‘दलबदल’ का हीरो और रास्ते निकालने का ‘बाजीगर’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। एक बार फिर से स्वामी प्रसाद मोर्य ने उत्तर प्रदेश के मंत्री पद को छोडक़र दलबदल का रास्ता अपना लिया है। कहने तो यह कहा जा रहा है कि अपने बेटे के लिए भाजपा की टिकिट नहीं मिलने के कारण स्वामी ने सपा से सौदा कर लिया है लेकिन यह आरोप भी ठीक वैसे ही होगा जिस प्रकार से पांच साल सत्ता का सुख भोगने के बाद स्वामी प्रसाद भाजपा पर दलित शोषण का आरोप लगा रहे हंै। इसलिए दलबदल के दौर में आरोपों की कोई गंभीरता नहीं होती यह तो रास्ता निकालने की कला का प्रदर्शन होता है। भाजपा उम्मीद रख रही है और वह डैमेज कंट्रोल कर लेगी। स्वामी प्रसाद के साथ आये विधायकों ने भी तत्काल विधायकी छोड़ दी। ऐसा समूह ऐसे ही करता है। यूपी दलबदल का बड़ा अड्डा है। पांच साल सरकार के साथ दबाव की राजनीति करते हैं और फिर से अगले केन्द्र में केन्द्र बनने के लिए पहुंच जाते हैं। रामबिलास पासवान हों या स्वामी प्रसाद मोर्य ऐसे नेता हैं जिनके बारे में यह कहा जाता है कि सत्ता जिधर जाने वाली है वह उसी पेड़ पर बैठ जाते हैं। यूपी चुनाव में योगी की भाजपा को अखिलेश की सपा की बड़ी चुनौती है। हालांकि सर्वे कह रहे हैं कि योगी की सरकार दोबारा बन रही है लेकिन जिस प्रकार से सपा के पक्ष में भगदड़ मच रही है उससे यह समीकरण कुछ और कहने लग गया है।

एक पंडित जी मिले बोले इस बार अखिलेश की सरकार बनेगी। पहली बात यह कि यूपी का पंडित योगी से नाराज है और यह भाजपा को इसका पता है। दूसरे अखिलेश को जिताने वाले पंडित बोले कि हमने उन्हें हनुमान जी का सौटा दिया है और कहा है कि उसे घुमाकर अपनी चुनावी यात्रा शुरू करें। हनुमान जी शत्रु दल को शक्तिहीन कर देंगे। यह बात इसलिए संदेश में है कि भागवान श्रीराम का मंदिर बनवाने वाली भाजपा और हनुमान गढ़ी के हनुमान को अपने साथ रखने वाली भाजपा को हनुमान जी शत्रु मान कर शक्तिहीन करेंगे यह कैसे संभव मान लिया जाये? लेकिन चुपनावी गणित को हनुमान जी तय करेंगे या मतदाता इसको सोचना आज की स्थिति में जरूरी है। लेकिन स्वामी प्रसाद मोर्य का भाजपा छोडऩा और सपा की ओर इशारा करना राजनीति का एक बड़ा संदेश तो है ही। स्वामी प्रसाद के आरोप चुनाव के समय ही क्यों सामने आये इस सवाल का जवाब वे नहीं देते और अपनी निष्ठा मंत्री परिषद के सामुहित दायित्व की ओर कर देते हैं। इससे यह लगता है कि स्वामी प्रसाद दलबदल के हीरो तो हैं ही रास्ता निकालने के बाजीगर भी हैं।

अब राजनीति से परे हटकर कुछ चर्चा इस कालम में कर ली जाये। वह आरक्षण की। आरक्षण के बाद सत्ता की मलाई चाटने वाले क्रीमी लेयर के ये नेता इतने निपुण हो गये हैं कि सत्ता का सुख भोगो, आरोप लगाओ और फिर सत्ता के लिए तैयार हो जाओ। पासवान से मोर्य तक लंबी फहरिस्त है। ऐसे में क्या आरक्षण की सुविधा इन लोगों से हटा लेनी चाहिए और नये लोगों को देकर ऐसी प्रजाति को बढ़ाने पर विचार नहीं करना चाहिए? खैर! यूपी के चुनाव रौचक होते जा रहे हैं। भाजपा की ताकत इस प्रकार की भगदड़ से कमजोर दिखने लग जाती है तब भाजपा कुछ तो करेगी ऐसी उम्मीद सभी को है। देखिये अभी दलबदल तो और चलेगा ही। 

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