‘धरने’ के लिए नहीं दीं 300 से ज्यादा सीटें ‘असंतोष’
बंगाल की हिंसा के बाद ममता को यह समझाना जरूरी है कि आप बंगाल की मालिक नहीं हो गई हैं। आपके पास न्याय करने का एकाधिकार नहीं है। केन्द्र सरकार और न्याय व्यवस्था भी आपके ऊपर है। लेकिन ये दोनों ही संस्थाएं संदेश देने में नाकाम रही हैं। न्यायालय को भी तो हिंसा दिखाई दे रही होगी? उसका मौन रहना चिन्ता को और बढ़ाता है। ममता न केवल ममताविहिन हो चुकी हैं हिंसक व्यवहार भी कर रही हैं। यह लोकतंत्र का हिस्सा नहीं हो सकता? लेकिन यहां शिकायत ममता से न होकर उनसे हैं जिनके कारण देश का बहुसंख्यक समाज वोट बैंक बना था। उसे भी लगा कि सत्ता के लिए उसकी अनदेखी हो रही है। उसे साम्प्रदायिक कह कर सत्ता से परे रखने का षडयंत्र कुछ तत्व और राजनेता कर रहे हैं। वह 2014 में जागा और अहसास करा दिया कि उसमें सत्ता पाने की क्षमता है। उसमें भी सरकार चलाने की अपेक्षा से अधिक क्षमता है। मोदी के सत्ता संचालन में यही दिखा कि नेहरू हो या इंदिरा मोदी कम नहीं है। यूं भी कह सकते हैं कि सत्ता अब निडर होकर विचरण कर रही है। तब ममता से डर काहे का?
भाजपा का कार्यकर्ता व नेता चाहे व धरने पर बैठा हो लेकिन मन में टीस तो यह है ही कि ममता की हिंसा पर मौन और धरना क्यों? समर्थकों में इस बात का आक्रोश है कि केन्द्र की सत्ता और इतना बड़ा बहुमत डरने के लिए नहीं दिया। इसलिए हिंसक तत्वों का जो हश्र होना चाहिए वही बंगाल में करना चाहिए। कुछ दिन का राष्ट्रपति शासन लगाकर वहां के भेडिय़ों को सबक सिखाने में कोई राजधर्म बाधक नहीं है। राजधर्म लोगों की प्राणरक्षा की जरूरत को प्राथमिकता से आगे करता है। मोदी सरकार मौन और धरने के लिए नहीं बनवाई उसका एक्शन देखने की सबमें लालशा है।