मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है भाजपा नेतृत्व देश भर में दिग्गज नेताओं को दे रहा है पार्टी में प्रवेश बढ़ा रहे हैं सहयोगी

भाजपा नेतृत्व विपक्षी दलों और अपनी पार्टी के प्रभावशाली नेताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है। खुद प्रधानमंत्री ने राजग को 400 पार और भाजपा को 370 का लक्ष्य देकर दबाव पहले ही बनाया था। अब प्रधानमंत्री की बात को रखने के लिए सभी नेता सक्रिय हैं। इसी लक्ष्य को पाने के लिए अन्य दलों में थोड़ा सा भी प्रभाव रखने वाले नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई जा रही है। इससे विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बन रहा है। एक सीट पर कई नेताओं के हाेने से दावेदार पर भी दबाव बन रहा है। इस रणनीति से संगठन पर एकाधिकार और सन्तुलन का फार्मूला भी तैयार हो रहा है।

सुरेश शर्मा, भोपाल। भाजपा नेतृत्व विपक्षी दलों और अपनी पार्टी के प्रभावशाली नेताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है। खुद प्रधानमंत्री ने राजग को 400 पार और भाजपा को 370 का लक्ष्य देकर दबाव पहले ही बनाया था। अब प्रधानमंत्री की बात को रखने के लिए सभी नेता सक्रिय हैं। इसी लक्ष्य को पाने के लिए अन्य दलों में थोड़ा सा भी प्रभाव रखने वाले नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई जा रही है। इससे विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बन रहा है। एक सीट पर कई नेताओं के हाेने से दावेदार पर भी दबाव बन रहा है। इस रणनीति से संगठन पर एकाधिकार और सन्तुलन का फार्मूला भी तैयार हो रहा है। आज लगभग विपक्षी दल यह मान रहे हैं कि 2024 के चुनाव के बाद अगली सरकार बनाने की रणनीति तैयार करने में हित है अभी तो मोदी का मुकाबला करने की स्थिति नहीं बन पा रही है। अभी दक्षिण से भी बड़े नामों को भाजपा के साथ जुड़ते हुए देखा जा सकता हे। मोदी के दक्षिण दौरों का प्रभाव चुनाव की घोषणा से पहले दिखाई दे जायेगा।

देश की राजनीति इन दिनों लोकसभा चुनाव की संभावनाओं और समीकरणों को लेकर तय हो रही है। गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा और निर्णय की स्थिति सभी दलों में बनती जा रही है। लम्बे समय बाद यह चुनाव ऐसा हो रहा है जब चुनाव की सक्रियता चुनाव की घोषणा से पहले ही हो रही है। देश के दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दल भाजपा और कांग्रेस ने पहली सूची भी जारी कर दी है। इसमें भाजपा आगे निकल गई क्योंकि उसने 195 नाम घोषित किये हैं जबकि कांग्रेस महज 39 नाम ही घोषित कर पाई है। हाल की सूचना के अनुसार टीएमसी ने भी बंगाल के नाम घोषित कर दिये हैं। अन्य दलों के प्रयास भी चल रहे हैं। यह चुनाव देश की राजनीति के लिए खास होगा। क्योंकि नरेन्द्र मोदी तसरी बार सरकार बना कर इतिहास रचने का प्रयास करने वाले हैं और विपक्षी दल अजेय मोदी को हराने के लिए एक ही तम्बू में एकत्र हो रहे हैं। विपक्ष ने नया गठबंधन इंडी बनाया है और पुराना यूपीए गहरी खाई में धकेल दिया है। भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका था यूपीए। हालांकि यूपीए में शामिल दलों जितनी ताकत नये गठबंधन में नहीं दिख रही है। यह गठबंधन दक्षिण में प्रभाव रखता है जबकि भाजपा ने भी दक्षिण में हाथ पांव मारना शुरू किये हैं।

