‘पीएम’ को उदारता और किसान को डटे रहने की ‘सीख’

भोपाल। किसान आन्दोलन सभी रिकार्ड तोड़ चुका है। 26 जनवरी ऐसा टर्निंग प्वाइंट रहा है जिसके बाद आन्दोलन को फिर से खड़ा करने का प्रयास किया जा रहाहै। पंजाब के किसानों से शुरू हुआ आन्दोलन यूपी के किसान नेताओं के पास चला गया। सरकार ने उदारता दिखाई थी अब वह उदारता भी दिखा रही है और आन्दोलन का हिंसक स्वरूप ने हो इसके लिए भी प्रबंध कर रही है। सरकार दोहरा रूप दिखा रही है। किसानों की ओर से एक फोन काल की प्रतीक्षा भी है उसे और वह कठोर होने का संदेश भी दे रही है। ऐसे ही विपक्ष भी दोहरी बात कर रहा है। वह किसानों से डटे रहने की बात कर रहा है और प्रधानमंत्री से उदारता बरतने की बात कर रहा है। विपक्षी दलों के नेता किसानों के बीच में जाकर कह रहे हैं कि सरकार का विरोध होता रहे हम आपके साथ हैं। जबकि समय की मांग है कि सभी राजनीतिक दल जिसमें सरकारी दल भी शामिल हैं किसानों के बीच आया गतिरोध समाप्त करने की दिशा में काम करें और किसानों को घर भेजने की दिशा में पहल करें। लेकिन इस बारे में कोई फार्मूला निकालने का काम ही नहीं हो रहा है। किसान कह रहे हैं तीनों बिल वापस हों और सरकार कह रही है कि इससके अलावा कोई बात हो। उसका फार्मूला किसान की प्रतिष्ठा के अनुकूल है उसके बाद भी उसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है। न जाने क्यों?
सात दशक हो गये किसान धरने पर बैठे हैं। न किसान अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार है और सरकार फार्मूले तो दे रही है लेकिन वह काम नहीं आ रहे हैं। अभी तक किसान सरकार को यह नहीं समझा पाया है कि बिल इन कारणों से वापस किये जायें और सरकार किसानों को यह नहीं समझा पाई है कि बिलों की इसलिए जरूरी हैं। सरकार समझाती है और किसान समझता है तो उसे उनका अर्थ समझाने वाले कई हैं। कुछ वीडियों सोशल मीडिया पर चल रहे हैं किसान को उल्लु बनाया जा रहा है उनके सामने ऐसे तर्क दिये जा रहे हैं जिसमें गुमराह करने के अलावा कोई और आधार ही नहीं है। आन्दोलन को किसान की साख से जोड़ दिया गया है। विपक्ष को बैठे बिठाये इससे उम्दा सरकार का विरोध करने का कोई मौका थोड़े ही मिल सकता है। इसलिए वह किसानों से डटे रहने के लिए कह जाता है। किसान समझता है कि उसे समर्थन मिल रहा है और वह आन्दोलन को परिणाम तक पहुंचाने की सोच ही नहीं पा रहा है। यह तो ठनी हुई है। कौन निकालेगा रास्ता?
विपक्ष की राजनीति देखिये। लोकसभा में उसके पास बहुमत नहीं है और राज्यसभा में उसने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में किसानों की बात करने को स्वीकार कर लिया है। किसान को अड़े रहने का कह रहे हैं और खुद समझौता कर रहे हैं। पंजाब के किसान नेता खालिस्तानियों की कारगुजारी के कारण बैकफुट पर हैं और टिकैत को बाबा टिकैत बनने का मौका मिल गया है तो वे नेतागिरी करते घूमने लगे हैं। ऐसे में सरकार मजे में है। किसानों के मामले में इतना झूठ चल रहा है कि समेटने में समय लगेगा। ऐसे में किलों और कीलों के बीच में बैठा किसान कितना और गुमराह होगा इसकी कल्पना से ही लग रहा है कि किसान नेताओं ने जो जाल सरकार के लिए बना था वे उसी में उलझ गये हैं।

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