‘यूं ही’ निशाने पर थोड़े हैं भाजपा अध्यक्ष ‘वीडी शर्मा’
बात यदि यहां से शुरू की जायें तो विषय को समझने में मदद होगी। दिग्विजय सिंह ने एक टवीट किया जिसमें मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की खबर और संभावित दो मुख्यमंत्रियों के नाम थे। एक प्रह्लाद पटेल और दूसरा वीडी शर्मा। सबको पता है कि वीडी शर्मा छात्र राजनीति की भट्टी से शिवराज की भांति तपकर कुंदन बनकर भाजपा में आये हैं। संघ में प्रचारक रहने के कारण उच्च स्तर पर उनके संबंध स्वभाविक भी हैं। इसलिए दिग्विजय सिंह सरीका नेता सीएम के उत्तराधिकारी में नाम ले लेगा तो नाम कटना स्वभाविक है। तब यह बात उभरी थी कि दिग्विजय सूचना नहीं वीडी का नाम कटे इसका प्रयास कर रहे हैं। उसके बाद उन्होंने खनिज मामले में नाम उछालने का प्रयास किया लेकिन विषय ढाक के तीन पात ही निकला। लेकिन यहां भी टाइमिंग का मामला था। अब हमला कुलपति की नियुक्ति की आड़ लेकर किया जा रहा है। कुलपति अंगुठा छाप को नहीं बनाया जा सकता है जबकि मंत्री अनेकों बार अंगुठा छाप बन जाते हैं। इसलिए जब कोई नेता अपने सगे भाई को पीछे धकेलकर अपने बेटे को मंत्री बनवाने का काम कर जाये उसे किसी अन्य नेता के रिश्ते पर टिप्पणी करने का कितना नैतिक अधिकार पर इस पर मंथन करना होगा।
52 वर्ष का वीडी संभावनाओं से भरा नेता है। उसको भाजपा नेतृत्व ने यूंही प्रदेश की कमान थोड़े ही सौंपी हैं। भाजपा की आन्तरिक राजनीति में यह ज्वार-भाटा लाने वाली घटना है। राजनीतिक रोड़े आएंगे यह स्वभाविक भी है। लेकिन कांग्रेस के नेता अपने यहां युवाओं की राजनीतिक हत्या करके सत्ता सुख भोगने का आनंद ले रहे हैं वे भाजपा के आन्तरिक मामलों में मोहरे बनकर लाभ अर्जित करने में भी पीछे नहीं हैं। वीडी की राह रोक कर कोई अधिक दिन खुश रह पाएगा इसकी संभावना कम है फिर भी ऐसे गतिरोध को तोडऩे नीति तो अपनाना ही होगी।