जान जोखिम में डाल कर ट्रेनों में चढ़ते हैं यात्री

टूटे हुए हैं प्लेटफार्म, जल्दीबाजी में रहता है गिरने का डर
भोपाल। विश्व स्तरीय बनने जा रहे हबीबगंज स्टेशन पर जान जोखिम में डाल कर यात्री ट्रेनों में चढने को मजबूर है। यहां पर ज्यादातर गाडियां मात्र दो मिनट के लिए ठहरती है, इतने कम समय में यात्रियों को ट्रेन में चढना और उतरना भी होता है। टूटे-फूटे प्लेटफार्मों पर इस दो मिनट में यात्री जब तक अपना कोच ढूंढ़ते और सामान उठाकर कोच तक पहुंचते हैं, तब तक ट्रेन चलने लगती है। यात्रियों को जान हथेली पर रखकर दौड़ते-भागते हुए ट्रेन में चढऩा पड़ता है। 
दो मिनट में यात्री संभल भी नहीं पाते कि ट्रेनें चलने लगती हैं। हबीबगंज स्टेशन से अप-डाउन की करीब 110 ट्रेनें होकर गुजरती हैं। इनमें साप्ताहिक, स्पेशल ट्रेनें भी शामिल हैं। इनमें से 90 फीसदी ट्रेनों के ठहरने का समय केवल 2 मिनट है। कुछ ही ट्रेनें 5 मिनट रुकती हैं। जैसे अप-डाउन की पंजाब मेल एक्सप्रेस, भगत की कोठी-बिलासपुर एक्सप्रेस, जयपुर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस, तुलसी एक्सप्रेस, सोमनाथ एक्सप्रेस, कामायनी एक्सप्रेस, पुष्पक एक्सप्रेस, जयपुर-पुरी एक्सप्रेस, जीटी एक्सप्रेस जैसी कई ट्रेनें दो मिनट रुकती हैं। अभी इन ट्रेनों में री-डेवलपमेंट के काम के चलते चढऩे व उतरने वाले यात्रियों का दबाव कुछ कम हुआ है। इसके पहले लगातार बढ़ रहा था। री-डेवलपमेंट का काम पूरा होने के बाद दोबारा यात्रियों की भीड़ बढ़ेगी। ऐसे में ट्रेनों के स्टॉपेज का समय बढ़ाना जरूरी होता जा रहा है। स्टेशन पर तब और दिक्कत बढ़ जाती है, जब कोच डिस्प्ले और अनाउंसमेंट की सुविधा नियमित न हो।
मौजूदा समय में हबीबगंज में कुछ ऐसा ही चल रहा है। इस स्टेशन पर री-डेवलपमेंट का काम चल रहा है। इसके कारण कोच डिस्प्ले की व्यवस्था चरमराई हुई है। कुछ ही जगह नियत स्थान पर कोच लगे हैं। बाकी प्लेटफार्मों पर तो कौन सा कोच कहां लगेगा, इसकी जानकारी ही नहीं मिलती। ऐसे में यात्रियों को और परेशान होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, कई बार तो कोच पोजीशन की जानकारी ही गलत दे दी जाती है। हाल ही में नर्मदा एक्सप्रेस में ऐसा ही हुआ था। जहां पर कोच एस-6 के लगने की जानकारी दी जा रही थी वहां ट्रेन आई तो कोच 7 आकर खड़ा हो गया। स्टेशन पर री-डेवलपमेंट के काम चल रहे हैं। इसके कारण प्लेटफार्म जगह-जगह खुदे पड़े हैं। ऐसे में यात्रियों को दौड़-भाग करना और भारी पड़ रहा है। यात्री दौड़-भागकर ट्रेनें पकड़ते हैं। भीड़ के कारण कई बार ट्रेनें छूट जाती हैं। जल्दी में पैर फिसलने का खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में यात्री प्लेटफार्म व कोच के बीच से पटरी पर चले जाते हैं।

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