‘पड़ौसी’ बरगद के बिछुड़ने से दुखी है बचा हुआ ‘बरगद’
भोपाल (सुरेश शर्मा)। एक दिन बीत गया जब कमला पार्क के पास खड़ा बरगद का पेड़ अपने साथी बरगद के बिछुड़ने का गम मना रहा है। आज के समाचार पत्रों में भी उसको लेकर खबरों में बड़ा स्थान है। विशेषज्ञों की राय को भी समाचार पत्रों ने शामिल किया है। यह बड़ी बात है कि इस बरगद की आयु को लेकर भी अनुमान लगाया जा रहा है, जो अकाल मौत पा गया। वह बरगद सवा सौ से अधिक वर्ष पुराना था। जबकि बरगद की आयु तो पांच सौ बरसों से अधिक की भी हो सकती है। मतलब यह समय से काफी पहले चला गया। जानकार इसके जाने का कारण भी बता रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि सीमेंट के अधिक उपयोग के कारण इसकी जड़ों की पकड़ क्षमता कम हो गई थी। इसलिए समय से पहले यह कालकल्वित हो गया। आस-पास से निकलने वालों को उसके जाने का अहसास है। शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो यह नहीं कह रहा होगा कि जोड़ी बिछड़ गई। शोभा थी भोपाल की ये दो बरगद के पेड़। आमतौर पर वाहन चालक इन दोनों के बीच वाली सड़क से अपनी गाड़ी निकाल कर ले जाते थे। उन्हें गर्व की अनुभूति होती थी कि वह दो बरगद की एक साथ वाली छांव से गुजर रहा है। अब उन्हें यह अनुभूति नहीं होगी क्योंकि विकास और तकनीक के आगे एक बरगद का पेड़ असमय चला जो गया।
जो बरगद चला गया वह चमगादड़ों का घरौंदा भी था। उल्टी लटकी चमगादड़ें उसके गिरने के पहले तक उसको अपना घर मानकर उससे लिपटी रहती थीं। लेकिन जब वो बरगद का पेड़ गिर रहा था तब ठीक उसी प्रकार से वे उसका साथ छोड़कर भाग निकली जिस प्रकार से उसका साथ उसकी जड़ों ने छोड़ दिया था। सच भी है जब जड़े साथ छोड़ने लग जाती हैं तब कोई और साथ कैसे दे सकता है? यह समझदारी ही कही जायेगी कि चमगादड़ों ने अपनी जान बचाई। हम चमगादड़ों को चूहा नहीं कह सकते, जो नाव के डूबने से पहले उसे छोड़कर भाग जाते हैं। यह अलेदा स्वभाव है। फिर भी यह मांग कम से कम चमगादड़ ही सरकार से करें कि इसकी जांच कराई जाये कि आखिर यह सड़क के ज्यादा बीच वाला बरगद का पेड़ ही क्यों धराशाही हुआ है? मनुष्य के पास समय कहां हैं इस बारे में सोचने का। भोपाल में तो निगम के चुनाव चल रहे हैं। इसलिए भी यह उम्मीद करना गैरवाजिब है। जो शहर के सौंदर्य की बात करने वाले प्रत्याशी हैं इस बेसमय चले गये बरगद को लेकर एक भी सवाल नहीं उठायेंगे? इससे न तो वोट बढ़ने वाले हैं न ही इसके जाने से कम होने वाले हैं। इसलिए बचा हुआ बरगद का पेड़ अकेले ही गमगीन होता रहेगा।
जड़ों ने साथ छोड़ा तो गिरे बरगद ने पूरी सड़क को घेर लिया। उसी सड़क को जिस पर वह अपनी छांया दिया करता था। सड़क उसका आलिंगन करना चाहती थी। उसे पता है कि अब उसे गर्मी में छांव नसीब नहीं होगी। लेकिन तकनीक का कमाल देखिये अधिकारियों ने खड़े रहकर इस मिलन को अधिक समय नहीं होने दिया। बरगद के हिस्से-हिस्से किये गए और वाहनों के सहारे उसे तत्काल रवाना कर दिया गया। शहर को संवेदनाएं भी नहीं देने दी गई। न कोई शोक सभा ही हुई। अब बचा हुआ बरगद का पेड़ अपने साथी के बिछुड़ने का अकेले ही गम मना रहा है।