‘जीतू’ राजनीति के पटल पर होते जा रहे ‘पटवारी’
कांग्रेस में पटवारी एक नाम तो हो गये थे। वे मालवा के क्षत्रप हाने की दिशा में काम करने लगे थे। अभी यह दायित्व कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा के नाम होता जा र हा है। जब नाथ पार्टी के सर्वेसर्वा हों तब ऐसा कोई प्रसास कैसे सफल हो सकता है। जब जीते भाई राज्यपाल के अभिभाषण पर पहले ही बोल उठे तो कमलनाथ ने उन्हें सदन में हैसियत बता दी थी। जीतू खून का घूंट पीकर रह गये थे। जबकि सबको पता है कि माध्यम में उनके पुराने साथी ने अभिभाषण की प्रति उन्हें उपलब्ध कराई थी। अब निलंबन कांग्रेस की साख का सवाल होना चाहिए था। सबने मिलकर जीतू पटवारी को ऐसा निपटाया की खेद प्रकट नहीं करने दिया। उल्टे पटल पर वह सब रखवा दिया जिसमें कोई दम नहीं है। सत्ता पक्ष की आंख की किरकिरी बने पटवारी कांग्रेस के नेताओं के लिए भी कोई सुरमा नहीं थे। इसलिए खेला हो गया। एक पांती क्या शिवराज को लिखी पक्षपात हो गया। जिस पांती की चर्चा है उसमें पटवारी ने खुद को कार्यकारी अध्यक्ष लिखा था। तो ठीक है भैया कार्यकारी हैं तब निपट लो। पूरी कांग्रेस जिस तेजी से गरजी थी बरसी वैसी नहीं।
जीते पटवारी राजनीति करते-करते राजनीति का शिकार हो गये। कुछ भाजपा वालों की राजनीति के और कुछ अपने ही दल की से। युवा हैं जोश आ जाता है। लेकिन राजनीति करने में तो जोश चल जायेगा लेकिन कद बढ़ाने के लिए जोश को संभालकर उपयोग किया जाता है। बस उसी का ख्याल पटवारी नहीं रख पा रहे हैं। उनके समर्थक भी उन्हें आक्रामक नेता बताने की होड़ में लगे हैं। कभी हल लेकर आ जाते हैं कभी विधानसभा घेरने के आयोजन को अपना बताने लग जाते हैं। अब बताईये मजमा जमाने का काम कमलनाथ कर रहे हैं और लूटने का काम पटवारी कर जायें तो कौन सहन करेगा। राजनीति में वैसे ही सहनशीलता की कमी होती जा रही है?