‘राहुल’ के साथ तुलना में आई बहिन ‘प्रियंका’
भोपाल। कल लोकसभा चुनाव के अन्तिम चरण का मतदान हो जायेगा? 23 को परिणाम आना शुरू हो जायेंगे जो शाम को अगले दिन तब आ जायेंगे। यह तो उसी दिन पता चल जायेगा कि आबकी बार किसकी सरकार? इस चुनाव में कई उजले और कई काले पक्ष हैं। लेकिन अमित शाह ने यह कह कर सबको अचरज में डाल दिया कि चुनाव के समय इस प्रकार की बातें होती हैं लेकिन उन्हें साथ लेकर तो नहीं चला जा सकता है। उनका इशारा ममता की ओर था। उन्होंने राहुल के चौकीदार चोर और प्रियंका वाड्रा के दुर्योधन को शायद स्मरण में ही नहीं रखा। यह हो सकता है कि भाजपा का नेतृत्व ममता के साथ चुनाव के बाद राजनीति करना चाहता होगा लेकिन इस युवा गांधी परिवार के साथ आर-पार। जो भी हो लेकिन चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण मंथन यह भी होने जा रहा है कि राहुल गांधी के राजनीतिक उभार के बाद प्रियंका के आने का राजनीति पर क्या असर होगा? यह जोड़ी बनेगी और मोदी का रास्ता रोकेगी या फिर खुद ही एक दूसरे के रास्ते को काटने का खेल खेलेगी। चुनाव के बाद इसी बात पर चर्चा शुरू होगी। प्रियंका गांधी ने इस पूरे चुनाव में संयम तो बरता लेकिन छाप वही विवादित बयानों की ही देने का प्रयास किया है। राहुल और प्रियंका के द्वारा मोदी की हर सांस में आलोचना या स्मरण चुनाव का नयापन है।
सबको याद होगा गांधी परिवार किसी भी नेता का नाम लेकर कभी आरोप नहीं लगाता था। जिसे भी इस परिवार ने उल्लेखित कर दिया समझो वह देश का महत्वपूर्ण व्यक्ति है। मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तब इस परिवार ने वर्षों तक उनका नाम नहीं लिया था। उन्हें प्रधानमंत्री कह कर संबोधित नहीं किया था। अब राहुल गांधी के भाषण में जितनी बार कांग्रेस का नाम नहीं होता उससे कहीं अधिक बार मोदी का पूरा नाम होता है। मोदी की कार्यप्रणाली से गांधी परिवार भयभीत हो चुका है। इसलिए पूरे चुनाव प्रचार को मोदी को केन्द्रीत रखा गया। प्रियंका वाड्रा के सक्रिय राजनीति में आने से कांग्रेस को लाभ तो होगा ऐसा मानने वालों की संख्या अधिक है। वे आकर्षण का केन्द्र बनने में कामयाब रहीं। लेकिन सवाल यह है कि वे राहुल के साथ कंधा मिलायेंगी या फिर राहुल के कंधे पर सवार होंगी? इस चुनाव के बाद प्रियंका को राहुल से अधिक प्रभावी कांग्रेसी मानेंगे। इतने अवसरों के बाद राहुल गांधी ऐसा कोई प्रमाण नहीं दे पाये कि वे अपनी विरासत के उत्तराधिकारी हें। प्रियंका ने पहली बार में उत्तराधिकारी होने का प्रमाण दे दिया।
एक बात जरूर कही जाना चाहिए। राहुल के साथ या राहुल को पीछे करके प्रियंका चलें इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता लेकिन जिस प्रकार से मोदी ने 2014 में विजन दिखाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था। लेकिन प्रियंका वाड्रा ने ऐसा कोई विजन देश के सामने पेश नहीं किया। राहुल ने पूरे प्रचार में अपने को सुधारा तो है लेकिन मोदी चालीसा को ही पढ़ते रहे जो आलोचनाओं से भरी थी। प्रियंका राहुल से बेहतर हैं या राहुल की बेहतर है। प्रियंका और राहुल के कारण सारे प्रभावशाली नेता हासिये में चले गये इसलिए वे अब घुटन महसूस करेंगे या क्या करेंगे? इस प्रकार के सवालों पर मंथन का समय आ गया है।