‘प्रवक्ताओं’ की टिप्पणी पर मुस्लिम देशों का ‘प्रतिवाद’
यह तो रही एक बात! दूसरी बात यह है कि क्या कोई मुस्लिम लेखक यह लिखने का सहास कर सकता है कि ज्ञानवापी में जिस शिवलिंग को हिन्दूओं की आस्था का प्रतीक और ज्योतिर्लिंग कहा जा रहा है उस पर वजू का पानी सैंकड़ों वर्षों से डाला जा रहा था वह गलत है? क्या ये मुस्लिम देश इस बारे में अपने देशों की नीतियां साफ करेंगे? ऐसा नहीं होगा। न तो वे अपने देशों में हिन्दूओं को आराधना की अनुमति देंगे और न ही पाकिस्तान को कहेंगे कि वह अल्पसंख्कों को प्रताडि़त करना बंद करें। फिर इन देशों को भारत की एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ताओं की आपत्तिजनक टिप्पणी पर बोलने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? हम मानते हैं कि भारत का मुसलमान अपने आराध्य की सुरक्षा करने में सक्षम है और भारत में उनकी बात गंभीरता से सुनी जाती है। फिर इस्लामिक देशों के इतने बड़े ड्रामें की क्या जरूरत थी? इसका उत्तर यही है कि इस्लामिक शासकों ने जिस दम से हिन्दू आस्थाओं को रौंदा था वे आज भी उसी मानसिकता में जीते हैं और भारत का हिन्दू गुलाम मानसिकता में जी रहा है।
यहां भाजपा को साफ करना चाहिए कि वह संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी से सहमत है या नहीं? नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर कार्यवाही करना भारत की मान्य परम्पराओं का पालन है। यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है। भारत सरकार का यह भी सहासिक कदम है कि उसने इस्लामिक देशों के संगठन को चेता दिया है कि जितनी जरूरत है उतना ही बोले। यह सभ्यताओं की लड़ाई है हिन्दू-मुसलमान ही नहीं। इस्लामिक शासकों ने हिन्दू धर्म को तबाह करने का प्रयास किया तो अनेक हिन्दू शासकों ने उसे फिर से संवारा था। आज भी यदि ऐसा होता है तब यह हिन्दू-मुसलमान का विवाद कहां हुआ?