‘यूं ही’ निशाने पर थोड़े हैं भाजपा अध्यक्ष ‘वीडी शर्मा’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। तीन दशक से अधिक के पत्रकार जीवन में पहली बार देखा है कि विपक्ष के प्रमुख नेताओं के निशाने पर सरकार की बजाए सरकारी दल का मुखिया रहता आ रहा है। इसके दो ही कारण हो सकते हैं पहला यह कि सरकार और विपक्ष में मिलीभगत हो और दूसरा यह कि सरकारी दल का मुखिया संभावनाओं से भरा हो और उसमें विपक्ष अधिक खतरा देखता हो। हमने मध्यप्रदेश में सबसे अधिक सरकार का विरोध व्यापमं के समय देखा था। विपक्षी दल उस समय सदन के अन्दर और बाहर सरकार का विरोध कर रहे थे लेकिन उन दिनों दिग्विजय सिंह अपने दल का साथ देने की बजाए किसानों की कुछ मांगों को लेकर गुना में अनशन करने बैठ गये थे। अब दिग्गी शिष्य भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा पर निजी हमलों से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। कारण कोई भी समझ सकता है। दिग्विज सिंह भोपाल में डूब के मामले को लेकर किसानों के साथ धरना देते हैं और कमलनाथ मुख्यमंत्री के साथ दंत निपोरी करते हैं और मीडिया से कहते हैं कि दिग्विजय धरना देंगे कांग्रेस अध्यक्ष के नाते उन्हें पता ही नहीं है। इस प्रकार के विरोधाभाष के बाद भी वीडी शर्मा पर राजनीतिक हमला करने में इन दोनों में गजब का सामन्जश पैदा हो जाता है। यह किसी भी राजनीतिक समीक्षक के लिए शोध का विषय है।

बात यदि यहां से शुरू की जायें तो विषय को समझने में मदद होगी। दिग्विजय सिंह ने एक टवीट किया जिसमें मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की खबर और संभावित दो मुख्यमंत्रियों के नाम थे। एक प्रह्लाद पटेल और दूसरा वीडी शर्मा। सबको पता है कि वीडी शर्मा छात्र राजनीति की भट्टी से शिवराज की भांति तपकर कुंदन बनकर भाजपा में आये हैं। संघ में प्रचारक रहने के कारण उच्च स्तर पर उनके संबंध स्वभाविक भी हैं। इसलिए दिग्विजय सिंह सरीका नेता सीएम के उत्तराधिकारी में नाम ले लेगा तो नाम कटना स्वभाविक है। तब यह बात उभरी थी कि दिग्विजय सूचना नहीं वीडी का नाम कटे इसका प्रयास कर रहे हैं। उसके बाद उन्होंने खनिज मामले में नाम उछालने का प्रयास किया लेकिन विषय ढाक के तीन पात ही निकला। लेकिन यहां भी टाइमिंग का मामला था। अब हमला कुलपति की नियुक्ति की आड़ लेकर किया जा रहा है। कुलपति अंगुठा छाप को नहीं बनाया जा सकता है जबकि मंत्री अनेकों बार अंगुठा छाप बन जाते हैं। इसलिए जब कोई नेता अपने सगे भाई को पीछे धकेलकर अपने बेटे को मंत्री बनवाने का काम कर जाये उसे किसी अन्य नेता के रिश्ते पर टिप्पणी करने का कितना नैतिक अधिकार पर इस पर मंथन करना होगा।

52 वर्ष का वीडी संभावनाओं से भरा नेता है। उसको भाजपा नेतृत्व ने यूंही प्रदेश की कमान थोड़े ही सौंपी हैं। भाजपा की आन्तरिक राजनीति में यह ज्वार-भाटा लाने वाली घटना है। राजनीतिक रोड़े आएंगे यह स्वभाविक भी है। लेकिन कांग्रेस के नेता अपने यहां युवाओं की राजनीतिक हत्या करके सत्ता सुख भोगने का आनंद ले रहे हैं वे भाजपा के आन्तरिक मामलों में मोहरे बनकर लाभ अर्जित करने में भी पीछे नहीं हैं। वीडी की राह रोक कर कोई अधिक दिन खुश रह पाएगा इसकी संभावना कम है फिर भी ऐसे गतिरोध को तोडऩे नीति तो अपनाना ही होगी।

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