‘पंडित’ अच्छा वो जो दूसरे के मंडप में करा आये ‘शादी’
हमें लगा कि इस सवाल के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए। हमने किया भी। जबलपुर के मित्रों का संदेश आया कि जो समाचार पत्रों में छपा है वैसी कहानी न होकर बात कुछ अलग है। स्वभाविक जिज्ञासा बढ़ेगी ही। पता चला कि विवेक तन्खा ने अपने वकीली और लाइजनिंग निपुणता वाले प्रभाव का इस्तेमाल करके आक्सीजन का जुगाड़ जल्द करवा दिया। जबलुपर भी समय से पहले पहुंचवा दी। यह तारीफ की बात है। लेकिन इसमें पैसा करोड़पति नेता और कमलनाथ सरकार में वित्त का महकमा संभालने वाले तरूण भानोट का लगा है। मुझे बताया गया कि पांच लाख रुपया उन्होंने आक्सीजन का दिया है और पांच लाख कलेक्टर को दिया है। यह भी बताया गया है कि यह विधायक निधि का नहीं हैं। अब इसके बाद असल तारीफ तो तरूण भाई की होना चाहिए और समाचार भी भानोट साहब के लिए छपने चाहिए। लेकिन यह लाइजनिंग का मतलब यही होता है करता कोई और है और नाम किसी और का होता है। जो इस कला को जानता है वह दिन दूनी रात चौगनी तरक्की करता है। अपुन की भांति गुम गलियों में थोड़े ही फिरता है।
इसलिए एक कहावत याद आ गई। अच्छा पंडित वह जो दूसरे के मंडप में अपने जोड़े के फेरे करवा कर आ जाये। विवेक भाई ने ऐसा ही किया है। फेरे तरूण भाई को पढ़वाने थे लेकिन पढ़वा आये विवेक भाई। हालांकि दोनों एक ही राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं इसलिए कोई मंडप सजाये और कौन फेरे पढ़वाये इससे अधिक फर्क नहीं पडऩा चाहिए? यह दौर ही ऐसा है जब जीवन का पता ही नहीं कितनी देर का है। ऐसे में कोई जीवन रक्षा के लिए प्रयास करता है वह देवदूत से कम नहीं है। तरूण भाई हों या विवेक भाई भूमिका तो देवदूत की ही है। लेकिन जब प्रदेश के समाचार पत्र रंगे हुये दिखें तब देवदूत की भूमिका कितनी कहें इस पर विचार करना पड़ रहा है?