‘मोदी’ में ऐसा क्या है देश-विदेश में हो रहा ‘विरोध’
भोपाल। पिछले लगभग सात साल से नरेन्द्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने हुए थे। उनकी बात को मानने वालों की संख्या इतनी अधिक है कि आज तक जनता में पकड़ वाला कोई भी प्रधानमंत्री न रहा होगा। हां पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वाधीनता आन्दोलन के हीरो थे इसलिए, इंदिरा गांधी उनकी बेटी होने के कारण और अटल बिहारी वाजपेयी अपने जनसरोकारों के कारण। नरेन्द्र मोदी खुद के व्यवहार के कारण और जन हितैषी निर्णयों के कारण जनता में लोकप्रिय हैं। ऐसा नहीं है कि उनका विरोध नहीं है। उनका विरोध करने वाले हर समय पर रहे हैं। जब गुजरात का दंगा हुआ था विरोध करने वाले सबसे अधिक थे। लेकिन उनका आत्मविश्वास गजब का था। केन्द्र की सोनिया गांधी की अगुवाई वाली सरकार ने एक मुख्यमंत्री के रूप में उनसे पछूताछ कराकर इतिहास रच दिया था लेकिन वे बेदाग निकले। उन्हें जब मौत का सौदागर कहा गया तब वे अधिक जनादेश पाने वाले नेता बनकर उभरे। जब वे देश के प्रधानमंत्री बने तब से एक तबका है जो केवल इसी काम में लगा है कि मोदी को किस प्रकार से गलत सिद्ध किया जाये। लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। मोदी की लाइन साफ है और विरोधियों का रास्ता घबराहट पैदा करने वाला। विरोधी मोदी का विरोध करने के साथ देश की व्यवस्थाओं पर चोट पहुंचा रहे हैं।
बाबा रामदेव का विरोध करने वाले यह नहीं देखते कि उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपिनयों को चुनौती पेश की और सफल हुये। आज असफल लोग केवल बदजुबानी करके खुद को प्रभावशाली दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। विदेशी कंपनियां हो या राहुल सहित विपक्ष अडानी और अंबानी का विरोध कर ारहे हैं क्योंकि इन दोनों भारतीय उद्योगपतियों ने विश्व बाजार को चुनौती दी है। इस व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में भारतीय राजनेता हमारे देश के उद्योगों का विरोध कर रहे हैं। देश की सांस्कृतिक विरासत की वापसी मोदी ने कराई तो धर्मान्तरण करने वाले समूह और वोट की राजनीति करने वाले नेतागण मोदी का विरोध कर रहे हैं। देश की सुरक्षा को चाक चौबंध करने और आतंक की जड़े हिले देने में भारतीय सेना की तारीफ होना चाहिए और सरकार के समर्थन की सराहना होना चाहिए लेकिन सेना के शौर्य पर सवाल उठाये जा रहे हैं और मोदी का विरोध? देश में वर्क कल् चर बढ़ रहा है। देश प्रगति कर रहा है तब विनिवेश को संपत्ति बेचने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके विरोध हो रहा है लेकिन देश की जरूरत क्या है यह समझाने का प्रयास नहीं हो रहा क्योंकि मोदी का विरोध जो करना है।
किसान आन्दोलन को पहले दिन ही कहा गया था यह कहीं और से ओर्गेनाइजड है तब उन्हीं तत्वों ने विरोध किया था आज जब विदेशी नाचने-गाने वाले सामने आ रहे हैं। उनका उपयोग कौन कर रहा है यह सामने आ रहा है भी मोदी का किसान बिलों को लेकर विरोध हो रहा है। क्या इसे देश नहीं समझ पायेगा। दुखद यह है कि किसान मोहरा बन रहे हैं? मोदी पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लग पाया फिर भी एक समूह उनको विलेन बनाने के प्रयास में लगा है। वे आज भी जनता का सबसे अधिक विश्वास पाने वाले नेता हैं। गुमराह किसान भी समझेंगे और ये विरोध करने वाले भी।