‘मेहबूबा ‘ 370 व तिरंगा को लेकर क्यों हुई ‘बदरंग ‘

सुरेश शर्मा
भोपाल।
जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मेहबूबा मुफ्ती अपनी पत्रकार वार्ता तिरंगा को लेकर बिदक गई। एक पत्रकार ने सवाल पूछा था कि कश्मीर का झंडा तो आपने लगाया है लेकिन तिरंगा नहीं है? उन्होंने जो कहा उससे यह साफ है कि वे अलगाव की भाषा बोल रही हैं। भारत के प्रति नफरत की भावना उनके मन में भरी हुई है और वे धारा 370 की वापसी को लेकर किसी भी स्तर तक जाने को तैयार हैं? लेकिन सच यह भी है कि देश की सरकार का संचालन दमदार हाथों में होने के कारण उनकी चलने वाली नहीं है। मेहबूबा का बयान राजनीतिक नफरत के साथ अपनी जमीन खीसकने का प्रमाण भी प्रस्तुत कर रहा है। हम अपने कालम में पहले भी लिख चुके हैं कि नेताओं को मर्यादा तोडऩे, कानून तोडऩे और देशद्रोह की सीमारेखा को तोडऩे का अधिकार कैसे दे सकते हैं? लगता है ऐसा अधिकार किसी को भी नहीं दिया जा सकता है। लेकिन जब देश के टूकड़े होंगे कहने वालों के साथ धरने पर प्रमुख दलों के नेता पहुंचते हैं तब? जब शाहीन बाग आन्दोलन को समर्थन देने नेता पहुंचते हैं तब? जब महिलाओं को आइटम कहा जाता है तब? फारूख अब्दुल्ला और मेहबूबा देश विरोधी बयान देती हैं तब क्या सरकार का कोई दायित्व नहीं बनता है? हार्दिक पटेल जेल में जा सकते हैं लेकिन बाकियों के लिए कानून का दही क्यों जाम हुआ है?

भाजपा ने मेहबूबा के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन बाद में गिरा भी दी। भाजपा का दावा है कि उन्होंने सरकार के साथ मिलकर उन कानूनों और आदेशों को बदलवाया जो कश्मीर में सेना को काम करने में बाधक थे। बाद में लगा कि बाकी निर्णय केन्द्र सरकार कर सकती है तब सरकार का साथ छोड़ दिया। लेकिन इससे मेहबूबा को साथ चलने का लाभ भी हुआ और विपक्ष को भाजपा पर चोट करने का मौका भी मिल गया। सरकार गिरने के बाद मुफ्ती और अलगाववादियों के पक्ष में आकर खड़ी हो गई। इसी बीच मोदी सरकार धारा 370 और 35ए को समाप्त करके कश्मीर में अलगाव और आतंकवाद के साथ वहां राजनीतिक धारा की हवा निकाल दी। इसी हवा को फिर से भरने के लिए फारूख अब्दुल्ला और अब मेहबूबा फडफ़ड़ा रही हैं। फारूख का बयान शालीन भाषा में अलगाव भरा हुआ है जबकि मेहबूबा आर-पार हैं। ये सभी नेता धारा 370 की वापसी के लिए चीन से सहायता लेने की बात कर रहे हैं। चीन अपने फेर से तो निकल नहीं पा रहा है और इनको उससे सहायता की उम्मीद है।

प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया है कि कोई चाहे जिससे मदद मांग ले धारा 370 की अब वापसी संभव नहीं है। जो करेगा वह भरेगा। मेहबूबा और अब्दुल्ला को अपनी जमीन बचाने की चिन्ता है। वे भारत के साथ टकराव की स्थिति तक आ गये हैं। लेकिन जब चीन की  ही नहीं चली तो इनकी चलेगी इसकी संभावना कम है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत विरोधी गतिविधियां करने पर इन नेताओं पर कार्यवाही क्यों नहीं होगी? क्या राजनीतिक लाभ-हानि की चिन्ता के कारण देश ने आज तक जितना भुगता है उसी हिसाब से नरेन्द्र मोदी की सरकार के समय पर भी भुगतेगा? यह उम्मीद इसलिए है कि उनके निर्णय ही ऐसे रहे हैं।

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