‘पाखंड’ को दबाने क्या जरूरी है दूसरा ‘पाखंड’?
भोपाल। हिन्दू समाज में तंत्र मंत्र की अपनी मान्यता है। वर्षों के शोध और ऋषियों का गहन अध्ययन इसको प्रमाणित करता है। इसको न मानने वाले भी हैं। न मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है। इसका कारण यह है कि वे पांखड को न तो स्वीकार कर पाते हैं और न ही उसकी अनदेखी कर पाते हैं। पाखंड दिखाने वालों की महिमा भी ऐसी है कि जब तक चल जाता है तब तक तो ठीक है लेकिन जब आवरण उतरता है तब वह बड़ा ही घातक होता है। राजनीतिक संरक्षण में धर्म का चोला पहनकर जनता को प्रभावित करने वाले तथाकथित संत अब चोला विहिन हो गये। उनका वर्णन करने की जरूरत भी नहीं है और समय भी नहीं है लेकिन उनके बारे में पाठक समझ तो जाता ही है। आज का प्रसंग महाराज वैराग्यानदं जी गिरी को लेकर है। उनकी योग्यता और क्षमता पर सवाल उठाने का विषय नहीं है बल्कि उस पाखंड को रेखांकित करने की बात जो उन्होंने दिग्विजय सिंह के लिए भोपाल लोकसभा के चुनाव में किया था। पांच क्विंटल मिर्ची से किये गये यज्ञ के तहत भावनाओं का दोहने का प्रयास किया था। उन्होंने दावा किया था कि इस यज्ञ के बाद दिग्विजय सिंह की जीत होगी। लेकिन वे तीन लाख से अधिक वोटों से हार गये। महाराज जी ने प्रतिज्ञा की थी कि यदि दिग्विजय सिंह हार गये तो वे समाधि ले लेंगे। इस एक पाखंड को दबाने के लिए अनुमति का दूसरा पाखंड रचा जा रहा है। महाराज क्षमा करिये जो हुआ सो हुआ।
सबको लगता था कि यदि हवन से चुनाव जीते जाते तो सारे बड़े नेता यही करवा रहे होते। या फिर संसद में नेता नहीं हवन करने वाले संत ही मौजूद होते। लेकिन यह भी सच है कि हवन की अपनी ताकत होती है और वह अनिष्ठ को प्रभावित कर देती है। लेकिन मिर्ची हवन पाखंड से अधिक कुछ नहीं था। हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने का भोंडा प्रदर्शन था। उससे दिग्विजय सिंह को भी बचना चाहिए था और ऐसे बाबाओं को भी अपने भक्त की सहायता करने का गोपनीय तरीका अपनाना चाहिए था। लेकिन जो हुआ सो हुआ कहने वाली कांग्रेस के इस समर्थक बाबा की पाखंड मानसिकता को देखिये अब कलेक्टर भोपाल को जल समाधि लेने की अनुमति मांगने ही चले आये। संजिदा वकील साजिद अली साहब इसमें मोहरा बन गये। माना कि साजिद अली साहब को हवन यज्ञ से कोई लेना देना नहीं है लेकिन अपनी संजिदगी को दांव पर क्यों लगाना चाहिए? रही बात कलेक्टर भोपाल की। उनकी तरीफों के पुल बांधे जा रहे हैं बेहद समझदार है। योग्य हैं और न जाने क्या-क्या? लेकिन पहले ही फैसले में राजनीतिक दबाव में दिखाई दिये। बाबा की सुरक्षा बढ़ाने के आदेश दे दिये।
सुरक्षा क्यों बढ़ाना चाहिए? उन्हें तो सुरक्षित स्थान पर ही भेज देना चाहिए ताकि जब तक पाखंड का भूत नहीं उतरे तब तक वहीं हवन करने दीजिये। आत्महत्या करने के प्रयास का मामना बनता है। उन्होंने ऐसी घोषणा की थी तभी उन पर मामला बनना चाहिए था। अब लोकलाज के लिए समाज को भ्रमित कर रहे हैं। हम इस बात के पक्षधर नहीं हैं कि यदि कोई भावुक घोषणा कर दी तो उन पर समाधि लेने का दबाव बनाना चाहिए। यह सोशल मीडिया पर प्रचार का आधार तो हो सकती है लेकिन किसी के जीने के अधिकार का उल्लंघन करती है। इसलिए बाबा कृपया समाज को माफ कर दीजिये। एक पांखड को दबाने दूसरे पाखंड का सहारा मत लीजिये?