‘मानवाधिकार’ के दोगलेपन पर पीएम का ‘नस्तर’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण का छोटा सा हिस्सा देश के राजनीतिक दलों के लिए बड़ी सीख बन गया। प्रधानमंत्री ने मानवाधिकार को अपनी राजनीतिक पार्टी के हितों के हिसाब से व्याख्या करने पर जमकर लताड़ लगाई। मोदी ने कहा कि एक ही प्रकार की घटना के दोहरे मापदंड चिंता का विषय है। उन्होंने न तो किसी नेता का नाम लिया और न ही किसी राजनीतिक दल का ही उल्लेख किया। लेकिन सब समझ गए कि मानवाधिकार का दोगला चेहरा लेकर कौन राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं? मोदी के इस भाषण के इस हिस्से के बाद समीक्षाओं का दौर चल पड़ा। यह हो सकता है कि समीक्षकों को यह खुद समझ में आ गया हो या किसी ने याद दिलाया हो। वैसे खुद ही समझ में आने वाली बात है। क्योंकि पिछले दिनों से क्रुर और क्रुरमत घटना को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं। हथियार से हत्या करना क्रुर घटना है। वाहन से कुचल कर मारने को भी क्रुर घटना ही कहा जायेगा। लेकिन भीड़ समझबूझ कर लाठियों से पीटकर मार रही है इसे क्रुरमत घटना कहा जायेगा। राकेश टिकैत सरीके नेता क्रुरमत घटना को जस्टिफाई करने का प्रयास कर रहे हैं जो उनके शर्मनाक चेहरे को सामने ला रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मानवाधिकार के दो चेहरे और दो मायने नहीं हो सकते हैं।

लखीमपुर खीरी मामले में विपक्ष जिस अंदाज में आक्रोश दिखा रहा है। उसमें किसानों को ही केन्द्र बिन्दु में रखा जा रहा है। लेकिन वहीं पीट-पीट कर मार दिए भाजपा कार्यकर्ताओं में मानव नहीं दिखाई दे रहा है और न ही उनका कोई मानवाधिकार ही दिख रहा है। राजस्थान में एक दलित युवक की पीट-पीट कर हत्या से किसी को कोई पीड़ा नहीं है क्योंकि वह कांग्रेस शासित राज्य की घटना है? न ही धार्मिक आधार पर मारे गये कश्मीर के दो शिक्षकों में कोई मानवाधिकार पर हमला दिखाई दे रहा क्योंकि वह आतंकवादियों का कृत्य है। यह कृत्य वोट नहीं दिलवा सकता और न ही सहानुभूति पैदा करवा सकता है। इसलिए मानवाधिकारों का दोगलापन प्रधानमंत्री ने रेखांकित करके बता दिया कि देश को भडक़ाया नहीं जा सकता है। प्रधानमंत्री बोले घटनाओं को अपने हिसाब से परिभाषित किया जाता है। लखीमपुर में केन्द्रीय मंत्री के घर नोटिस चिपकने पर हाय-तौबा जायज लगती है लेकिन महाराष्ट्र में 100 करोड़ महीना घूस मांगने के आरोपी पूर्व मंत्री अनिल देशमुख के घर पर बार-बार चस्पा नोटिस का कोई संज्ञान नहीं है? क्योंकि एक प्रकार की घटना के दो मायने निकाले जा सकते हैं? यही प्रधानमंत्री कह रहे हैं।

देश ने वर्षों देखा है कि कश्मीर के मामले में सेना को अपमानित किया जाता रहा और सरकारें निंदा करती रही। क्या आतंकवादी निंदा करने से मान जाएंगे? नहीं, उन्हें गोली की भाषा समझ में आती है। कश्मीर पर विपक्ष का एक रवैया और राजस्थान में दूसरा और यूपी में तीसरा। यह दोगलापन जनता भी समझ रही है और कानून भी। कई बार तो न्याय को भी लखीमपुर तो दिख जाता है, दिखना भी चाहिए लेकिन राजस्थान नहीं दिखता वह भी दिखना चाहिए? प्रधानमंत्री ने नस्तर लगा दिया है कि मानवाधिकार पर दोहरा मापदंड नहीं हो सकता है उसे तो बेनकाब किया जाना चाहिए।

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