भाजपा सत्ता में है तो उसको उसका स्वभाविक लाभ मिल रहा है। कुछ ऐसे काम भी नरेन्द्र मोदी नेद अपने कार्यकाल में किये हैं जिससे जन आकर्षण उनकी ओर तेजी से बढ़ा है। दस साल की सरकार के बाद किसी भी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के प्रति अपेक्षा से अधिक आकर्षण और समर्थन देश की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है। भारत की राजनीति को प्रभावित करने वाला राम मंदिर का मुद्दा अपन परिणिति को पा चुका है। उसका फल यह हुआ है कि भव्य राम मंदिर और उसमें मनोहारी श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। उससे भाजपा को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है। मुस्लिम बहुल देशों में मंदिर परम्परा की शुरूआत करके मोदी ने सनातन को ताकत प्रदान की है। इसका सकारात्मक असर दिख रहा है। मोदी की कूटनीति को समूचा विश्व लोहा मान रहा है। कतर से जासूरी के आरोप में मृत्युदंड पाये आठ भारतीय पूर्व सैनिकों को सकुशल घर वापस लाने जैसा प्रभावशाली काम मोदी के कद को विश्व में बढ़ाता है और देश में जनसमर्थन पैदा करता है। यही विपक्ष की परेशानी है और उसके पास मोदी की मूरत खंडित करने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है। इसका प्रभाव मतदाता पर उलटा पड़ता है। जब मालदीव में मोदी पर हमला हुआ तो सरकार बाद में बोली जनता की कार्यवाही पहले शुरू हो गई थी। इसलिए मोदी देश की राजनीति में सबसे आगे खड़े हैं।

विपक्षी योजना को धराशाही करने के लिए भाजपा ने अन्य दलों के खास नेताओं को अपने पाले में लाने के लिए काम शुरू कर रखा है। इसी काम का प्रभाव है कि कांग्रेस अच्छे नेताओं से विहिन होती जा रही है। उसमें वे नेता प्रवेश कर रहे हैं जो भाजपा में खप नहीं सकते हैं। उनके विचारों से कांग्रेस के विचार भी दूषित हो गये हैं। केसी वेणुगोपाल व जयराम रमेश जैसे वाम विचारों के नेता कांग्रेस के नीतिकार हो गये हैं और अब राहुल गांधी को दिशा कन्हैया कुमार दिखा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस विचार के नेता अन्य दलों में जा रहे हैं। उन्हीं दलों में जो राजग के घटक दल हों। मिलिंद देवड़ा शिवसेना में शामिल हो गये तो अशोक चव्हाण भाजपा में आ गये। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में सुरेश पचौरी आ गये तो अन्य राज्यों में भी यह सिलसिला चल रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले कई और नेता भाजपा के सदस्य हो सकते हैं। कमलनाथ भाजपा की चौखट से वापस आ गये। उनके बेटे के कयास फिर से शुरू हो गये हैं। देश भर में भाजपा में आने का चलन बढ़ रहा है।

मध्यप्रदेश में सुरेश पचौरी द्वारा भाजपा की सदस्यता लेने पर आम चर्चा है। कहा जा रहा है कि पचौरी कभी चुनाव नहीं जीते तो उनको इतनी तारीफ के साथ लेने का क्या लाभ है? भाजपा मध्यप्रदेश के नेताओं पर दबाव बनाने का काम भी कर रही है और यह संदेश देने में भी कामयाब हो रही है कि विपक्षी दलों में हार का डर है जिससे प्रभावित होकर भाजपा में नेताओं का आना शुरू हो गया है। मनोवैज्ञानिक दबाव से विपक्ष ग्रसित भी दिख रहा है। इतना जरूर समझ मेंं आ सकता है कि 2024 लोकसभा के चुनाव के बाद देश की राजनीति में व्यापक और व्यापक बदलाव की संभावना दिख रही है। इसमें नेताओं की भूमिका भी बदलेगी और देश की नीतियों में भी व्यापक बदलाव आयेगा?

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