‘लडक़ी’ हूं लड़ सकती हूं लेकिन किन ‘किनसे’
प्रियंका गांधी ने अपनी राजनीति को सेट करने के लिए नारा तैयार कराया है कि लडक़ी हूं लड़ सकती हूं। वे संघर्ष करते भी दिखाई दे रहे हैं। लेकिन वे लडऩा किससे चाहती हैं इसके बारे में अधिक खुलाशा नहीं है। वे केवल योगी सरकार से लड़ेंगी इतने भर से काम नहीं चलेगा। वे पार्टी के जी-23 के नेताओं से लड़ेंगी? वे राहुल गांधी से अध्यक्षी के लिए लड़ेंगी या फिर केन्द्र में सरकार की गतिविधियों से लड़ेंगी। जो भी हो प्रियंका के सामने सवाल उठाये जा रहे हैं। सोनिया गांधी बार-बार राहुल को पार्टी की कमान देने की योजना सामने लाती हैं लेकिन राहुल उसे धूल में मिलवा देते हैं। पार्टी के अनुभवी नेतागण कहते हैं कि सक्षम हाथों में पार्टी की कमान देने की जरूरत है। राहुल आजमा लिये गये हैं लेकिन प्रियंका फ्रेस पीस हैं। उनका नेतृत्व पार्टी प्रमुख के रूप में आजमाना बाकी है। वे यूपी में पार्टी को स्थापित करने के लिए लड़ रही हैं लेकिन भाई को भी नहीं जिता पाईं इसलिए वे अब किससे लड़ेंगी समझने वाली बात है। बनारस में मोदी और शेष यूपी में योगी को चुनौती देने के फिराक में वे अपनी चाल भी भूल रही हैं।
नारों का प्रभाव कथनी और करनी के साम्य होने में निहित होता है। यूपी में महिलाओं को अधिकाधिक टिकिट लेकिन यह फार्मूला पंजाब में लागू नहीं होगा क्योंकि वहां पार्टी सरकार में है? इसलिए भ्रम पैदा हो रहा है। पार्टी पीडि़त लोगों के घर जाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास तो करती है लेकिन अपने राज्यों में वह भेदभाव करती है। राजस्थान के सीएम लखीमपुर में कुचले गये लोगों को पचास लाख देते हैं लेकिन अपने राज्य में कुचले गये लोगों के लिए खजाना नहीं खुलता। इसलिए कथनी और करनी का साम्य दिखाई नहीं देता है। ऐसे में कोई भी यही कहेगा कि प्रियंका वाड्रा अपने लिए लडऩे की बात कर रही है लेकिन न तो भाई तैयार है और न ही माता जी। आगे भगवान जाने क्या होगा?