‘धरने’ के लिए नहीं दीं 300 से ज्यादा सीटें ‘असंतोष’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। पश्चिमी बंगाल विधानसभा के आम चुनाव के बाद जिस प्रकार की हिंसा सामने आई है वह विभाजन के बाद की याद को ताजा कर रही है। तब बंटवारे के बाद हिन्दूओं को काटा गया था और आज बंगाल विधानसभा के चुनाव में हिन्दू विरोधी ताकतों की जीत के बाद वहां हिन्दूओं का मारा जा रहा है। यहां हिन्दूओं के स्थान पर राष्ट्रवादी भी लिखा जा सकता है लेकिन टारगेट हिन्दू वोट बैंक है इसलिए इस शब्द का उपयोग किया गया है। यह चिन्ता की बात है कि अपने ही देश में वह शिकार हो रहा है। लेकिन इससे अधिक चिन्ता की बात यह है कि इनके समर्थन से केन्द्र में बनी सरकार और उन्हीं के समर्थन से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी भाजपा हत्याओं का विरोध करने के लिए धरना दे रही है। देश की सरकार आपके हाथ में है तब भी यदि धरना ही देना है तब 300 से अधिक सांसदों की जरूरत क्या थी? हम आपके अदब में मर रहे हैं और आप धरना दे रहे हैं। सरकार एक्शन लेने के लिए होती है धरना देने के लिए नहीं। आज इंदिरा गांधी की याद आ रही है हम उन्हें आदर्श नेता माने या न माने लेकिन किसी भी राज्य ने तनिक भी नाफरमानी की टांगने में कोई देरी की। विरोध तो शासक का होता ही है। मोदी तो विरोध के कारण ही ताकतवर है। यदि उन्होंने विरोध की ताकत को समझने की बजाये उसका बचाव करना शुरू कर दिया तो फिर अन्तर ही क्या रह जायेगा?

बंगाल की हिंसा के बाद ममता को यह समझाना जरूरी है कि आप बंगाल की मालिक नहीं हो गई हैं। आपके पास न्याय करने का एकाधिकार नहीं है। केन्द्र सरकार और न्याय व्यवस्था भी आपके ऊपर है। लेकिन ये दोनों ही संस्थाएं संदेश देने में नाकाम रही हैं। न्यायालय को भी तो हिंसा दिखाई दे रही होगी? उसका मौन रहना चिन्ता को और बढ़ाता है। ममता न केवल ममताविहिन हो चुकी हैं हिंसक व्यवहार भी कर रही हैं। यह लोकतंत्र का हिस्सा नहीं हो सकता? लेकिन यहां शिकायत ममता से न होकर उनसे हैं जिनके कारण देश का बहुसंख्यक समाज वोट बैंक बना था। उसे भी लगा कि सत्ता के लिए उसकी अनदेखी हो रही है। उसे साम्प्रदायिक कह कर सत्ता से परे रखने का षडयंत्र कुछ तत्व और राजनेता कर रहे हैं। वह 2014 में जागा और अहसास करा दिया कि उसमें सत्ता पाने की क्षमता है। उसमें भी सरकार चलाने की अपेक्षा से अधिक क्षमता है। मोदी के सत्ता  संचालन में यही दिखा कि नेहरू हो या इंदिरा मोदी कम नहीं है। यूं भी कह सकते हैं कि सत्ता अब निडर होकर विचरण कर रही है। तब ममता से डर काहे का?

भाजपा का कार्यकर्ता व नेता चाहे व धरने पर बैठा हो लेकिन मन में टीस तो यह है ही कि ममता की हिंसा पर मौन और धरना क्यों? समर्थकों में इस बात का आक्रोश है कि केन्द्र की सत्ता और इतना बड़ा बहुमत डरने के लिए नहीं दिया। इसलिए हिंसक तत्वों का जो हश्र होना चाहिए वही बंगाल में करना चाहिए। कुछ दिन का राष्ट्रपति शासन लगाकर वहां के भेडिय़ों को सबक सिखाने में कोई राजधर्म बाधक नहीं है। राजधर्म लोगों की प्राणरक्षा की जरूरत को प्राथमिकता से आगे करता है। मोदी सरकार मौन और धरने के लिए नहीं बनवाई उसका एक्शन देखने की सबमें लालशा है।

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