‘मुरली’ भाजपा के लिए एसिस्ट हैं या ‘लायबिलिटी’
पहले का विवाद पार्टी का आन्तरिक मामला था। बोल गये कि पांच-छह बार के विधायक सांसद टिकिट मांगते हैं कितने नालायक हैं। उमा की बात यहां फिट होती है। अपने राज्य में सीट जितवाने में पसीने आते हैं और बीस साल सरकार वाले राज्य में ज्ञान परोस रहे हैं। क्या अनुभव है कि पांच बार का विधायक कितने नेता तैयार कर चुका है? लेकिन पार्टी की बात थी तो गले नहीं पड़ी। हौसला बढ़ता गया। पत्रकारों के सामने ही बोल गये कि ब्राह्मण ऊपर वाली जेब में और बनिये नीचे वाली जेब में हैं। गलतफहमी में हैं। राजनीति जेब में रखने से नहीं दिल में रखने से चलती है। शिवराज यूं ही मुख्यमंत्री नहीं बने। जनता को भगवान की तरह मानते हैं इसलिए वह उन्हें चुनती है। जेब में रखने का दंभ नहीं भरते। नरेन्द्र मोदी हरदिल अजीज क्यों हैं? क्योंकि उन्होंने वह किया है जिसके लोग दीवाने हैं। झुक कर प्रमाण करते हैं मंचों से दस साल का प्रधानमंत्री तो जमाने को जेब में रखने की बात कर सकता है। कौन रोकेगा? लेकिन विन्रमता वह फल है जिसकी मिठास कभी कम नहीं होती। हेकड़ी कडवी होती है। वह दूसरों के मूंह की तासीर बिगाड़ती है तब सत्ता का स्वाद बिगड़ जाता है।
मुरलीधर को कौन सा फर्क पड़ेगा? जिस राज्य से आते हैं वहां सत्ता की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती इसलिए उन्हें तकलीफ कैसी और मजा कैसा? यहां आकर तरावट से जुबान फिसल रही है। अब दो दिन हो गये भाजपा के कुछ नेताओं ने सवाल किया है कि आप ही बताओ भाई साहब यह मुरली धर राव भाजपा के लिए एसिस्ट है या फिर लायबिलिटी? हम क्या उत्तर दें। कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि सत्ता से ऊबों मत और पत्रकारों के सामने बामन बनियों को जेब में पड़ा बता रहे हैं। कार्यकर्ताओं से बोले पहले गणेश को मनाना होगा एक ने वहीं पूछ लिया प्रसाद मिलेगा क्या? इन दिनों भाजपा इसी जद्दोजहद में फंसी है और राव उसे उलझा रहे है।