‘प्रवक्ताओं’ की टिप्पणी पर मुस्लिम देशों का ‘प्रतिवाद’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाला भारत आज एक अजीब दुविधा में खड़ा हुआ दिखाई देता है। केन्द्र की सरकार चलाने वाली राजनीतिक पार्टी के एक-दो प्रवक्ताओं ने अमर्यादित टिप्पणी क्या कर दी मुस्लिम देशों ने तो मानों भारत पर चढ़ाई ही कर दी? यह हो सकता है कि सब भावावेश में हुआ हो और पता चलने पर क्षमा मांग ली गई। यह भी हो सकता है कि परिस्थितियां ऐसी बन गई हों कि ऐसी टिप्पणी अपरिहार्य हो गई हो। यह भी हो सकता है कि टिप्पणी अवांछनीय हो और इसे पूर्णतया गलत ही कह देना चाहिए। इन सभी बातों पर विचार करके भाजपा ने अपनी पार्टी की नीति को साफ किया और अर्मयादित टिप्पणी करने वाली प्राय समझदारी भरी बात करने वाली नुपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया। एक अन्य प्रवक्ता को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया गया। भारत का कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक मान्यता में अव्वल स्थान रखने वाले की आलोचना को समर्थन नहीं देता। मुझे तो लगता है कि कश्मीर में हिन्दूओं को चुन-चुन कर मारने की घटनाओं के बाद भी समर्थन नहीं देगा। यह पता है कि विश्व में भर में हो रही आतंकी घटनाओं में इस्लाम के मानने वाले शामिल रहते हैं इसके बाद भी संपूर्ण हिन्दू समाज के लिए पैगम्बर साहब की शान में गुस्ताखी स्वीकार करने योग्य हो ही नहीं सकती। नुपुर और नवीन भी ऐसा ही सोचते होंगे।

यह तो रही एक बात! दूसरी बात यह है कि क्या कोई मुस्लिम लेखक यह लिखने का सहास कर सकता है कि ज्ञानवापी में जिस शिवलिंग को हिन्दूओं की आस्था का प्रतीक और ज्योतिर्लिंग कहा जा रहा है उस पर वजू का पानी सैंकड़ों वर्षों से डाला जा रहा था वह गलत है? क्या ये मुस्लिम देश इस बारे में अपने देशों की नीतियां साफ करेंगे? ऐसा नहीं होगा। न तो वे अपने देशों में हिन्दूओं को आराधना की  अनुमति देंगे और न ही पाकिस्तान को कहेंगे कि वह अल्पसंख्कों को प्रताडि़त करना बंद करें। फिर इन देशों को भारत की एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ताओं की आपत्तिजनक टिप्पणी पर बोलने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? हम मानते हैं कि भारत का मुसलमान अपने आराध्य की सुरक्षा करने में सक्षम है और भारत में उनकी बात गंभीरता से सुनी जाती है। फिर इस्लामिक देशों के इतने बड़े ड्रामें की क्या जरूरत थी? इसका उत्तर यही है कि इस्लामिक शासकों ने जिस दम से हिन्दू आस्थाओं को रौंदा था वे आज भी उसी मानसिकता में जीते हैं और भारत का हिन्दू गुलाम मानसिकता में जी रहा है।

यहां भाजपा को साफ करना चाहिए कि वह संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी से सहमत है या नहीं? नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर कार्यवाही करना भारत की मान्य परम्पराओं का पालन है। यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है। भारत सरकार का यह भी सहासिक कदम है कि उसने इस्लामिक देशों के संगठन को चेता दिया है कि जितनी जरूरत है उतना ही बोले। यह सभ्यताओं की लड़ाई है हिन्दू-मुसलमान ही नहीं। इस्लामिक शासकों ने हिन्दू धर्म को तबाह करने का प्रयास किया तो अनेक हिन्दू शासकों ने उसे फिर से संवारा था। आज भी यदि ऐसा होता है तब यह हिन्दू-मुसलमान का विवाद कहां हुआ?

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