‘लापरवाही’ का यह आलम इंदौर मन्दिर ‘हादसा’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। आमतौर पर यह मानना चाहिए कि जब किसी भी पुराने कुएं या बावड़ी को ऊपर से लोहे का जाल बनाकर ढका जाता है तब यह सावधानी बरतने का संकेत होता है। छोटी मोटी घटना को बचाव देने की मंशा भी इसके पीछे होती है। लगता है इंदौर के लोगों ने विदिशा जिले के हादसे से कोई सबक नहीं लिया था। ना ही प्रशासन ने भी किसी प्रकार का कोई संदेश लिया लगता है। विदिशा जिले में भी इसी प्रकार बावड़ी में गिरने से दर्जनों लोगों की मौतें हुई थी। बीते दिन इंदौर में इसी प्रकार का दुखद हादसा दोहराया गया है। रात तक मरने वालों की संख्या कुछ और थी और दिन निकलने पर कुछ और। सबसे गंभीर बात यह है कि जब बावड़ी के जाल पर दो दर्जन से ज्यादा लोग चढ़ गए तब सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगे लोग उन्हें समझाने क्यों सामने नहीं आए? एक के बाद एक लोग बावड़ी के जाल पर चढ़ते गए और मौत के जाल में फंस गए। इस प्रकार लगभग 3 दर्जन के आसपास लोग रामनवमी के दिन भगवान के मंदिर परिसर में बने इस कुएं में समा गए। यह दूसरी सीख प्रशासन को है जिससे सबक लेकर आने वाले समय में लोगों की जान बचाई जा सके।

राम नवमी के अवसर पर बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर परिसर में बनी एक प्राचीन बावड़ी की छत गिरने से 28 लोगों की मौत और 17 लोगों के अस्पताल में इलाज कराने का समाचार है। घटना दुखद है और गंभीर भी। इसलिए मुख्यमंत्री से लगाकर प्रधानमंत्री ने अपनी चिंता व्यक्त की है। संवेदनाएं प्रकट करना एक बात है और हादसे के प्रति जिम्मेदारी तय करना दूसरी बात। जिला प्रशासन इस मामले में गंभीर किस्म से लापरवाह दिखाई दे रहा है। निगम ने नोटिस जारी करके अपनी गेंद मंदिर प्रशासन के पाले में डाल दी। मंदिर प्रशासन यह कहकर अपना पल्लू झाड़ ने का प्रयास कर रहा है कि छत डालने वाले लोग अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए अधिक लोगों के बैठने से यह हादसा हो गया। यह कोई नहीं बता रहा कि अधिक लोग बैठ रहे हैं तब उन्हें रोकने का दायित्व जिला प्रशासन का था या मंदिर प्रबंधन समिति का। लेकिन हादसा हो गया और इस हादसे ने हमारी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी। जब किसी भी राज्य में एक प्रकार के हादसे एक से अधिक स्थानों पर हो जाएं तब उसके बारे में प्रशासन और प्रबंधन की गलती को रेखांकित करना जरूरी हो जाता है। इससे पहले विदिशा जिले में इस प्रकार का हादसा हो चुका है। इसलिए यह विषय गंभीर हो जाता है।

आमतौर पर इसी प्रकार के धार्मिक आयोजनों में भीड़ का मूवमेंट बनाए रखा जाता है। एक जगह जमकर बैठने की अनुमति प्रशासन नहीं देता। जहां हवन यज्ञ और अन्य पूजा व्यवस्था होती है उस स्थान के बारे में प्रशासन और प्रबंधन पहले से परीक्षण कर लेते हैं। इस मंदिर में यह सब नहीं किया गया। मंदिर पुराना है और जीर्ण शीर्ण स्थिति में है। जिसके फिर से निर्माण का काम चल रहा है। ऐसे में व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद करने का दायित्व और बढ़ जाता है। इसलिए यह हादसा दोहरी लापरवाही का प्रतीक है। पहली लापरवाही प्रशासन और प्रबंधन की है और दूसरी लापरवाही उन लोगों की जो अपनी जान को जोखिम में डालकर एक ऐसे स्थान पर अधिक संख्या में खड़े हो रहे हैं जो हादसा संभव है। यह लापरवाही कितनी दुखद है समझ सकते हैं?

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