‘नेताओं’ की बहिन इशरत निकली ‘आतंकी’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। कितना शोर मचाया गया था कि एक मासूम को मार गिराया गया। कई नेताओं ने उसे बेटी, बहिन और अन्य प्रकार की रिश्तेदार बताने में तनिक भी देरी नहीं की थी। गुजरात की मोदी सरकार और उसके गृहमंत्री अमित शाह को घेरने के कितने प्रयास हुये थे। कई पुलिस अधिकारियों को तो लम्बे समय तक जेल में भी रहना पड़ा था। मीडिया का दबाव अलग बन गया था। एक विशेष वर्ग का मीडिया तो राशन पानी लेकर पीछे पड़ गया था। सोनिया गांधी के नेतृत्व चल रही मनमोहन सरकार को भी ऐसा लगा था कि गुजरात सरकार ने तो कोई पाप कर दिया। एक आतंकवादी को क्या मार दिया जैसे नेताओं की रिश्तेदार ही मारी गई है? कुछ नाम भी याद आ रहे हैं। सपा नेता अखिलेश यादव को घर जैसा दुख हुआ था। आज नीतीश मोदी के साथ हैं लेकिन उन दिनों तो इशरत जहां को बहिन या बेटी बताकर विलाप कर रहे थे। राजनीति का विलाप आतंक को बढ़ावा देने के प्रयास के साथ ही मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने का प्रयास है। क्या यह नहीं कहा जा सकता है कि देश का मुसलमान आतंकवादियों के समर्थन और विरोध के आधार पर अपने वोट करने का निर्णय लेता है? नहीं ऐसा नहीं मानना चाहिए। लेकिन मोदी-भाजपा विरोध के कारण कुछ भी हो रहा है देश में।

सीबीआई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि बचाव पक्ष की ओर से ऐसा कोई प्रमाण पेश नहीं किया जा सका कि इशरत जहां एनकाउंटर में इशरत आतंकवादी नहीं थी। जबकि पुलिस की ओर से जितने भी तर्क दिये गये उसका तोड़ भी विरोध पक्ष की ओर से नहीं दिया गया। इसी के कारण इस पर निर्णय सुनाते हुये सीबीआई कोर्ट ने तीन उन पुलिस वालों को बरी कर दिया जिनको हत्या के आरोप में जेल में डाल रखा था। उनका पुलिस कैरियर विवादित बना दिया था। अब उनके बारे में सरकार को निर्णय करना होगा। आतंकी इशरत की ओर से इस मामले को ऊपर वाली अदालत में चुनौती देने का अधिकार तो है लेकिन पहली बार में यह साफ हो गया कि एक आतंकी के लिए देश के राजनेताओं ने अपनी मर्यादा को तोड़ दिया। क्या देश की राजनीति इतने नीचे चली गई है कि वोटों के लिए आतंकवादियों का सहारा औरी समर्थन लिया जायेगा? यह देश के खिलाफ जाने की सोच है। लेकिन जो हो रहा है तब कोई क्या कर सकता है? यह स्थिति हो गई है।

याद ही होगा कि बटला हाऊस एनकाउंटर मामले में सोनिया गांधी को नींद नहीं आई और वे रात में रोने लग गई। दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद की कहानी सबको पता है। ससंद पर हमला करने वालों की रात में सुनवाई कराकर राहत देने की बात इसी देश में होती है। कश्मीर में वर्षों तक सेना को अधिकारों से वंचित रखा गया। लेकिन अब वहां सेना सफाई अभियान में लगी है। इशरत के मामले में नेताओं ने उससे रिश्तेदारी साधने का प्रयास शुरू कर दिया था। आज जब न्यायालय ने अपना आदेश सुनाया तो इन नेताओं के कान खड़े हो जाना चाहिए। लेकिन हुये नहीं हैं। अब एक बात साफ हो गई है कि आतंकवादियों का समर्थन करने की राजनीति के दिन लदते जा रहे हैं। इशरत जहां आतंकी थी यह बात न्यायालय ने प्रमाणित कर दी है।

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