‘पंडित’ अच्छा वो जो दूसरे के मंडप में करा आये ‘शादी’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। सुबह से समाचार पत्रों में जबलपुर की एक खबर सुर्खियां बटोर रही है। जाने-माने वकील और राज्यसभा के सदस्य विवेक तन्खा ने जबलपुर को दो टेंकर आक्सीजन दिलवाई। इन दिनों इस प्रकार की खबर राहत देने वाली होती हैं। पिछले दिनों एक बड़बोले लेखक ने भी दो बेड कोरोना मरीज को दिलवाने पर ऐसे ही सोशल मीडिया पर तालियां बटोरी थीं। सरकार को आक्सीजन के लिए कोसने वाले नेतागण यदि आक्सीजन मंगवाकर जनता के माथे पर अहसान का बोझ लादने लगेंगे तो सवाल भी उठेंगे और तारीफ भी होगी? दोनों ही स्वीकार करनी होंगी। इंदौर और भोपाल में कोरोना ने जबरदस्त उछलकूद मचा रखी है। अब जबलपुर में भी वह पांव पसारने लगा है। इसलिए सरकार की व्यवस्थाएं छोटी पडऩे लगी हैं। दो दिन से शिवराज सिंह चौहान यही कह रहे हैं कि व्यवस्था करने की सरकार की भी एक सीमा  है क्योंकि लोग घर में रह कर कोरोना की चेन तोडऩा ही नहीं चाह रहे हैं। ऐसे में इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय का टवीट बताता है कि उन्होंने रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति सीधे मालिक से बात करके करवा दी तो जबलपुर में विवेक तन्खा ने दो टेंकर आक्सीजन बुलवाकर शहर को सांस उपलब्ध करवा दी। तब क्या अहसान का बोझ लोगों के सिर पर लादना चाहिए?

हमें लगा कि इस सवाल के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए। हमने किया भी। जबलपुर के मित्रों का संदेश आया कि जो समाचार पत्रों में छपा है वैसी कहानी न होकर बात कुछ अलग है। स्वभाविक जिज्ञासा बढ़ेगी ही। पता चला कि विवेक तन्खा ने अपने वकीली और लाइजनिंग निपुणता वाले प्रभाव का इस्तेमाल करके आक्सीजन का जुगाड़ जल्द करवा दिया। जबलुपर भी समय से पहले पहुंचवा दी। यह तारीफ की बात है। लेकिन इसमें पैसा करोड़पति नेता और कमलनाथ सरकार में वित्त का महकमा संभालने वाले तरूण भानोट का लगा है। मुझे बताया गया कि पांच लाख रुपया उन्होंने आक्सीजन का दिया है और पांच लाख कलेक्टर को दिया है। यह भी बताया गया है कि यह विधायक निधि का नहीं हैं। अब इसके बाद असल तारीफ तो तरूण भाई की होना चाहिए और समाचार भी भानोट साहब के लिए छपने चाहिए। लेकिन यह लाइजनिंग का मतलब यही होता है करता कोई और है और नाम किसी और का होता है। जो इस कला को जानता है वह दिन दूनी रात चौगनी तरक्की करता है। अपुन की भांति गुम गलियों में थोड़े ही फिरता है।

इसलिए एक कहावत याद आ गई। अच्छा पंडित वह जो दूसरे के मंडप में अपने जोड़े के फेरे करवा कर आ जाये। विवेक भाई ने ऐसा ही किया है। फेरे तरूण भाई को पढ़वाने थे लेकिन पढ़वा आये विवेक भाई। हालांकि दोनों एक ही राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं इसलिए कोई मंडप सजाये और कौन फेरे पढ़वाये इससे अधिक फर्क नहीं पडऩा चाहिए? यह दौर ही ऐसा है जब जीवन का पता ही नहीं कितनी देर का है। ऐसे में कोई जीवन रक्षा के लिए प्रयास करता है वह देवदूत से कम नहीं है। तरूण भाई हों या विवेक भाई भूमिका तो देवदूत की ही है। लेकिन जब प्रदेश के समाचार पत्र रंगे हुये दिखें तब देवदूत की भूमिका कितनी कहें इस पर विचार करना पड़ रहा है?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button