जागृति, सद्भावना और विश्वास का स्थान है बागेश्वर धाम
पिछले कुछ समय से बागेश्वर धाम की महिमा संपूर्ण भारत में चर्चा का केंद्र बनी हुई है। किसी भी धार्मिक स्थल की चर्चा वहां से होने वाली इच्छापूर्ति के कारण होती है। यह हो सकता होगा कि उसके प्रचार व प्रसिद्धि की तुलना में इच्छाओं की पूर्ति का प्रतिशत कुछ काम हो। फिर भी जागृत स्थलों पर इच्छा पूर्ति की बातें भारतीय जनमानस में आस्था का प्रमुख केंद्र रहे हैं। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के माध्यम से जन कल्याण के लिए बताई जाने वाली बातें उनकी प्रसिद्धि का कारण और आलोचनाओं का कारण साथ-साथ बन रही है। यह भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और हिंदू समाज की आजकल की सबसे बड़ी विडंबना है। तथाकथित प्रगतिशील हिंदू समाज के ही कुछ लोग मान्यताओं और आस्थाओं पर विश्वास करने के बजाए उन्हें सवालों के भ्रम जाल में फंसाने का प्रयास करते हैं। अनेकों ऐसी घटनाएं हमारे समक्ष है जिसमें विषय के प्रति अज्ञानी लोग उन विषयों पर बात करते हैं जो उनसे कोसों दूर हैं। यहां राम चरित्र मानस की बात हो, पूजनीय स्थलों पर मान्यताओं की बात हो या फिर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जैसे मंत्र शक्ति के ज्ञाता की बात हो विरोध करने वाले थोथा चना बाजे घना वाली स्थिति को निर्मित कर रहे हैं। हालांकि समय उनका जवाब देता आ रहा है।
पिछले दिनों महाराष्ट्र के नागपुर में बागेश्वर धाम के बाबा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को उनकी शक्तियों के लिए चुनौती दी गई थी। पुलिस में प्रकरण दर्ज कराने का प्रयास भी हुआ था। लेकिन थोथा चना बजाने वाले अपने मकसद में सफल नहीं हो पाए। पुलिस की जांच और जनता की आवाज ने ऐसे तत्वों के मंसूबों को धराशाई कर दिया। इस प्रकार की घटनाएं अन्य स्वरूप में सामने आती रही है। बागेश्वर धाम की विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि यहां वर्ण, जाति और काम करने के आधार को महत्व नहीं दिया जाता। सभी प्रकार के व्यक्ति बाबा की कृपा पाने के अधिकारी हैं। यहां बाबा बागेश्वर धाम वाले हनुमान जी महाराज भी हैं और उनके भक्त पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी है। यह बात सच है कि बाबा अपने प्रवचनों में हिंदू संस्कृति की मान्य परंपराओं की बातें करते हैं फिर भी उनकी जीवनशैली में सभी वर्ण और जातियों का समान अधिकार दिखाई देता है। यही अधिकार घर वापसी के लिए सबसे बड़ा आधार भी बनता है। जैसा कि हम कह चुके हैं घर वापसी का आयोजन उन तत्वों के लिए अपनी दुकान नष्ट होने के समान है जिनकी राजनीतिक गतिविधियां इन्हीं के आधार पर चलती हैं। उदाहरण के रूप में हम देखते हैं तब हमें यह समझ में आता है कि गरीब, आदिवासी और वंचित लोगों की समाज में समान भागीदारी के लिए जिस नक्सलवाद का उदय हुआ था वही नक्सलवाद आज उन क्षेत्रों में होने वाले विकास के लिए सबसे बड़ा बाधक बनता जा रहा है। और बाधक बनने का सबसे मुख्य कारण यही है यदि इन क्षेत्रों में विकास और सामाजिक समानता का वातावरण निर्मित हो जाएगा तब नक्सलवादियों को काम करने का आधार क्या रहेगा? ठीक इसी प्रकार दलित या अन्य समाज के तथाकथित ठेकेदारों के लिए भी इसी प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो रही है। यदि राजनीतिक रूप से देखा जाए तब भी समग्र हिंदू समाज की बात करने वाले लोग जातियों और उप जातियों में बैठे लोगों को एक करके उन लोगों की राजनीतिक दुकानों को बंद कराने जैसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जो केवल जाति और वर्गों की बात करते थे। वे राजनीतिक रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं होते हैं। तब की स्थिति में वे धर्म प्रचारकों के साथ पंगा लेकर लोगों को भड़काने का काम करते हैं। हालांकि यह सब उस पानी के बुलबुले के समान होता है जो कुछ देर तक पानी पर अठखेलियां करता है और बाद में स्वयं ही समाप्त हो जाता है। हिंदू समाज में बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा जागृति हवन में जो आहुतियां दी जा रही हैं वे समाज की हितकारी हैं। इसलिए कुछ तत्वों द्वारा पानी के बुलबुले के समान किया जा रहा विरोध आने वाले समय में स्वमेव समाप्त हो जाएगा। पिछले कुछ वर्षों की राजनीतिक गतिविधियां और धार्मिक गतिविधियों का एक साथ विश्लेषण करने पर यह बात रेखांकित हो रही है कि राजनीतिक और धार्मिक रूप में अपने आप को केवल दलित समझने वाले, केवल पिछड़ा समझने वाले और केवल वनवासी समझने वाले लोगों के मन में उनके हिंदू होने का समग्र भाव पैदा हो रहा है। यह भारतीय संस्कृति के स्वर्णिम काल का स्मरण कराता है। इस योगदान के लिए पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को अन्य संत समाज के द्वारा भी मान्यता प्राप्त हो रही है। उनके गुरु जगतगुरू शंकराचार्य रामभद्राचार्य महाराज तथा अन्य धर्म गुरु और शंकराचार्य ने भी उनकी कार्य पद्धति को मान्यता प्रदान की है। यही प्रमाणित करता है कि आचार्य धीरज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हिंदू समाज मैं एकता जागृति और भाईचारा लाने का एक महायज्ञ कर रहे हैं। इस महायज्ञ में समाज के सभी वर्गों का बराबरी का स्थान है। वर्ण के आधार पर भेदभाव को कोई स्थान नहीं है। वैसे भी भारतीय मान्यताओं में वर्ण की समानता का उल्लेख है उन्हें ऊंचा या नीचा बताने का कार्य आज के नासमझ लोगों के जहन में पनपी हुई बातें हैं। इस महायज्ञ में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ प्राप्त करने वाले आज के पुण्यार्थी आप भी हो सकते हैं।