‘नड्डा’ हो गये एक्टिंग अध्यक्ष यहां सब ‘मुमकिन’ है

भोपाल। यह बात कोई नई नहीं है कि जगत प्रकाश नड्डा भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष हो गये। इसमें नई बात केवल यह है कि अध्यक्ष बनाने की बजाए उन्हें कार्यकारी बनाया गया है। जिस भाजपा का अध्यक्ष कोई भी बन जाये भाजपा चलती रही है वहां इतना अविश्वास हो जायेगा या अपने अलावा हर कोई दोयम लगने लगेगा इसकी कल्पना कम से कम मैंने तो नहीं की थी। भाजपा के संविधान में कार्यकारी अध्यक्ष का कोई पद नहीं है। क्योंकि यहां कार्यकर्ता संचालन के लिए होता है उसके साथ कार्यकर्ता संचालित होते हैं। संघ का अनुशासन और संगठन चलाने की अपना तरीका किसी के लिए भी ऐसा अहसास नहीं कराता कि मेरे बाद कौन। लेकिन गंभीर सवाल यह क्यों पैदा हो गया कि इन गुजराती बंधुओं को ऐसा क्यों लग रहा है कि भाजपा का जीवनकाल उन्हीं के साथ बंध गया है। जनाकृष्णमूर्ति जब भाजपा के अध्यक्ष बने तो वे अमित शाह जितने सक्रिय और चमत्कारी नहीं थे। लेकिन वे बनाये गये। उस समय किसी के मन में नहीं आया कि एक तेजतरार को कार्यकारी अध्यक्ष दे दिया जाये। अब कोई यह सोच ले कि  मोदी की बजाये अमित शाह के कारण दिल्ली की सरकार बनी है या प्रदेशों की सरकार बनी है तब तो कोई क्या कहेगा लेकिन यदि ऐसा नहीं है तब ये कार्यकारी क्यों होना चाहिए? मोदी है तो सब मुमकिन है तब यह कहने लग जायें तब शाह तब भी सब मुमकिन है।
भाजपा संसदीय बोर्ड ने अमित शाह की इस बात को मानने से इंकार कर दिया है कि उन्हें देश का गृहमंत्री ही रखा जाना चाहिए। भाजपा का अध्यक्ष किसी और को बना दें। किसी को भी लगता होगा कि यह तो समाचारों के लिए प्रयोग था कि अमित शाह अध्यक्ष पद छोडऩा चाह रहे हैं। लेकिन ऐसा निर्णय बिना निर्णय के थोड़े ही हुआ होगा। इसलिए यह तय हुआ कि अभी जगत प्रकाश नड्डा को कार्यकारी बनाकर और ट्रेनिंग दी जाये। तब तक चार-छह विधानसभाओं के चुनाव हो जायेंगे। ऐसा नहीं है कि अमित शाह जब अध्यक्ष थे तब विधानसभा में भाजपा हारी न हो। तीन बड़े राज्य भी हारे थे और गोवा जिसमें भाजपा पर्याय बन गई थी हार को रूबरू देखा है। इसलिए अमित शाह को ही जीतने का मंत्र मालूम होगा ऐसा नहीं मानना चाहिए। वस्तुत: भाजपा ने सरकार बनाने की राजनीति करने की बताये अपनी स्वीकार्यता की राजनीति पर ध्यान दिया। लेकिन मोदी और शाह आये हैं तब से इन्होंने तेजी से सरकार बनाने का लक्ष्य तय किया और उसी काम में जुट गये। इसमें भाजपा कहां यह अभी किसी की समझ में नहीं आ रहा है। यह समझना बताता है कि यहां सब मुमकिन है।
बीच में यह चर्चा आई थी कि जगत प्रकाश नड्डा को अगला अध्यक्ष बनाया जायेगा। अब कार्यकारी बनाया गया है। इसमें यह संभावना छुपी है कि वे अगले अध्यक्ष हो जायें। अभी चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शिवराज सिंह को सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया है। उनकी सूची आने के बाद ही चुनाव गति पकड़ेगा। इसलिए नड्डा का रास्ता संघ के मुख्यालय से निकलेगा। यह भी कहा जा रहा है कि अमित शाह के बाद नड्डा की बजाए कोई और भी यह पद ले सकता है। ऐसा इसलिए कि संघ का वीटो आ सकता है। लेकिन संघ भी दो गुजराती बंधुओं के सामने संघ जैसा नहीं रहा है। इस चुनाव से तो कम से कम ऐसा ही दिखा है।

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