विजयवर्गीय की मेल मुलाकातों के निकल रहे कई मायने

भोपाल। विशेष प्रतिनिधि।  भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल चुनाव में पार्टी के एक बड़े चेहरे कैलाश विजयवर्गीय का पिछले दिनों से भोपाल में कई नेताओं से मुलाकात का सिलसिला चल रहा है। इसके कई प्रकार के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। लेकिन बात आकर प्रदेश में उनकी सक्रियता पर आकर रूक जाती है। हालांकि इसे सरकार और संगठन पर दबाव के रूप में भी देखा जा रहा है। भाजपा का कोई भी नेता इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। उनका न बोलना ही अनेक सवालों को जन्म तो दे ही रहा है।

मध्यप्रदेश की राजनीति के एक चमकदार चेहरे हैं कैलाश विजयवर्गीय। पश्चिमी बंगाल में भाजपा के प्रदेश प्रभारी के रूप में हिंसा की राजनीति के बीच जिस प्रकार का रोल अदा किया है उससे उनका कद स्वभाविक रूप से भाजपा नेतृत्व के समक्ष बढऩा ही था। हालांकि चुनाव परिणाम को कुछ समीक्षक अपेक्षा से कम मान रहे हैं और कुछ इसे सही दिशा में बता रहे हैं। भाजपा के वहां के संगठन महामंत्री रहे शिवप्रकाश भी मानते हैं कि जनता भाजपा का जीताने के लिए तैयार थी लेकिन कांग्रेस और वाम दलों शून्य का स्कोर उस पर पानी फेर गया। फिर भी भाजपा वहां एक मात्र विपक्ष रह गई यह भी खास है। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय के सामने अपना समय व्यतीत करने का संकट आ गया। वे अब बंगाल में अधिक समय दे नहीं पायेंगे तो अपने राज्य में गतिविधियां बढ़ाना उनके लिए जरूरी हो गया है। वे उमा की भांति वनवास की स्थिति क्यों बनाएं? इसलिए उनकी नेताओं से मुलाकात का सिलसिला चल निकला है।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि अभी की इस मुलाकात के कोई ऐसे मायने नहीं निकाला जाना चाहिए कि सत्ता व संगठन में कोई बदलाव की संभावना है? जब भाजपा सिंधिया को लेकर कोई निर्णय अंजाम नहीं दे पा रही है तब विजयवर्गीय को लेकर निर्णय लेगी ऐसी संभावना नहीं है। इसके बाद भी सुरेश सोनी से कैलाश जी का मुलाकात को गंभीरता से लिया जा रहा है। हालांकि सुरेश सोनी अब संघ में निर्णायक नहीं रह गये हैं।  लेकिन वे प्रभावहीन हो गये हैं ऐसा भी नहीं है। नरोत्तम मिश्रा सहित अन्य बड़े नेताओं की मुलाकात स्वभाविक राजनीतिक मायने निकालने के लिए मीडिया का अवसर देती है इसलिए चर्चा तेज हो गई है। अभी ऐसा कोई निर्णय होगा जो संगठन और सत्ता को प्रभावित करेगी इसकी संभावना नहीं है।

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