‘नाना’ तो बेदाग निकले लेकिन जो ‘हुआ वो हुआ’?
भोपाल। मुम्बई पुलिस ने अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के द्वारा लगाये गये योन शोषण के आरोपो को खारिज कर दिया। जांच में कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं मिला जिसके आधार पर नाना पाटेकर को दोषी ठहराया जा सके। पुलिय ने प्रकरण बंद करने का निर्णय भी ले लिया। यह गंभीर बात है। एक दौर ऐसा आया था कि महिलाओं ने सशक्त होकर अपने साथ हुये ऐसे व्यवहार के बारे में बताया था और पुरूषों को भागने के रास्ते नहीं मिल रहे थे। मंत्री, अभिनेता और राजनेता तक इसकी चपेट में आ गये थे। लेकिन जो चर्चित नाम सामने आये थे उसमें भाजपा सरकार में मंत्री रहे पत्रकार एम जे अकबर जिन्होंने मानहानि का मुकदमा कर रखा है। नान पाटेकर जिन पर लगा आरोप सही नहीं निकला। अभिनेता आलोक नाथ और संगीतकार अन्नु मलिक ऐसे नाम हैं जो अभी भी झमेले फंसे हुये हैं। यह तो बिलकुल ही नहीं कहा जा सकता है कि नौकरी या काम के वक्त महिलाओं को प्रताडऩा का शिकार नहीं होना पड़ता होगा। फिल्म जगत में जो होता है उसकी बानगी तो सरोज खान ने दे ही दी थी। उन्होंने कहा था कि इसके बाद रोजगार तो मिलता है ना? मतलब दाल काली है। लेकिनसादगी भरा जीवन जीने वालों को इस प्रकार के आरोपों का गहरा असर होता है। यही नाना जैसे कलाकार के साथ हुआ होगा।
आज ही समाचार छपा है कि पुलिस ने नाना पाटेकर पर अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के द्वारा आरोप लगाया गया था कि उनका योन शोषण किया गया था। मी टू के दौर से परे इस प्रकार के आरोप तनु ने पहले भी लगाये थे लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। यदि सरोज खान की बात को माना जाये तो यह आम बात है। ऐसा करने के बाद रोजगार तो मिलता ही है। इस बात की आलोचना हुई थी यह रोजगार पाने का साधन तो कम से कम नहीं होना चाहिए। फिर भी यह चर्चा चलती रहती है और बहस भी होती रहती है कि महिला संरक्षण की चिन्ता करने के इतने बड़े प्रयास के बाद भी महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है। इसमें सुधार की जरूरतों को लेकर भी आये दिन आन्दोलन होते रहते हैं। जब गिरावट इतनी आ गई कि नासमझ बच्चियों को हवस का शिकार बनाया जाने लग गया और शिकार बनाने के बाद उनकी हत्या करने के दर्जनों मामले सामने आ रहे हों तब यह प्रश्र अधिक सामयिक हो जाता है कि क्या प्रभावशाली महिलायें प्रमाण रहित आरोप लगा सकती हैं। नाना पाटेकर के मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
जब पुलिस ने अपनी रिपोर्ट पेश की और बताया कि नाना पर लगे आरोपों का कोई प्रमाण नहीं है तो तनु श्री ने उस संदेह जताया है। लेकिन वे भी ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध कराने में सहभागी नहीं हो पाई। अब दूसरा सवाल यह उठता है कि आखिरकार नाना के साथ जो हुआ वह हुआ की तर्ज पर क्यों समाप्त कर दिया जाये? जब महिलाओं को संरक्षण की जरूरत है तब पुरूषों को इस प्रकार के मित्थया आरोपों से समाज में बदनामी का हर्जाना क्या होना चाहिए? नाना को लेकर आम धारण यही रही है कि वे आडम्बर से परे सही मार्ग पर चलने वाले इंसान हैं। लेकिन तनुश्री के आरोपों के बाद इंसान की फिदरत ऐसी ही है की भावना में वे उलझा गये। अब तो वे बेदाग सामने आये हैं।