‘राजनीति’ देश की संप्रभूता और साख के ‘साथ’ नहीं?

भोपाल (सुरेश शर्मा)। कमलनाथ बड़े नेता हैं। पुराने भी। उनकी राजनीति करने का तरीका कभी भी अधिकांश लोगों की पसंद नहीं रहा है। वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उम्मीद थी कि वे ऐसी छाप छोड़ेंगे जो कांग्रेस की साख का बढ़ायेगी। लेकिन वे तो राजनीति करने में देश की साख के साथ ही खेलने लग गये। देश की प्रतिष्ठा को कोरोना ने प्रभावित किया है यह कहना एक बात है लेकिन देश की प्रतिष्ठा के बारे में प्रचलित शब्दों का खंडन करने का साहस कमलनाथ ने दिखा दिया। जिसकी पूरे देश में आलोचना हो रही है। वे खुद को संभाल नहीं पा रहे हैं। प्रदेश की राजनीति में लगातार पिछडऩे के बाद वे लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं जिसके कारण उन्हें परेशानी और शर्मिंदगी का सामना कर पड़ रहा है। वे अपने साथ पूर्व मंत्री की गंदगी को धोने के लिए ऐसा बयान दे गये कि उनके पास हनीट्रैप की पैनड्राइव है यदि उमंग के खिलाफ जांच की गई तो वे सूचना सार्वजनिक कर देंगे। यह ब्लैकमेल की घटना पर राजनीति थमी भी नहीं थी कि नया बयान आ गया। कमलनाथ ने कह दिया कि मेरा भारत महान नहीं मेरा भारत बदनाम है। उन्हें एक विदेश में आटो चलाने वाले का फोन आ गया कि वह भारत का है इसलिए कोई उसके आटो में बैठने को तैयार नहीं होता और कोरोना का भारतीय स्वरूप भी उन्होंने बता दिया। यह सिलसिला रूका नहीं है।

आज ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष की राजनीति का स्तर इतना नीचे चला जायेगा कल्पना नहीं की जा सकती है? मैहर की एक पत्रकार वार्ता में कमलनाथ बोले कि मैं अभी रामचन्द्र अग्रवाल जी से मिलकर आया हूं उन्होंने मुझे बताया कि उनकी मौत रेमडीसिवेर इंजेक्शन के लगने से हुई है। मरने के बाद रामचन्द्र जी ने कमलनाथ को बता दिया कि नकली रेमडीसिवेर इंजेक्शन लगा था। कितना अचरज भरा है उनका यह बयान। यह प्रदेश की सरकार को बदनाम करने का प्रयास है। ऐसा शिवराज जी मान रहे हैं। राजनीति का स्तर तो अपनी जगह है लेकिन यह सस्ती लोकप्रियता का मामला भी है। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास अनुभव है। उस अनुभव का लाभ प्रदेश को मिलना था। वह इस हल्केपन की राजनीति में उलझकर रह गया। जब हम उमा भारती की संकल्प यात्रा 2003 को याद करते हैं तब अंडा युक्त केक चढ़ाने की बात कह कर कमलनाथ ने जिस प्रकार की राजनीति शुरू की थी उनकी राजनीति का स्तर उस समय अभी तक नहीं बदल पाया जब वे वर्षों केन्द्र सरकार में मंत्री। देश विदेश के बड़े उद्योगपति और प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

मध्यप्रदेश की राजनीति कभी भी इतनी गिरावट भरी नहीं रही। मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता का गजब का तालमेल मध्यप्रदेश की धरोहर रहा है। लेकिन कमलनाथ साहब मुख्यमंत्री बनने के बाद भी और अब विपक्ष का नेता और पीसीसी चीफ होने के बाद भी जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं उससे उनके बारे में बनी अवधारणा ध्वस्त होती दिखाई देती है। उनके साथी उसे संभालने का प्रयास करते हैं लेकिन वह और आगे जाकर नये कारनामे को अंजाम दे देते हंै। यह तो राजनीति की बात है लेकिन भारत की संप्रभूता और साख राजनीति का हिस्सा नहीं हो सकता है। भारत तो महान ही रहेगा।

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