‘मानव’ सेवा ही मकसद है संघ का बता गये ‘नारायण’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। इन दिनों फिर समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। कई कारणों से चर्चा में है। पहला यह कि आज इस कोरोना महामारी में मानव सेवा संघ का पहला धर्म है यह फिर से सामने आ गया। इससे पहले जब भी कहीं कोई आपदा आती है संघ का स्वयंसेवक अपने प्राणों की चिन्ता छोड़कर मानव सेवा में जुट जाता है। एक विदेशी समीक्षक ने अपने विचार रखते हुये कहा कि किसी भी देश में संघ जैसा कोई संगठन नहीं है जो खुद को सेवक बताता हो। अधिकांश सेना हो सकते हैं या अन्य पदनाम दे सकते हैं लेकिन सेवक तो केवल स्वयंसेवक ही हैं। जिनके पास ऊंची डिग्रियां हैं और मोटी तन्खा ले सकते हैं। इसके बाद भी सेवा करने के लिए स्वयंसेवक बन रहे हैं। विचार के रूप में जो भी हो लेकिन सेवा में कहीं कोई भेदभाव का आरोप नहीं लगा पाया। अनेकों बार ऐसे बिरले उदाहरण भी स्वयंसेवकों ने पेश किये हैं जिससे मानवता का नमन करने का मन स्वभाविक रूप से करता है। ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है नागपुर के नारायण भाऊराव जी का। उन्होंने संक्रमित होते हुये एक युवक को अपने बेड देने का आग्रह डाक्टर से किया जिसको जरूरत थी। उसके तीसरे दिन नारायण भाऊराव का निधन हो गया। लेकिन वे मिशल कायम करके संघ विचार और खुद को आदर्श स्वयंसेवक सिद्ध करके चले गये।

यही संघ का मकसद है। देश के लिए बेहतर नेता, समाज के लिए उत्तम किरदार निभाने वाले सेवक और संघ के लिए आदर्श स्वयंसेवक तैयार करना। नारायण भाऊराव ने यही सिद्ध किया। वे जीवन के आठ दशक पूरे कर चुके थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना जीवन जी लिया है। इस युवक का जीवन शेष है। इसलिए कोरोना के लिए आरक्षित मेरा बेड  इसे दे दिया जाये। हुआ ऐसा ही युवक तो बच गया लेकिन तीसरे दिन नारायण राव चल बसे। यह संघ के आदर्श की एक मिशाल है। अनेकों स्वयंसेवक सेवा कर रहे हैं। लेकिन नारायण जी ने आदर्श स्थापित कर दिया और इस नश्वर शरीर को छोड़कर नारायण के पास चले गये। यह सब चर्चा में इसलिए आ गया क्योंकि इन दिनों मीडिया की नजर सब पर टिकी हुई है और मीडिया के सामने बात लाने का समय है। संघ की ओर से ऐसा कोई बयान जारी नहीं किया गया। यही आदर्श इस बात को प्रमाणित करता है कि संघ द्वारा निर्माण के कारण ही पूरा देश संघ की प्रशंसा करता है। उसके विचारों की राजनीतिक पार्टी को केन्द्र और प्रदेश की सरकारों  संचालन करने का मौका दिया है।

यह ऐसा अवसर भी है जब यह कहने की स्थिति निर्मित होती है कि संघ को जब तक करीब से देख न लिया जाये आलोचनाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए। आलोचना करने वाले एक मकसद को लेकर ऐसा करते हैं। वे सकारात्मकता में भ्रम पैदा करने का प्रयास करते हैं जितना हो जाये। जितना हो जायेगा उसका राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास करते हैं। संघ में आये दिन सेवा के उदाहरण सामने आते हैं और केन्द्र मेंं पांच साल से अधिक समय से सरकार है लेकिन कोई भी पक्षपात का आरोप नहीं लगा है। यही संघ है जो केवल देशहित और समाजहित के बारे में ही सोचता है।

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