‘प्रियंका’ क्यों बनी हारी हुई बाजी का ‘चेहरा’?
पिछली विधानसभा में कांग्रेस के सात विधायक थे। इसमें दो तो भाजपा में चले गये। अबकी बार क्या कांग्रेस का नेतृत्व सीधे सरकार बनाने की मंशा पाल बैठा है? राजनीतिक प्रयास तो करना चाहिए लेकिन जब कहीं चर्चा में नहीं हैं तब चेहरा घोषित करना कितनी राजनीतिक समझदारी है। पिछली बार शीला दीक्षित को यूपी में चेहरा घोषित किया गया था इस बार खुद प्रियंका बन गईं। शीला के नाम पर 7 विधायक जीते थे प्रियंका के नाम पर कितने जीतेंगे पता नहीं? राजनीति अवधारणाओं का खेल है। अखिलेश हालांकि अकेले भाजपा से लड़ रहे हैं इसके बाद भी ड्रामा दिन भर भीड़ का करते हैं। योगी जी चेहरा घोषित हैं लेकिन केन्द्र-राज्य के साथ अपने सहयोगियों की भीड़ दिखाते हैं। कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसमें दोनों भाई-बहिन ही सब जगह मिलते हैं। मानो पार्टी का इतिहास इन दो परिजनों तक आकर सिमट गया हो। यूपी ही क्या पूरे देश का नेता ही कांग्रेस के केंप से रवाना हो गया है? युद्ध हो या चुनाव नेताओं (सैनिकों) का जमावड़ा तो दिखाना ही पड़ता है। लेकिन कांग्रेस खाली है।
यह भी अपने आप में विचार करने का पहलु है। क्या कांग्रेस नेतृत्व ने देश में अपनी कमजोरी को स्वीकार कर लिया है? जिस खानदान ने केवल प्रधानमंत्री ही पैदा किये हैं वहां अब मुख्यमंत्री बनने का मानस बना लिया है? वह भी ऐसी स्थिति में जब न तो पार्टी का जनाधार ही शेष है और न ही कहीं से कोई संभावना ही दिखाई दे रही है। यही सवाल इस समय सबके जहन में है कि प्रियंका ने खुद को यूपी में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है या फिर चुनाव में अगुवाई का चेहरा? जो भी हो कांग्रेस का ऐसा निर्णय होगा यह तो समझने में बहुत समय लग रहा है। पंजाब में सरकार है वहां पर समय देने की बजाए यूपी में इतनी मेहनत भी समझ से परे दिखाई दे रही है। चलों कोई बात नहीं प्रियंका वाड्रा सीएम के सपने में अधिक प्रचार जरूर करेंगी।