‘युवा नेता’ सोच समझ कर छोड़ रहे हैं ‘कांग्रेस’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। बंगाल चुनाव में कांग्रेस के खाते में शून्य का स्कोर आया तब यह सवाल उठाया गया था कि आखिर कांग्रेस

सुरेश शर्मा

भाजपा को रोकने के लिए खुद को खपा क्यों रही है? भाजपा की जीतना भी कांग्रेस को कमजोर करता तो वह खुद को कमजोर करने के रास्ते पर खुद ही क्यों चल रही है? यह रणनीति समीक्षकों को भी समझ में नहीं आई और अनेके कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं आई। जिन्होंने कांग्रेस को भोग लिया उनको कोई अन्तर इस बात से नहीं आने वाला है।  भाजपा को बंगाल में हराने के लिए वामदलों और कांग्रेस ने अपनी जीत की संभावनाओं को खुद ही खत्म कर लिया या सभी मुस्लिम बाहुल सीटों पर भाजपा को हराया गया। लेकिन उन युवा नेताओं को अन्तर पड़ा जिन्होंने परिवार के कारण कांग्रेस के साथ अपना रिश्ता-नाता बना रखा है। जब कांग्रेस की आत्महत्या वाली बात की जानकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को पता चली तो उन्होंने भाजपा में न केवल आना स्वीकार बल्कि भाजपा के मूल संस्कारों से भी खुद को जोड़ लिया। अब जितिन प्रसाद को लगा कि जिस यूपी से वे आते हैं वहां जब राहुल गांधी के ही जीतने की संभावना खत्म हो गई और सोनिया गांधी अन्य दलों के सहारे लोकसभा में पहुंच पा रही है तब अन्य नेताओं की प्रतिभा को कौन महत्व देगा? उनका महत्व भी पार्टी के कारण खत्म हो रहा है।

इसलिए यह भगदड़ नहीं अपितु सोच समझकर रणनीति बनाकर उस दल में प्रवेश है जिसकी संभावनाएं प्रबल हैं और वह देश को सही दिशा में ले जाने का हर संभव प्रयास कर रहा है। इसलिए युवाओं का आकर्षण भाजपा बन रही है। यहां लंबी दौड़ के घोड़ों के लिए भरपूर अवसर हैं। इसका कारण यह है कि भाजपा एक खानदान की पार्टी नहीं है और उसका भी राष्ट्रीय स्वरूप है। साथ में वह राष्ट्र के बारे में ही सोचती है। यह बात अलग हो सकती है कि आपको उसके सोचने का रास्ता तत्काल समझ में न आता हो। जब भी समझ में आता है तब ही शुरूआत करने में क्या हर्ज है? सिंधिया और जितिन के बाद सचिन को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं। सचिन की परेशानी यह है कि वे अपने पिता की छाया से निकल नहीं पा रहे हैं इसलिए वे भाजपा में आने की सोचते तो हैं लेकिन पिता के विचारों का भय उनके कदम रोक लेता है। जबकि जिस भाजपा का विरोध राजेश पायलट जिस मुद्दे पर करते थे वह तो अब कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने का हथियार बन रहा है। मुस्लिम वोटों की राजनीति गैर भाजपाई दल करते हैं तब सही है और हिन्दू वोटों की राजनीति भाजपा करती है तब गलत यह कैसे हो सकता है? या तो दोनों गलत या दोनों सही?

सत्ता किसी भी दल के व्यवहार को समझने का मौका देती है। आजादी के समय के भारत को जिस दिशा में जाना था वह पंडित नेहरू ने अपने हिसाब से तय किया और मोदी ने अपने हिसाब से। अब इस पर बहस की जा सकती है कि वह मार्ग सही था या मोदी का अपनाया मार्ग सही है? आज भारत विश्व में किस स्थान पर, किस महत्व के साथ है यह तो पता ही है। तभी विचार विरोधी लोग सोशल मीडिया पर नीतियों की चर्चा नहीं करते। तभी कांग्रेस के युवा नेता भाजपा में आ रहे हैं लेकिन पूरे सोच विचार के साथ।

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