‘नंदीग्राम’ की बंदी हुई बंगाल की ‘शेरनी’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री, लड़ाकू नेता, घायल शेरनी और जाने किन-किन उपाधियों से सुशोभित ममता बनर्जी अपने ही बुने जाल में फंस गई हैं। उन्होंने राजनीति की दबंगता का ऐसा खेल खेला जिसमें वे फंस गईं। भवानीपुर ऐसी सीट थी जिसमें वे आसानी से जीत सकती थीं लेकिन शिवेन्दु अधिकारी को सबक सिखाने के लिए नंदीग्राम से चुनाव लडऩे की एकतरफा घोषणा कर दी। अब पिछले पांच दिन से नंदीग्राम में फंसी हुई हैं और रोड़ शो करके चुनाव प्रचार कर रही हैं। इस प्रकार के प्रचार की उनकी रणनीति नहीं थी। मुख्यमंत्री का रूतबा और पिछले दस साल की दादागिरी के कारण ममता को यह लगता ही नहीं था कि इस प्रकार की कोई चुनौती उनको पेश कर सकता है। भाजपा ने तगड़ी चुनौती दी है। इस चुनौती की काट करने के लिए दूसरा कोई भी नेता नहीं बचा है जो ममता का सहारा बन सके। वे अकेले ही पूरी और ताकतवर भाजपा का सामना कर रही हैं। ऊपर से फिल्म स्टार मिथुन चक्रवर्ती और समस्या उनके लिए पैदा कर रहे हैं। वे भी नंदीग्राम में रोड़ शो करके जनता को ममता के खिलाफ और शिवेन्दु के पक्ष में मतदान करने के लिए अपील कर रहे हैं। उसका असर साफ दिखाई दे रहा है।

अपने ही चुनाव क्षेत्र में घिर गई हैं ममता बनर्जी। बंगाल की शेरनी की हालत यह हो गई है कि वे चुनाव क्षेत्र के बाड़े में बंद हो गई हैं। अन्य दलों के नेताओं को कोस रही हैं। चुनाव प्रचार बंद हो गया है तब अब घर-घर जाकर प्रचार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है। वे पांच दिन से तो नंदीग्राम में बंद हैं और दो दिन और उन्हें वहीं रूकना होगा। इस प्रकार तीसरे चरण के मतदान वाले चुनाव क्षेत्रों में प्रचार के लिए उन्हें समय नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में यह संदेश कोई भी पढ़ सकता है कि दहाडऩे की बजाये मिमयाने लग गई हैं ममता बनर्जी। वे यह कह रही हैं कि वे कोबरा को कभी माफ नहीं करेंगी। मतलब मिथुन दा के खिलाफ उनके मन में गुस्सा है। वे उनसे बदला लेने की बात कह कर धमका रही हैं। वे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी चेता रही हैं। लेकिन अमित शाह किसी की चेतावनी से रूकने वाले कहां हैं? इसलिए चुनाव परिणाम जो भी हों ममता अपने क्षेत्र में कमजोर हो गई हैं। यह कमजोरी वाला संदेश अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव को प्रभावित करेगा? इसकी चिन्ता भी टीएमसी नेताओं के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही है।

सरकार चलाना एक बात है। ममता ने दमदारी से सरकार चलाई भी। केन्द्र से विरोध करके सरकार चलाने के लिए विशेष दम चाहिए। भाजपा के पास प्रचार तंत्र है। मीडिया की बात नहीं उनका अपना प्रचार तंत्र है। कार्यकर्ता इतने हैं कि वह उन्हें संभाल ही नहीं पाती है। काम करने वाले ऐसे हैं कि काम दे दिया तो काम निपट जाने के बाद सवाल करते हैं कि क्यों भेजा गया था? ऐसे कार्यकर्ताओं वाली पार्टी के साथ जब संघ मिलता है तब चुनाव को अपने पक्ष में करने की ताकत आ जाती है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व और अमित शाह जैसी संगठन क्षमता मिल जाये तो सोने में सुहागा ही होगा। ममता इसको समझने की चूक कर गई। अब चुनाव परिणामों को देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

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