‘दिग्विजय’ के ट्वीट के जवाब में सिब्बल का ‘ट्वीट’
भोपाल। भाजपा और कांग्रेसी में एक मिथक को बनाने का प्रयास कर रही है दूसरा तोडऩे का। मिथक के केंद्र बिंदु में है गांधी परिवार। आजादी के बाद से गांधी-नेहरू परिवार एक विशिष्ट परिवार की श्रेणी में रहते हुए लगभग कानून की परिधि से बाहर ही रहता आया है। स्थिति यहां तक रही है कि इस परिवार के दामादों को भी एयरपोर्ट पर चेकिंग की छूट हुआ करती थी। 2014 में सत्ता का ऐसा बदला हुआ कि देश को बहुत कुछ नया जानने को मिला है। वाड्रा परिवार को मिली इस प्रकार की छूट को समाप्त करने के आदेश जारी हुए हैं। इसके बाद भी यह अवधारणा स्थापित करने का प्रयास हुआ कि गांधी परिवार लोकतांत्रिक राजवंश का प्रतीक है इसलिए उसे न तो संविधान की धाराएं प्रभावित कर सकती हैं और ना ही आईपीसी ही। इन दिनों इस मिथक को तोडऩे और बनाए रखने का द्वंद्व चल रहा है। इसी द्वंद में कुछ ईसाई मान्यता वाले राष्ट्रों का शामिल हो जाना इस मामले में नया मोड़ है। पहले अमेरिका और बाद में जर्मनी द्वारा राहुल गांधी की सदस्यता संबंधित बयान जारी करने से यह स्थिति निर्मित हुई है। एक नया मोड़ यह है जब दिग्विजय सिंह ने जर्मनी के बयान की प्रशंसा की तो उन्हें फटकार लगाने के लिए कपिल सिब्बल को ही सामने आना पड़ा। उन्होंने इसे भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप माना है।
जर्मनी की ओर से जब यह कहा गया कि वे राहुल गांधी की सदस्यता मामले में नजर बनाए हुए हैं। तब देश के अनेक लोगों के द्वारा हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विदेशी हस्तक्षेप के रूप में इसे देखा गया। लेकिन दिग्विजय सिंह ने जर्मनी का ट्वीट कर धन्यवाद ज्ञापित किया। यह उस मानसिकता को दर्शाता है जो विदेशों के सामने समर्पण का इजहार करती है। दिग्विजय सिंह के बयान की भाजपा आलोचना करेगी यह तो स्वाभाविक था लेकिन अचंभित करने वाला ट्वीट कपिल सिब्बल की ओर से आया। उन्होंने दिग्विजय सिंह पर इस प्रकार के ट्वीट की आलोचना कर प्रहार किया। राहुल गांधी को अपनी संसदीय व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी विदेशी सहारे की जरूरत है? ऐसा सहारा देने वालों की प्रशंसा करना कितना उचित है? इसलिए दिग्विजय राहुल समर्थकों से ही आलोचना का पात्र हो गए। वस्तुत: देश को भारतीय संविधान के अनुसार चलाना पड़ता है। एक संप्रभु राष्ट्र किसी विदेशी हस्तक्षेप की घटना को स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए दिग्विजय का बयान भारतीय संवैधानिक परंपराओं के विपरीत है ऐसा करने से भारतीय जनमानस में राहुल की स्थापित छवि भी और खराब होती है।
नैरेटिव बनाए रखने और तोडऩे का यह क्रम राजनीति का बड़ा रूप ले चुका है। ईसाइयत को मानने वाले देशों का इसमें हस्तक्षेप किसी दूसरी तरफ भी इशारा करता है। अब सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार और विशेषकर राहुल गांधी कानून की परिधि से बाहर हैं या उन्हें भी आम व्यक्ति की तरह उन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना चाहिए जो संविधान और आईपीसी में उल्लेखित है इसलिए दिग्विजय पर कपिल सिब्बल का ट्वीट काफी महत्वपूर्ण और भविष्य की राजनीति का पथ प्रदर्शक होने जा रहा है। कांग्रेस नेतृत्व को तय करना पड़ेगा कि दिग्विजय का जर्मनी को धन्यवाद कितना राजनीतिक रूप से सही है या फिर आत्मघातक?