बड़े होने का अहसास कराने का प्रयास

भोपाल। विशेष प्रतिनिधि। किसी भी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आ जाना गंभीर बात है। अविश्वास प्रस्ताव में कभी सरकारें गिरा नहीं करती हैं, बल्कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा इस बात का विपक्ष की ओर से अहसास कराए जाने का प्रयास होता है। सरकार के प्रति जो नैरेटिव बन चुका होता है उसको भेदने का लक्ष्य लेकर विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है। अनेकों बार वह तीखे प्रहारों के साथ होता है, कई बार ऐसा भी होता है कि उसमें उतनी धार नहीं होती जितनी अपेक्षा अविश्वास प्रस्ताव में रहती है। शिवराज सरकार के खिलाफ आया यह अविश्वास प्रस्ताव इतिहास का सबसे लचर और कमजोर अविश्वास प्रस्ताव है। इसलिए प्रस्ताव के बारे में चर्चा करने की बजाए दो बातें विशेष रूप से यहां रेखांकित करने जैसी लगती है। पहली क्या सरकार इसके बाद अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने का प्रयास करेगी? मुख्यत: अधिकारी वर्ग के काम करने के तौर-तरीके भ्रष्टाचार और आचरण को लेकर जो सवाल उठे हैं। वे सरकार के लिए हलचल पैदा करने वाले हो या ना हो लेकिन लोकतंत्र के लिए बहुत गंभीर है। जब अधिकारी जनप्रतिनिधियों के पत्र का जवाब नहीं देंगे तब इस भयावह स्थिति के बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। दूसरा जन प्रतिनिधियों की राजनीतिक समाझ और उनकी विश्वसनीयता को भी इस प्रस्ताव ने उजागर किया है। कमलनाथ का इस प्रस्ताव के समय अनुपस्थित रहना वह बड़े हैं इसका एहसास कराने का अनुचित तरीका भर दिखा। जबकि उन्हें इसको प्रधानता देना चाहिए थी।

भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के भतीजे का विवाह समारोह नई दिल्ली में संपन्न हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उसमें शामिल होना था। क्योंकि उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव था इसलिए वे उसमें शामिल होने नहीं जा पाए। वही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सिरोंज की सभा में दम भर रहे थे कि वे वचन के पक्के हैं इसलिए आपके बीच में आए हैं। जबकि सच यह है कि राजनीति में अविश्वास प्रस्ताव का महत्व किसी सभा में उपस्थिति से अधिक होता है। इसलिए कमलनाथ के द्वारा विधानसभा में उपस्थित न होने का संदेश केवल और केवल यही है कि वे इतने बड़े हैं कि उनके लिए अविश्वास प्रस्ताव कोई मायने नहीं रखता। या वे सरकार का समर्थन दिखाने का संदेश देरहे हैं। वह अपनी पार्टी के नेता प्रतिपक्ष के द्वारा रखे गए गंभीर प्रस्ताव को गंभीर मानने के लिए इसलिए तैयार नहीं है क्योंकि वह यह अहसास कराना चाहते हैं कि इन सब चीजों से बहुत ऊपर है। राजनीति में इस प्रकार का अहंकार जनता के गले कभी नहीं उतरता। उसका चुनाव में हमेशा नुकसान होता है।

अविश्वास प्रस्ताव में सरकार को घेरने के सभी रास्ते अपनाए जाते हैं। लेकिन इसमें आंतरिक गुटबाजी का प्रदर्शन न हो इसकी चिंता भी की जाती है। सज्जन सिंह वर्मा का यह दावा करना कि महाकाल लोक के संबंध में कोई बिंदु नहीं है और यदि है तो नेता प्रतिपक्ष से मैं अभी इस्तीफा दिलवा दूंगा। गुटबाजी का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। अलग-अलग समूह और बंटी हुई कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव के प्रति उतनी ही गंभीर है जितनी कमलनाथ हैं। जितने बिंदु अविश्वास प्रस्ताव में शामिल किए गए हैं, हो सकता है उनमें उतना पैनापन नहीं हो लेकिन उसमें गहराई जरूर है। मंत्रियों की कमजोर पकड़ और अधिकारियों का उद्दंड और भ्रष्ट होना इस अविश्वास प्रस्ताव का सबसे गंभीर बिंदु है। वैसे विधानसभा का सत्र कम समय के लिए चलना भी अधिकारियों को उद्दंडता के लिए राह खोलता है। ऐसे में इस अविश्वास प्रस्ताव की गहराई पर सरकार को जरूर मंथन करना चाहिए। कमलनाथ की बात छोडि़ए वे तो खुद को बहुत बड़ा सिद्ध करने के प्रयास में जब से प्रदेश में आए हैं तभी से करने में लगे हुए हैं।

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