‘नंदीग्राम’ की बंदी हुई बंगाल की ‘शेरनी’
अपने ही चुनाव क्षेत्र में घिर गई हैं ममता बनर्जी। बंगाल की शेरनी की हालत यह हो गई है कि वे चुनाव क्षेत्र के बाड़े में बंद हो गई हैं। अन्य दलों के नेताओं को कोस रही हैं। चुनाव प्रचार बंद हो गया है तब अब घर-घर जाकर प्रचार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है। वे पांच दिन से तो नंदीग्राम में बंद हैं और दो दिन और उन्हें वहीं रूकना होगा। इस प्रकार तीसरे चरण के मतदान वाले चुनाव क्षेत्रों में प्रचार के लिए उन्हें समय नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में यह संदेश कोई भी पढ़ सकता है कि दहाडऩे की बजाये मिमयाने लग गई हैं ममता बनर्जी। वे यह कह रही हैं कि वे कोबरा को कभी माफ नहीं करेंगी। मतलब मिथुन दा के खिलाफ उनके मन में गुस्सा है। वे उनसे बदला लेने की बात कह कर धमका रही हैं। वे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी चेता रही हैं। लेकिन अमित शाह किसी की चेतावनी से रूकने वाले कहां हैं? इसलिए चुनाव परिणाम जो भी हों ममता अपने क्षेत्र में कमजोर हो गई हैं। यह कमजोरी वाला संदेश अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव को प्रभावित करेगा? इसकी चिन्ता भी टीएमसी नेताओं के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही है।
सरकार चलाना एक बात है। ममता ने दमदारी से सरकार चलाई भी। केन्द्र से विरोध करके सरकार चलाने के लिए विशेष दम चाहिए। भाजपा के पास प्रचार तंत्र है। मीडिया की बात नहीं उनका अपना प्रचार तंत्र है। कार्यकर्ता इतने हैं कि वह उन्हें संभाल ही नहीं पाती है। काम करने वाले ऐसे हैं कि काम दे दिया तो काम निपट जाने के बाद सवाल करते हैं कि क्यों भेजा गया था? ऐसे कार्यकर्ताओं वाली पार्टी के साथ जब संघ मिलता है तब चुनाव को अपने पक्ष में करने की ताकत आ जाती है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व और अमित शाह जैसी संगठन क्षमता मिल जाये तो सोने में सुहागा ही होगा। ममता इसको समझने की चूक कर गई। अब चुनाव परिणामों को देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।