‘मोदी’ के दौर में क्यों एक्सपोज हो रहा है ‘विपक्ष’

भोपाल। (सुरेश शर्मा)  लगभग एक साल पहले के घटनाक्रम को देखिये जब मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार के गिरने की संभावना बन रही थी। वरिष्ठ और अनुभवी नेता कमलनाथ राज्यपाल के सदन में बहमत सिद्ध करने के पत्रों की अनदेखी कर रहे थे। कानून की दुहाई देने के लिए कई वकीलों को अपने साथ खड़ा कर लिया था। लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया तब राज्यपाल जो कह रहे थे वह सही निकला और कमलनाथ का ज्ञान बेकार चला गया। लेकिन सवाल यह है कि कमलनाथ की सरकार के गिरने का सबसे बड़ा आधार क्या था? उत्तर मिलेगा भ्रष्टाचार। कमलनाथ सरकार के समय भ्रष्टाचार के चर्चे इतने ज्यादा सुने जाते थे कि सहसा विश्वास हो जाता था। लम्बे समय से सरकार के बाहर रहने वाली राजनीतिक पार्टी है हो सकता है कि ऐसा होता हो। लेकिन जब सरकार गिर गई तो यह सवाल उठा कि यह मोदी का दौर है यहां गरीब के बैंक खाते में पैसा जाने का समय है इसमें भ्रष्टाचार कहां रह सकता है? तब प्रदेश की सरकार गिरी और शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार शपथ ली। अब भ्रष्टाचार रूक गया होगा ऐसा तो दावा नहीं किया जा सकता है लेकिन बोलबाला नहीं है।

मोदी के दौर में विपक्षी पार्टियों की सरकारों में भ्रष्टाचार का ऐसा तांडव है कि पुलिस के अधिकारियों तक को कहना पड़ रहा है कि साहब हद हो गई। एक मुम्बई शहर में से 100 करोड़ रुपये महीने वसूलने का दबाव बनाया गया। परिणाम यह हुआ कि सरकार के नाक की बन आई। अब सरकार को बचाने का खेल चल रहा है। लेकिन एक बात साफ हो गई कि भ्रष्टाचार का इतना बड़ा खेला तो संभव नहीं था फिर करवा कैसे लिया? हिम्मत तो देखिये नेताओं की। अधिकारियों को खुलआम कह रहे हैं कि वसूलो और लाओ। शरद पवार को लेकर इस प्रकार की दमदारी की बात की भी जा सकती हैं। लेकिन उद्धव ठाकरे की मजबूरी देखिये खाया पिया कुछ नहीं गिलास अलग से फूट गया। अब सरकार बचाने की आड़ में सभी के दरवाजे पर नाक घिसाई हो रही है। महाराष्ट्र की सरकार की हालत ऐसी हो गई है कि वह अब गई और तब गई। नेताओं के तो मजे हैं लेकिन विधायकों को समझ में आ रहा है कि उनको क्या मिल रहा है? इसलिए राजनीतिक बगावत की संभावना से कोई इंकार नहीं कर रहा है। यह होगा तब जब सरकार की हवा खिसकती हुई दिखाई देगी।

पंजाब की बात हो या अन्य विपक्षी सरकारें हों सब भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझी हुइ प्रतीत होती हैं। बंगाल की ममता सरकार की बानगी किससे छुपी है। वहां पर भ्रष्टाचार की काली छाया पहले दिन से ही सामने आ रही थी। ममता के खिलाफ वातावरण इसी कारण बनने लगा था अन्यथा इस तेज तरार नेता के तेज और वेग के सामने कौन ठहर पाया था? ऐसा ही संदेश अन्य विरोधी सरकारों से मिल रहा है। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार का प्रतिदिन आडिट होने के बाद भी कोई लांछन नहीं लग पाया। फाइलें तो न्यायालय के द्वारा भी परखी जा चुकी हैं। लेकिन यह दावा कोई नहीं कर सकता है कि मोदी की पार्टी की राज्य सरकारें दूध की धुली हुई हैं। सच यह है कि मोदी युग में सबको सब पता चल रहा है कौन कितने पानी में है।

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