और एक गंभीरता से बनाई हुई राजनीतिक पार्टी थी। वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह की तिवारी कांग्रेस, माधवराव सिंधिया की मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस और वीरेंद्र कुमार सकलेचा की भी एक राजनीतिक पार्टी थी। यह परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुए दल थे जो बाद में समाप्त हो गए। उमा भारती ने भाजपा से बगावत करके भारतीय जनशक्ति का गठन किया था। यह पार्टी सांगठनिक रूप में तैयार हुई थी। लेकिन पहले ही आम चुनाव में इस राजनीतिक पार्टी की भी हवा निकल गई और उमा भारती घूम फिर के भाजपा में वापस आ गई। अब नारायण त्रिपाठी की राजनीतिक पार्टी का हश्र क्या होगा इसके बारे में पूर्वानुमान की बजाए एक चुनाव का इंतजार करना चाहिए?
नए दल की आहट से चौकन्ने हुए दल
विंध्य जनता पार्टी नामक नई दल के गठन के बाद सत्ता के दावेदार कांग्रेस और भाजपा इस पार्टी के गठन के बाद होने वाले नफा नुकसान के बारे में मंथन करने लग गए हैं। हालांकि यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के एजेंडे में अभी यह नहीं आया है। पिछले दिनों विंध्य के कद्दावर नेता अजय सिंह राहुल भैया ने इस संबंध में एक बैठक बुलाकर संभावनाओं को तलाशा था। राहुल भैया और नारायण त्रिपाठी के बीच का राजनीतिक द्वंद सभी को पता है। भाजपा में भी विंध्य के कद्दावर नेता राजेंद्र शुक्ल व अन्य के माध्यम से नई राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं और किसी भी प्रकार के लाभ हानि की स्थिति से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। इतना कहा जा सकता है कि प्रदेश की राजनीति में दो दलीय प्रणाली के शांत समुद्र में नारायण त्रिपाठी ने एक नए दल के गठन का कंकर फेंक कर हलचल तो पैदा कर ही दी है। आने वाले समय में यह दल प्रदेश की राजनीति में क्या ज्वार भाटा पैदा करता है इसका आकलन करते रहना होगा।
नारायण त्रिपाठी का राजनीतिक कैरियर
धर्मनगरी मैहर से नारायण त्रिपाठी कई बार के विधायक है। निर्दलीय समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। घाट घाट का पानी पीकर नारायण त्रिपाठी राजनीति में चर्चित चेहरा हो गए। हमेशा विवादों में बने रहने के कारण और दल बदलने की माहिर स्थिति के कारण ही वे चर्चित हुए हैं। इसे आम जनता कितना गंभीरता से लेगी यह सवाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। साथ में यह कहना जरूर बनता है कि मैहर विधानसभा क्षेत्र के ब्राह्मण वोटों पर त्रिपाठी की खासी पकड़ है वही उनके जीतने का आधार बनता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में त्रिपाठी भाजपा से चुनाव लडक़र जीते थे। लेकिन सरकार कमलनाथ की बन गई और वे उनकी गोद में बैठ गए। जिन दो विधायकों ने भाजपा छोडक़र कांग्रेस में के पाले में जाने का ऐलान किया था उनमें एक नारायण त्रिपाठी भी थे। यहां राजनीति में उनकी विश्वसनीयता समाप्त हो गई थी। यही कारण है कि वे तकनीकी रूप से भाजपा के विधायक हैं लेकिन भाजपा उन्हें अपने किसी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं करती। मतलब भाजपा भी यह मान चुकी है कि नारायण त्रिपाठी को अगली बार विधानसभा का टिकट नहीं देना। यही छटपटाहट उन्हें दोबारा विधानसभा में पहुंचने के लिए आंदोलित करती रहती है। माना जा रहा है कि विंध्य प्रदेश बनाने की मांग और उसके समर्थन के लिए राजनीतिक पार्टी का गठन करना कुल जमा यही एक बात है।
विंध्य प्रदेश की संभावना
राज्यों के गठन का इतिहास भूगोल जानने वाले लोग यह जानते हैं कि भाषाई आधार पर बनाए गए राज्यों के बाद जो स्थान बच गया था उसे मध्यप्रदेश के रूप में एक राज्य की मान्यता दे दी गई। इसमें विंध्यप्रदेश, नागपुर, कुछ हिस्सा बुंदेलखंड का, मालवा और भोपाल के आसपास का क्षेत्र शामिल किया गया। पहले से ही विंध्य प्रदेश था जिसका विलय मध्यप्रदेश में किया गया। इसलिए रह रह कर विंध्य प्रदेश की आवाज उठती रही है। प्रदेश की राजनीति में अर्जुन सिंह और श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की राजनीतिक कवायद में से कई बार विंध्य प्रदेश के स्वर निकलते रहे हैं। लेकिन बात एक प्रदेश के विभाजन करते हुए गठन की स्थिति तक नहीं पहुंची। इसी प्रकार बुंदेलखंड के गठन की मांग भी बार-बार उठती रहती है। प्रदेश की जनता ने जब अर्जुन सिंह की राजनीतिक पार्टी को ही कोई महत्व नहीं दिया? बुंदेलखंड की मांग को इतना महत्व नहीं मिला? तब नारायण त्रिपाठी के इस आंदोलन को जनता समर्थन देगी इसकी संभावना प्रथम दृष्टया नकार देने वाली ही लगती है। दिग्गज नेताओं के प्रयास जनता को आंदोलित नहीं कर पाए ऐसे में जिस नेता को विश्वास की कसौटी पर खरा उतरना बाकी है उसके कहने पर प्रदेश गठन के लिए जनता का खड़ा हो जाना संभव नहीं लगता। इसलिए इसे टिकट पाने या विधानसभा चुनाव में पहुंचने का एक जरिया भर माना जा सकता है।