‘मध्यावधि’ चुनाव का क्यों सोचने लग गई है ‘भाजपा’?

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा का जब से गठन हुआ है तब से कभी भी ऐसी कोई स्थिति नहीं बनी कि सरकार बनाने के लिए किसी अन्य का सहयोग लेना पड़ा हो। पहले कांग्रेस की सरकार बनती रही और जब संविद सरकार बनी तब भी विधानसभा में एक ही दल को समर्थन प्राप्त था। लेकिन उस सयम दल बदल कानून नहीं होने के कारण संविद की सरकार बन गई। इसके बाद भी कभी प्रदेश में तीसरा दल दतना ताकतवर नहीं हो पाया कि सरकार बनाने के लिए उस पर निर्भरता हो। भारतीय जनशक्ति के रूप में उमा भारती ने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई तब भी ऐसा प्रदेश के मतदाताओं ने जनादेश नहीं दिया जैसा इस बार दिया है। सबसे विचारणीय बात यह है कि दोनों ही राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा को सरकार बनाने के करीब तो पहुंचाया लेकिन अपने दम पर सरकार बनाने जैसी स्थिति नहीं दी। लेकिन कांग्रेस को मैजिक फिगर के अधिक करीब पहुंचा दिया है इसलिए उसने जोड़तोड़ कर सरकार बना ली और भाजपा पन्द्रह साल की सरकार के बाद विपक्ष में आ गई। लेकिन कमलनाथ सरकार रोज हिचकौले ले रही है। उसे बाहर से समर्थन देने वाले तंग करते रहे हैं यह तो सव विदित है लेकिन अब तो सिंधिया समर्थक मंत्रियों के द्वारा दी जाने वाली थ्रेट साफ कर रही है कि सरकार अधिक दिन नहीं चल पायेगी। ऐसे में भाजपा के संगठन मंत्री रामलाल का मध्यावधि चुनाव की बात अजीब नहीं है।
सदस्यता अभियान की बैठक में संगठन महामंत्री रामलाल ने कह दिया कि प्रदेश में चुनाव हो सकते हैं इसलिए आप बूथ को एक बार फिर से ताकतवर बनाईये। नई बात यह भी है कि मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए प्रयास करिये। यह भाजपा की नीति का बदलाव है या विश्व को यह दिखाने का प्रयास है कि पिछली बार सबका साथ सबका विकास का नारा सही रहा कोई भेदभाव का आरोप नहीं लगा और दोबारा सरकार बनाकर आये। इस बार सबका विश्वास जोडऩे का मतलब विश्व को दिखाना है और देशवासियों में आपसी भाईचारा कायम करना है। चलो यह तो राजनीति का हिस्सा है लेकिन कमलनाथ की सरकार गिरेगी और चुनाव होंगे इस संदेश ने भाजपा की नीयत को साफ कर दिया है। भाजपा प्रदेश में इस बार सरकार बनाने की दिशा में प्रयास नहीं करने वाली है। यदि कमलनाथ सरकार गिरती है तब भाजपा सरकार बनाने का दावा नहीं करेगी आम चुनाव की ओर जाने का प्रयास करेगी। इससे मतदाता को ही निर्णय लेने दीजिए जो वह चाहता है वही होगा।
ऐसा भर नहीं है कि कमलनाथ को सरकार चलाने में परेशानी आ रही है।  नाथ सरकार विधानसभा का सामना करने की स्थिति में नहीं है। वह अब तो केबिनेट की बैठक का आयोजन करने की स्थिति में भी दिखाई नहीं देती। उसके मंत्री ही मुख्यमंत्री की नियत पर सवाल उठा रहे हैं। मुख्यमंत्री उन्हें हटाने के लिए भी बेबश हैं क्योंकि हायकमान ने अभी तक उन्हें मिलने का समय ही नहीं दिया है। ऐसे में सरकार को लेकर उहापोह सोचना जायज ही है। दूसरी तरफ भाजपा भी चुनाव इसलिए चाहती है कि उसके यहां पर भी अब सर्वमान्य नेता नहीं हैं। जब शिवराज को मुख्यमंत्री बनाया गया था वैसा दिल्ली का समीकरण नहीं है। तब और आज में दिशा और धाराएं दोनों बदल गई हैं। तब रामलाल को सरकार की बजाये मध्यावधि ही दिखाई दे रहे हैं।

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