निजीकरण के दौर में सरकारी सेवाओं में विश्वास की बहाली, कमलनाथ की हमीदिया अस्पताल में सर्जरी
[सुरेश शर्मा] भोपाल में हमीदिया अस्पताल जैसा एक बड़ा और सर्व सुविधा युक्त अस्पताल भी है इसकी कोई खास चर्चा नहीं होती है। इसके साथ एक बड़ा मेडीकल कालेज भी संचालित होता है और प्रभावशाली डाक्टर इससे पढ़कर निकले हैं यह बात भी अब समाचारों से औझल होती जा रही है। लेकिन जूनियर डाक्टरों की मारामारी और ईलाज के लिए आने वाले गरीब लोगों की पूछ परख नहीं होने के चर्चे अधिक ही छपते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हमीदिया की क्षमता, योग्यता और विशेषताएं तिरोहित होती जा रही हैं। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को आम व्यक्ति तक कम कीमत पर पहुंचाने के प्रयासों के तहत ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने हाथ की छोटी ही सही एक महत्वपूर्ण सर्जरी इसी हमीदिया अस्पताल में कराने का निर्णय लिया। इससे व्ययवस्थाओं और क्षमता पर बहस शुरू हुई है। इससे इस सरकारी अस्पताल के बारे में आम लोगों में विश्वास की भावना पैदा होगी और सस्ता ईलाज भी मुहैया हो पायेगा। यह बिलकुल नहीं मानना चाहिए कि जैसी सुविधायें मुख्यमंत्री को मिली हैं वैसी आम व्यक्ति को मिलेंगी और किसी अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति को मिलेगी लेकिन सुविधाओं का जरूरतों के आधार पर बंटवारा हो जाये यह भी महत्वपूर्ण पक्ष रहता है।
हमीदिया मेडीकल कालेज ाक अपना एक विशेष स्थान रहा है। यहां की शिक्षा, यहां की प्रेक्टिस और अनुभवी डाक्टरों की ओर से मिलने वाली सीख मायने रखती रही है। कई प्रमुख नाम भी लिये जा सकते हैं जिन्होंने हमीदिया में पढ़ाई की है और यहां ईलाज भी किया है। वे निजी क्षेत्रों में जाकर बड़े नाम भी हुये हैं। लेकिन हमीदिया की इस प्रतिष्ठा को ग्रहण तब लगा जब जूनियर डाक्टरों ने मरीजों के साथ मारपीट करने की घटनाओं में ईजाफा करना शुरू कर दिया। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस मरीज को परिजन खो देते हैं वे अपना गुस्सा इस सरकारी संस्थान पर निकालते हैं। उन्हें भी संयम रखना रखना चाहिए। लेकिन उस समय की भावना को समझते हुये डाक्टरों को अधिक नियंत्रण रखने की जरूरत है। इससे हमीदिया की ईलज वाली छवि प्रभावित हुई और यहां भय का वातावरण बनना शुरू हो गया। देश के अन्य सरकारी अस्पतालों में भी तानाशाही होती होगी लेकिन मरीज को ईलाज मिलता है इसकी चर्चा होती है। ईलाज तो हमीदिया में भी मिलता है लेकिन काफी मशक्कत के बाद। इसलिए ईलाज के साथ संवदेनाओं का समावेश हो जाये तो यह संस्थान फिर से अपने गौरव को पा सकता है।
निजी संस्थाओं के आकर्षण ने अच्छे डाक्टरों को सरकारी संस्थानों से दूर कर दिया है। वे अधिक वेतन पर निजी संस्थाओं में पहुंचते गये। कईयों ने तो निजी संस्थाओं में भागीदारी कर ली और ईलाज की प्राथमिकता की बजाये अधिक धन की ओर दौडऩा शुरू कर दिया। ऐसा ही संस्थान भोपाल में गैस पीडि़तों के लिए बनाया गया था। वहां हार्ट के मरीज अन्य प्रदेशों से आकर ईलाज कराते थे लेकिन वह लगभग डूब सा गया है। उसके प्रमुख डाक्टर निजी संस्थानों की शोभा बढ़ा रहे हैं। सुविधाओं की आड में सरकारी संस्थानों की इस हालत को संभालने में सरकारें सफल नहीं हो पाई। ऐसा नहीं है कि भोपाल स्वास्थ्य के मामले में उन्नत नहीं रहा। सुलतानिया जनाना अस्पताल उस समय का अस्पताल है जब ईलाज की सुविधाओं को महत्वपूर्ण माना जाता था जो आज व्यापार गन गई हैं। उसी के साथ गैस राहत विभाग का कमला नेहरू अस्पताल काफी बड़ा और प्रभावशाली है। जेपी अस्पताल का विस्तार तो देखते-देखते हुआ है। यहां ईलाज की चर्चा होती है। यह एक पक्ष है कि कुछ डाक्टर मरीज को देखने की बजाये निजी सेवाओं की ओर अधिक केन्द्रीत रहते हैं। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं निकाला जा सकता ना कि अस्पताल की क्षमताएं कम हो गई।
