‘बाबा टिकैत’ का उत्तराधिकारी बनने के करीब आया ‘राकेश’
भोपाल। उन दिनों हम पत्रकारिता में आये ही थे जब महेन्द्र सिंह टिकैत किसानों को एकजुट करके अपना हक मांगने की कला सिखा चुके थे। देश भर के किसानोंमें उनका विश्वास जग गया था। सरकारें उनसे मिलने आती थीं उन्होंने कभी सरकार के पास जाकर अपना मांग पत्र नहीं सौंपा। वह एक दौर था। किसान हुक्का गुडग़ुड़ाते रहते थे और हंसी ठिठौली में आन्दोलन सफल हो जाता था। वो भी दिन और आज के दिन भी हैं। किसान महीनों से जमा हुआ है सरकार उनसे बात भी कर रही हैं लेकिन किसान अपनी मांग छोडऩे को तैयार नहीं है जबकि सरकार भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। कुछ समीक्षक इसे सरकार की तानाशाही भी कह रहे हैं लेकिन वे निष्पक्ष नहीं हैं। उनकी लेखनी पर सवाल तो नहीं उठते लेकिन उनका झुकाव किसानों के साथ होता तब भी उन्हें निष्पक्ष कह देते लेकिन उनका झुकाव तो सरकार के विरोध में है। इसलिए किसान नेतृत्व गुमराह हो रहा है ऐसा लिखने वाले भी बहुत हैं। इसका कारण यह है कि किसान अपनी समस्याओं के लिए सरकार के सामने आया है या कि सरकार को नीचा या कमजोर दिखाने के लिए। सरकार है कि बात करने को तैयार है और फार्मूले भी दे रही है। यही सवाल सरकार को तनाशाह कहने वालों पर सवाल उठ रहा है। इसलिए सरकार और किसान कुछ और उदार मन बनायें।
किसान आन्दोलन पंजाब से उठा था। यूपी के टिकैत बंधुओं की तो विवशता था कि वे अपने हक में आया किसान नेता का तगमा छोडऩा नहीं चाहते थे। इसलिए पहले दिनों में राकेश टिकैत को अछूत माना गया। लेकिन आज बाबा टिकैत के इस पुत्र के आसपास आन्दोलन चला आया है। राजनेता राकेश को ही समर्थन देने आ रहे हैं। लालकिले के घटनाक्रम ने पंजाब के किसान नेताओं को कटघरे में खड़ा कर दिया जबकि राकेश के आसुओं ने फिजा को बदल दिया। कई बार लगता है कि सरकार भी किसानों के आन्दोलन को पंजाब से निकाल कर यूपी के किसानों के हाथ में देना चाहती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पंजाब का किसान वामपंथियों के हाथों का खिलौना हो रहा है जबकि यूपी का किसान नेतृत्व आज भी किसानों के करीब ही सोचता है। इसलिए भी राकेश टिकैत ने महेन्द्र सिंह टिकैत के रूतबे को कायम रखा है। लेकिन एक बात को याद करना होगा महेन्द्र सिंह टिकैत किसानों को मंडियों की अंधी गलियों से निकालकर खुले बाजार के भी हिमायती थे। बाबा के इस आदेश को भी मानना होगा। तभी महेन्द्र टिकैत की मंशा को जीया जा सकता है। यह सरकार भी वही कर रही है।
एक बात जरूर विचार करने की है? नरेन्द्र मोदी सरकार के काम करने और निर्णय लेने की परिस्थितियों को और ताकत को समझना होगा। एक से एक बड़े निर्णय। आतंकवाद के खिलाफ, पाक व चीन के खिलाफ दमदारी, सुधारवादी निर्णय। 370 सहित एक के बाद एक। लेकिन किसान आन्दोलन के बाद मोदी पर बनाये दबाव का परिणाम यह हुआ कि दिल्ली में धमाका हो गया? विश्व में भारत की धमक कम हो गई? इसका लाभ किसानों को मिलेगा या उनको जिन्होंने भ्रष्टाचार व चोरी को अपनी राजनीति का आधार बनाया था। पंजाब वालों की आड़ तो पाक व खालिस्तानी ले सकते हैं लेकिन टिकैत इनका मोहरा क्यों बन रहे हैं? यही बड़ा सवाल है।