राहुल गठित करेंगे प्रदेश में दूसरा पावर सेंटर सिंधिया हो सकते हैं प्रदेश अध्यक्ष
भोपाल। [विशेष प्रतिनिधि] लोकसभा के चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी मध्यप्रदेश में एक नया पावर सेंटर स्थापित करने की मंशा रखते हैं। अब वे चाहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस की कमान सिंधिया को दी जाये। दिल्ली के सूत्रों ने यह भी बताया है कि मंत्री मंडल के विस्तार से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश की कमान संभाल सकते हैं। यह नाम तो पिछली बार ही आ जाता लेकिन कमलनाथ ने इसे रोकने में खासी भूमिका निभाई थी।
विधानसभा के चुनाव के बाद कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे। हर तरफ उन्हीं की चर्चा थी और उनके छिन्दवाड़ा माडल की चर्चा थी। लेकिन लोकसभा के चुनाव परिणामों ने वह ताकत तेजी से छीन ली। कमलनाथ की छवि दिल्ली में तेजी से गिरी और वहां यह कहा जाने लग गया कि अपने बेटे को जिताने के लिए उन्होंने सिंधिया और दिग्विजय सिंह की भी परवाह नहीं की। यदि मुख्यमंत्री चाहे तो दिग्गज नेताओं का चुनाव ऐसे नहीं हारा जाता है। इसका असर यह हुआ कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए वीटो का अधिकार या तो छीन लिया गया या फिर उसके अधिकार को कम कर दिया गया। छह महीने में कमलनाथ सरकार किसानो की कर्जमाफी नहीं कर पाई। इससे भी राहुल गांधी आरोपों के दायरे में आ गये हैं। विपक्ष उनसे दस दिन में मुख्यमंत्री बदलने की बात पर कायम रहने की बात कर रहा है। तब भी राहुल को गुस्सा है। यह गुस्सा प्रियंका वाड्रा के बयानों में भी दिखाई दे रहा है।
सिंधिया को प्रदेश का अध्यक्ष बनाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि वे ऊर्जावान हैं और प्रदेश में संगठन में नई जान फूंकने की स्थिति में भी हैं। राजस्थान का उदाहरण भी कांग्रेस के पास है जब राहुल का साथी वहां प्रदेश की कमान संभाले हुये है। यहां यह भी जानकारी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब अन्य मुख्यमंत्रियों को डीनर दे ररहे थे तक सिंधिया समर्थक मंत्री दिल्ली में रणनीति बना रहे थे। पिछले दिनों भी वे भोपाल में सिसोदिया के निवास एक एकत्र हुये थे। वे सभी चाहते हैं कि उनके महाराज प्रदेश कांग्रेस के मुखिया बने।
सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने का रास्ता इसलिए भी खुल रहा है कि वे ही प्रदेश के ऐसे नेता हैं जिनकी चमक अभी भी मतदाताओं में बरकरार है। वे लोकसभा का चुनाव भी जीत सकते हैं और प्रदेश के मतदाताओं को संभाल भी सकते हें। अन्यथा दिग्विजय सिंह भोपाल में जितने अन्तर से हारे हैं वह कल्पना मं नहीं था। अजय सिंह राहुल भैया विधानसभा के बाद लोकसभा का चुनाव भी हार गये। उनकी चमक ऐसी गई कि उनको कमान देने की मंशा राहुल गांधी की बन ही नहीं रही है। अरूण यादव भी शिवराज से विधानसभा चुनाव हारे और अब लोकसभा का चुनाव नंदू भैया से हार गये। कान्ति लाल भूरिया विधानसभा में बेटे को नहीं जिता पाये और अब लोकसभा खुद हार गये। इसलिए अब कांग्रेस में दूसरा पावर सेंटर बनने की बात चलने लग गई है। जिससे कमलनाथ को नियंत्रित भी किया जा सके और राहुल गांधीर अपनी बात को लागू भी करवा सकें। इससे युवा नेतृत्व भी सामने आ जायेगा।