एक समय था जब हमारे संस्कारों में चैरेटी होती थी। लोग ईलाज और शिक्षा को इसी श्रेणी में रखते थे। आज समय बदल रहा है ये दोनों ही व्यवसाय बन गये। आय का सबसे बड़ा साधन हो गये। हम बोल नहीं पाते की शिक्षण संस्थान या अस्पताल मनमाने दाम वसूल रहे हैं और गर्व से कहते हैं कि हम सेवा कर रहे हैं। जब से नर्सिंग होम कल्चर प्रारंभ हुआ है तब से ईलाज महंगा हो गया है। कई बार तो ऐसे समाचार भी मिलते हैं कि जिस व्यक्ति का ईलाज किया जा रहा था उसकी मौत हो गई और इसके ईलाज का बिल इतना अधिक है कि पीछे रहने वालों को उसको चुकान के लिए अपनी आय की साधन कृषि भूमी को भी बेचने को विवश होना पड़ता है। तब याद आती है कि सरकारी सेवाओं को इतना तो होना ही चाहिए कि जमीन बेचने जैसी स्थिति नहीं बने।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी एक बार हमीदिया में ईलाज कराने का प्रयास किया था। वहां की व्यवस्थाओं की शिकायत मिलने पर भी उन्होंने उसे सुधारने के प्रयास किये थे। पुलिस प्रशासन और सामान्य प्रशासन को इस बारे में कहा था और उसने सक्रियता भी दिखाई थी। लेकिन रोजमर्रा की व्यवस्था में कोई दूसरा कितना हस्तक्षेप कर सकता है यह समस्या आने से स्थिति वही हो गई। अब वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दो कदम आगे आकर व्यवस्था को सर्वव्यापी बनाने की दिशा में काम किया है। आम व्यक्ति का आकर्षण बढ़े इसके लिए प्रयास किये हैं। इसकी कमिया निकालने की जरूरत नहीं है। इसे वहां के डाक्टरों में उतारने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि सरकारी सेवा के डाक्टर इसी मानसिकता के होते हैं जैसा अवधारणा बनाई हुई है। लेकिन अनुभव में जितना भी आता है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि आमूल चूल परिवर्तन करने की जरूरत है। डाक्टरों के सामने बेहतर अवसर सामने दिखाई देता है इसलिए वह इस बात की परवाह नहीं करता है कि उसकी नौकरी का क्या होगा? कमलनाथ के इस प्रयास को अधिकारियों का भी समर्थन मिलना चाहिए। उन्हें भी छोटी सी बात के लिए निजी अस्पतालों में भागने की आदत छोडऩा चाहिए। इससे सुधार की प्रक्रिया को आगे ले जाने में मदद मिलेगी।
कमलनाथ का मुख्यमंत्री के रूप में एक विशेष अधिकार बनता है। इसलिए उनके जैसी सुविधायें किसी और को मिल पायेंगी यह विचार ही राजनीति से पे्ररित हैं। हम जैसा वातावरण बनाने का प्रयास करते हैं वैसा ही बन जाता है। जिस देश में सफाई को लेकर हमेशा विवाद होते थे। कचरा उठाने का कह देने को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तब महात्मा गांधी की आड़ लेकर देश में स्वच्छता अभियान शुरू किया था तब कितने लोगों ने नाक भोंह सिकोड़ी थी। कितनी प्रकार की टिप्पणिंया आईं थीं। लेकिन बदलाव यह आया है कि जिन लोगों को कूड़ा उठाने की कहने पर झगड़े की संभावना थी वे आज नाराज नहीं होते बल्कि सहयोग करते हैं और दूसरों को रोकते हैं प्रेरित करते हैं। इसलिए यदि सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों को सहयोग किया जाये कि आप मानव सेवा के माध्यम से भगवान के बाद दूसरे स्थान पर हैं तब उनके विचारों में कुछ समय बाद ही बदलाव आयेगा लेकिन देर से ही सही लेकिन आयेगा जरूर। यह प्रोफेशन ऐसा है जिसमें धन तो खुद ही बरसता है। धन की भूख कम से कम पैदा की जाये और जरूरत से कुछ गुणा अधिक कर ली जाये तब भी सेवा के साथ उसकी पूर्ति हो सकती है। इसलिए मुख्यमंत्री कमलनाथ की हमीदिया अस्पताल में ईलाज कराने की पहल को इसी भाव से देखने की जरूरत है। उसको आगे बढ़ाने की जरूरत है। अधिकारी सामने आये। धनाड्य लोग दान करके सुविधाओं को सुचारू करने में योगदान दें और गरीब व्यक्ति को सस्ता ईलाज मिल सके इस प्रकार की व्यवस्था की जाये।
संवाद इंडिया