‘पवार’ रह गये आवाक जब मौके पर लगा ‘चौका’
भोपाल। सोशल मीडिया पर आ रही टिप्पणियों की अनदेखी कर देते हैं जिनमें राजनीतिक माफिया तक कह कर शरद पवार पर टिप्पणियां की जा रही हैं। हो सकता है कुछ लोग इस पर सहमति दे दें लेकिन आमतौर पर ऐसे मामलों में सहमति नहीं दी जा सकती है। फिर भी जब शरद पवार दो दिन के इंतजार के बाद अपनी पार्टी के गृहमंत्री अनिल देशमुख के 100 करोड़ महीने की वसूली मामले में बचाव के लिए उतरे तब भाजपा आईटी सेल के मुखिया ने धमाका कर दिया। पवार कह रहे थे कि देशमुख तो कोरोना पीडि़त होने के कारण भर्ती थे और बाद में आइसोलेट। इसलिए बातचीत और 100 करोड़ का टारगेट देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। जब पवार एक ऐसे झूठ को सच में बदलने का प्रयास कर रहे थे उसी समय अमित मालवीय ने चौका मार दिया। इसे मौके पर चौका मारना कहते हैं। मालवीय ने वह पत्रकार वार्ता पोस्ट करके टवीट कर दिया जिसमें अनिल देशमुख पत्रकारों से बात कर रहे हैं। पवार साहब की सफेदी इसका कोई जवाब नहीं दे पाई और जिसे सच बता कर दिखाने का प्रयास किया जा रहा था वह बेपरदा हो गया। सवाल यह है कि पवार की पार्टी का नेता बिना पवार की सहमति के 100 करोड़ की डील कर सकता है? ऐसे में बचाव में तो आना ही पड़ेगा।
यहां किसको अधिक महत्व दिया जाये। शरद पवार को जो अपने ऐसे आरोपी को बचा रहे हैं जिसका उल्लेख पत्र में एक बड़ा पुलिस अधिकारी कर रहा है जो अभी तक सरकार की नाक का बाल रहा है। जो अर्नब गोस्वामी मामले में सरकार की मंशा के अनुसार काम कर रहा है। या अमित मालवीय की जो भाजपा आईटी सेल के मुखिया हैं और जिन्होंने मौके पर चौका मारकर पत्रकार वार्ता में ही मीडिया को एक ऐसा विषय थमा दिया जिस कारण पवार जैसा नेता बेउत्तर हो गया? यह विषय हम पाठकों पर छोड़ते हैं। लेकिन राजनीति के इस चक्रव्यूह में जिस प्रकार से उद्धव सरकार फंस गई वह कभी डूबती और कभी उभरती हुई दिखाई दे रही है। सवाल यह भी उठता है कि क्या उद्धव ठाकरे के लिए इसी प्रकार की सरकार बनाने की बात संजयय राउत करा करते थे। इस सरकार का यही मकसद था। कभी पत्रकार का गला दबाने का प्रयास होता है, कभी सिने स्टार का कार्यालय तोड़ा जाता है। कभी सुशान्त की हत्या मामले में मिलीभगत के आरोप लगते हैं तो कभी कोरोना मामले में असफलता देश को खलती है?
शरद पवार की राजनीति के आखरी दौर में जब हम उन्हें झूठ के साथ खड़े देखते हैं तब आश्चर्य होता है। पवार ऐसे नेता हैं जिनके प्रति सभी नेता सम्मान का भाव रखते हैं। वे राजनीति में ऐसे मुकाम पर हैं जहां से बीते दिन वाली देशमुख की बचाव वार्ता काफी कुछ कहने का मौका देती है। यह भी संदेश मिलता है कि इन दिनों राजनीति केवल स्वार्थ और अपने हित के लिए देश को कितना भी बड़ा नुकसान पहुंचाने जैसी हो चुकी है। देश का माना हुआ उद्योगपति किस प्रकार से वसूली के लिए विस्फोटों की धमकी का सामना करना पड़ सकता है। कैसे पुलिस अधिकारी को सरकार में अपने ही विभाग के मंत्री पर आरोप लगाने पड़ रहे हैं। यह रामराज्य तो नहीं हो सकता है?