राज्यपाल सत्यपाल मलिक का आत्मसुखाय

भोपाल। विशेष प्रतिनिधि। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक अपने बड़बोलेपन या चर्चाओं के रहस्योद्घाटन के कारण राजनीतिक चर्चाओं में बने हुए हैं। मीडिया की सुर्खियां पाने के लिए वे ऐसी बातों को सार्वजनिक कर रहे हैं जिन्हें राजनीति में न केवल गोपनीय रखा जाता है बल्कि समय आने पर ही संदर्भित विषय पर बोला जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के बाद उनकी बयानबाजी इन दिनों राजनीतिक चर्चा का विषय बनी हुई है। सरकार असहज महसूस कर रही है और विपक्षी दल कांग्रेस इसको लेकर प्रधानमंत्री पर निशाना साध रही है।

कृषि सुधार बिलों का निरंतर विरोध करने वाले कथित किसान नेता और मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक इन दिनों फिर चर्चा में है। जब वे किसान आंदोलन के समय बयान देते थे तब भी वे सरकार की आलोचना करते थे। मलिक ने अनेकों बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अहंकार और घमंड संयुक्त नेता बताया था। इन दिनों भी जब वे प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे तो कृषि कानूनों पर उनकी चर्चा के संबंध में गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की बात हुई थी। मलिक ने इसे सार्वजनिक करते हुए कहा कि कृषि सुधार बिलों को लेकर प्रधानमंत्री का घमंड अभी भी बरकरार है। उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह के संदर्भ में कहा कि प्रधानमंत्री को कुछ लोग गुमराह कर रहे हैं। इस प्रकार की बातें सार्वजनिक करने से मलिक फिर से राजनीति के केंद्र बिंदु में आ गए हैं। सरकार असहज है, इसलिए कुछ भी बोल नहीं पा रही है और विपक्ष उनके बयान को आधार बनाकर प्रधानमंत्री पर निशाना साध रहा है। सरकार की समस्या यह है कि प्रधानमंत्री को किसान विरोधी कहे जाने पर कहीं मुहर न लग जाए। विपक्ष ऐसे ही प्रयास कर रहा है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पा रही है।

अभी यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार सतपाल मलिक गवर्नर होते हुए भी सरकार के खिलाफ और खासतौर से प्रधानमंत्री के खिलाफ बयानबाजी क्यों कर रहे हैं? यह कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर जैसे बड़े राज्य से हटाकर उन्हें एक छोटे राज्य का राज्यपाल बना कर अपमानित किया है। चौधरी चरण सिंह के साथ काम किए हुए इस नेता का अपमान का बदला लेने का यह तरीका मोदी सरकार के गले की फांस बना हुआ है। मलिक स्वयं को किसान नेता कहते हैं लेकिन किसानों के लिए बनाए गए बिलों का विरोध करना ही किसान समर्थन नहीं हो सकता। उनका कोई व्यवहारिक विकल्प सरकार के समक्ष रखना चाहिए। ऐसा करने में मलिक सहित अन्य किसान नेताओं की कोई रुचि नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री की आलोचना करके केवल सुर्खियां बटोरना ही किसान नेतृत्व का मकसद बनता दिखाई दे रहा है।

अब यह सवाल उठता है कि क्या सत्यपाल मलिक छोटे राज्य मेघालय का राज्यपाल बनाए जाने से दुखी होकर इस प्रकार का बयान दे रहे हैं? या फिर आत्मसुखाय की स्थिति में पहुंचकर वे स्वयं को किसानी का प्रकांड विद्वान मानकर इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। यह सच है कि कृषि सुधार कानूनों को लेकर देश में दो प्रकार के अभिमत आज भी विधमान हैं। जबकि कृषि बिल वापस ले लिए गए हैं। यह अपेक्षा देश को है कि जो कृषि के जानकार हैं और समझते हैं वे सुधार बिलों की वापसी के बजाय उनमें कमियां सुधार कर किसान हित के लिए कृषि सुधार बिलों को तैयार किया जाना चाहिए। लेकिन यहां मलिक किसान हित और पक्ष की बजाए बड़बोलेपन के कारण अधिक चर्चा में दिखाई दे रहे हैं।

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